
Last Updated on 13/01/2022 by Sarvan Kumar
बासोर (Basor) भारत में पाई जाने वाली एक व्यावसायिक जाति है. यह छोटे किसान और बटाईदार होते हैं. इनका पारंपरिक व्यवसाय बांस की टोकरी और अन्य सामान जैसे-सुपली, पौती, तराजू, मांदल आदि बनाना और पशुपालन रहा है. अन्य कारीगर जातियों की तरह, इनके पारंपरिक व्यवसाय में भी गिरावट दर्ज की गई है. इसीलिए जीवन यापन के लिए यह मजदूरी तथा विवाह, जुलूस और अन्य सामाजिक और धार्मिक समारोहों में संगीतकार के रूप में भी काम करते हैं. आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) में शामिल किया गया है.यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं. यह बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी निवास करते हैं. 2011 के जनगणना में उत्तर प्रदेश में इनकी जनसंख्या 1,29,885 दर्ज की गई थी.उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से जालौन, हमीरपुर, महोबा, झांसी, कानपुर और बांदा जिलों में निवास करते हैं. कुछ बासोर मध्यप्रदेश के जबलपुर, भोपाल और सागर जिलों में भी पाए जाते हैं. यह हिंदू धर्म का पालन करते हैं. यह लक्ष्मी, दुर्गा और अन्य हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. बासोर समाज अनेक कुलों में विभाजित है, जिसे गोत्र कहा जाता है. इनके प्रमुख गोत्र हैं- बहमंगोट, धुनेब, कटारिया, सीकरवार, सामंगोट, सोनाच और सुपा.यह हिंदी और बुंदेलखंडी बोलते हैं.
बासोर शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
परंपरागत रूप से यह बांस से सामान और और फर्नीचर बनाने का काम करते हैं. इसीलिए इनका नाम बासोर पड़ा. “बासोर” का अर्थ होता है- “बांस का काम करने वाला”
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