
Last Updated on 28/05/2022 by Sarvan Kumar
कछवाहा वंश (Kachwaha dynasty) की आराध्य देवी शिला माता (Shila Devi) हैं. माता शिला देवी को आमेर का संरक्षक माना जाता है. माता शिला देवी का ऐतिहासिक मंदिर राजस्थान में जयपुर के आमेर दुर्ग में, जलेब चौक के दक्षिणी भाग में स्थित है. इस प्रसिद्ध मंदिर की स्थापना कछवाहा राजपूत राजा मानसिंह प्रथम (Mansingh I) के द्वारा 1604 में की गई थी, जो माता के बहुत बड़े भक्त थे. बाद में राजा मानसिंह द्वितीय ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था. मंदिर में देवी मां की भव्य और रहस्यमई प्रतिमा प्रतिष्ठित है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कभी यहां नर बलि की प्रथा थी. इतना ही नहीं, आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि माता के मूर्ति का गर्दन टेढ़ा है, जिसके पीछे एक अलग रोचक कहानी है. आप सोच रहे होंगे कि देवी माता को शिला माता क्यों कहा जाता है. तो इसका कारण यह है कि माता की प्रतिमा एक शिला पर उत्कीर्ण है, इसीलिए इन्हें शिला माता के नाम से जाना जाता है. यहां यह बता देना जरूरी है कि शीला देवी माता अंबा का ही एक रूप है. कहा जाता है कि आमेर या आंबेर (Amber or Amer) का नाम माता अंबा के नाम पर ही अम्बेर पड़ा, जो कालान्तर में परिवर्तित होकर आम्बेर या आमेर हो गया. मंदिर में स्थापित माता शिला देवी की प्रतिमा बारे में कई प्रकार की मान्यताएं, कथाएं और किंवदंतियां प्रचलित हैं. आइए विस्तार से जानते हैं-
कछवाहा वंश की आराध्य देवी
( प्रवेश द्वार पर इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में पुरातात्विक विवरण दिया गया है. पुरातात्विक विवरण के अनुसार, माता शिला देवी कि इस मूर्ति को राजा मानसिंह प्रथम बंगाल जेस्सोर (जो वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है) से लाए थे. मुगल वंश के तीसरे शासक बादशाह अकबर ने उन्हें बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया था. बादशाह अकबर ने अपने नवरत्नों में से एक मानसिंह को बंगाल अभियान पर वहां के तत्कालीन राजा केदार सिंह को पराजित करने के लिए भेजा था. ऐसी मान्यता है कि राजा केदार को हराने में असफल रहने के बाद मानसिंह ने युद्ध में अपनी जीत के लिए देवी मां की उस प्रतिमा से आशीर्वाद मांगा था. कहा जाता है कि उस काल के एक बड़े ज्योतिषी ने महाराजा सवाई मानसिंह से कहा कि यदि वह माता शिला देवी की उपासना करेंगे तो उन्हें युद्ध में सफलता प्राप्त होगी. ऐसी मान्यता है कि देवी मां मानसिंह के सपने में आईं और युद्ध जीतने में सहायता के बदले अपने आपको मुक्त कराने की मांग की थीं. माता के आशीर्वाद से मानसिंह युद्ध जीत गए. शर्त के अनुसार उन्होंने देवी माता की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और आमेर दुर्ग में स्थापित किया. कुछ जानकारों का मानना है कि युद्ध में पराजित होने के बाद राजा केदार ने मानसिंह को यह प्रतिमा भेंट की थी.एक दूसरी किवदंती के अनुसार, मानसिंह ने राजा केदार की पुत्री से विवाह किया था और देवी की यह प्रतिमा उन्हें उपहार स्वरूप प्राप्त हुई थी. कहा जाता है कि राजा केदार ने इस मूर्ति का निर्माण समुद्र में मिले एक शिलाखंड से करवाया था, इसीलिए इसका नाम शिला देवी पड़ा. एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह मूर्ति राजा मानसिंह को बंगाल के समुद्र तट पर काले रंग के एक शिलाखंड के रूप में मिली थी. किवदंती के अनुसार, देवी राजा के सपने में प्रकट हुईं. उन्होंने राजा से कहा कि उनकी मूर्ति जेसोर (अब बांग्लादेश में) के पास समुद्र में तैर रही है. राजा उनकी मूर्ति को वहां से लाकर एक मंदिर में स्थापित करें. राजा मानसिंह इस शिलाखंड को समुद्र से निकालकर आमेर लाए. उन्होंने देवी माता का विग्रह रूप शिल्पकारों से बनवाया और आमेर दुर्ग में मंदिर बनवा कर माता की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया.

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