Ranjeet Bhartiya 29/05/2022

Last Updated on 29/05/2022 by Sarvan Kumar

कछवाहा राजपूत राजाओं की आराध्य देवी माता शिला देवी का मंदिर जयपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर, आमेर दुर्ग में स्थित है. इस मंदिर की बहुत मान्यता है. यह मंदिर ना केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध है. ऐसी मान्यता है कि कोई भी भक्त अगर सच्चे मन से देवी मां की भक्ति करता है तो माता प्रसन्न होकर उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. आमतौर पर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का गर्दन सीधा होता है. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आमेर दुर्ग के मंदिर में प्रतिष्ठित माता शिला देवी की प्रतिमा का गर्दन, जो सीधा हुआ करता था, टेढ़ा है! तो इसके पीछे का रहस्य क्या है? कुछ जानकारों का मानना है कि शुरू से ही प्रतिमा की बनावट ऐसी है, जिसमें माता का मुंह कुछ टेढ़ा नजर आता है. लेकिन इस बारे में अनेक मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं. आइए जानते हैं आमेर की शिला माता की कहानी, माता की मूर्ति का गर्दन टेढ़ा होने के पीछे का रहस्य क्या है?

आमेर की शिला माता की कहानी

पहला मत: एक मत के अनुसार, 1727 ईस्वी में कछवाहा राजवंश ने आमेर को छोड़कर इसके स्थान पर जयपुर को अपनी राजधानी बनाया. माता इस बात से नाराज हो गईं और उन्होंने अपनी दृष्टि (गर्दन) को टेढ़ी कर ली.

दूसरा मत : दूसरी मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि पहले शिला माता की प्रतिमा का मुख पूरब दिशा की ओर था. जब राजा मानसिंह जयपुर शहर की स्थापना करने लगे तो उन्हें अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. जब निर्माण कार्यों में बहुत ज्यादा बाधा उत्पन्न होने लगा तो राजा परेशान हो गए. उन्होंने बड़े-बड़े पंडितों और ज्योतिषियों को विचार-विमर्श के लिए बुलाया इस समस्या को दूर किया जा सके. शिलामाता की दृष्टि जयपुर की तरफ तिरछी पड़ रही थी. इसीलिए पंडितों और ज्योतिषियों राजा को सलाह दिया कि देवी माता की प्रतिमा को उत्तराभिमुख प्रतिष्ठित करवा दिया जाए, जिससे जयपुर के निर्माण में कोई अन्य विघ्न उपस्थित न हो. ऐसा ही किया गया. तब से काले रंग के शिलाखंड से निर्मित इस प्रतिमा को वर्तमान गर्भगृह में प्रतिष्ठित करवाया दिया गया, जो उत्तराभिमुखी है.

तीसरा मत : एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, शिला माता की प्रतिमा का चेहरा कुछ टेढा है. इसके बारे में एक कहानी प्रचलित है. कहा जाता है कि वर्षों पहले यहां देवी को नरबलि दी जाती थी. लेकिन जब राजा ने नरबलि के स्थान पर पशु बलि देने का निर्णय लिया तो देवी माता नाराज हो गईं. गुस्से में उन्होंने अपने गर्दन को राजा मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ लिया. तभी से शिला देवी माता की प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है.

चौथा मत : एक अन्य किवदंती के अनुसार, देवी माता राजा मानसिंह के सपने में आईं. उन्होंने राजा से मंदिर की स्थापना के बाद प्रतिदिन एक नरबलि का वचन लिया. राजा मानसिंह ने इस वचन को निभाया, लेकिन बाद के शासक इस वचन को नहीं निभा पाए और नरबलि के स्थान पर पशुओं की बलि देने लगे. इससे रुष्ट होकर माता ने अपनी दृष्टि टेढ़ी कर ली.

पांचवां मत : अन्य रोचक कथा के अनुसार, माता राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थीं. मंदिर की स्थापना के साथ ही माता ने राजा से नरबलि देने का वचन लिया. यह तय किया गया कि राजा के महल के बगल में स्थित घर से शुरू करके चक्रीय तरीके से मानव बलि दी जाएगी. ऐसा करते-करते यह चक्र घूमते-घूमते राजा के महल तक पहुंच गया. अब राज परिवार के राजकुमार की नरबलि दी जानी थी. लेकिन जब किसी राजकुमार के बलि देने की बात आई तो राजा ने नरबलि पर रोक लगा दिया. इस पर देवी माता नाराज हो गईं और उन्होंने राजा के तरफ से दूसरी ओर मुख फेर लिया.

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