Last Updated on 25/09/2019 by Sarvan Kumar
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री केदारनाथ मंदिर, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. यह एक शिव मंदिर है जिसमें हिंदू श्रद्धालुओं की काफी आस्था है. ज्योतिर्लिंग वो धर्मस्थल है जहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे. केदारनाथ के अलावे दूसरे 11 ज्योतिर्लिंग इस प्रकार है: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (गुजरात), मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग(आन्ध्र प्रदेश), महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग(मध्यप्रदेश), ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग(मध्यप्रदेश), भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग(महाराष्ट्र), काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग( उत्तर प्रदेश), त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र) वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग( झारखण्ड ), नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (गुजरात ), रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (तमिलनाडु), घृष्णेश्वर मन्दिर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र). केदारनाथ मंदिर का इतिहास क्या है ?केदारनाथ कैसे पहुंचे? आइए जानते हैं केदारनाथ मंदिर , उत्तराखंड की पूरी जानकारी.
केदारनाथ मंदिर का इतिहास

श्री केदारनाथ मंदिर महाभारत काल का है. जहां पर अभी वर्तमान में यह मंदिर है, इसी जगह पर पांडवों ने सबसे पहले एक मंदिर निर्माण कराया था. पांडवों द्वारा निर्मित मंदिर वक्त के थपेडों को नहीं झेल पाया और कहीं लुप्त हो गया. मान्यताओं के अनुसार अभी जो मंदिर का स्वरूप है उसका निर्माण आदिशंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में कराया था. प्रख्यात विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने मंदिर की स्थापना का समय 12वीं – 13वीं शताब्दी बताई है.
400 सालों तक मंदिर बर्फ के नीचे दबा रहा
वादिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के अनुसार यह मंदिर 400 सालों तक बर्फ के नीचे दबा रहा. मंदिर के दीवारों पर येलो लाइन दिखाई देती है जो कि ग्लेशियर मूवमेंट को बताती है. मंदिर किसने बनाया? कब बना? इसका कोई डॉक्यूमेंटरी प्रमाण नहीं है. कुछ मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा भोज के काल में 1076 से 1099 में बनाई गई है.
केदारनाथ मंदिर की ज्योग्राफिकल स्थिति
पूरा केदारनाथ मंदिर एरिया चोराबाड़ी ग्लेशियर का हिस्सा है. केदारनाथ 11755 फुट ( समुद्र तल से) ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है. यह मंदिर 3 साइड से पहाड़ों से घिरा है. यह तीनों पहाड़ियां हैं केदारनाथ( लगभग 22000 फुट) खर्च कुंड लगभग( 21600) फुट ,भरत कुंड( 22700 फुट). यहां से कभी मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी जैसी नदी नहीं बहा करती थी. वर्तमान में सिर्फ मंदाकिनी नदी बहती है नदियों का अस्तित्व नहीं रह गया है.
केदारनाथ मंदिर वास्तुशिल्प (आर्किटेक्चर)

यह विशाल मंदिर 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है, इसकी दीवारों मोटाई 12 फीट है.ये मंदिर 6 फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है. कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर को भूरे रंग के बड़े पत्थरों से बनाया गया है.
मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है.
गर्भ ग्रह ( नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में स्थित है).
दर्शन मंडप( यहां भक्तगण खड़े होकर पूजा करते हैं).
सभामंडप ( यहां सारे तीर्थयात्री इकट्ठा होते हैं).
मंदिर का छात्र लकड़ी का है जिसके शिखर पर सोने का कलश है. मंदिर के बाहर द्वार पर भगवान शिव के प्रिय नंदी के विशालकाय प्रतिमा स्थापित है. पत्थर को जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
दूसरे मंदिर की तरह यहां नहीं है शिवलिंग! मंदिर है पंच केदार का हिस्सा!
दूसरे शिव मंदिर की तरह यहां पर शिवलिंग स्थापित नहीं है. बल्कि यहां पर नुकीली चट्टान के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है.
क्या है इसके पीछे की कथा ? महाभारत युद्ध खत्म हो चुका था. पांडव जीत चुके थे पर पांडवों को अपने भाई – बंधुओं की हत्या का भारी पश्चाताप हो रहा था .वे अपने आप को पापी महसूस कर रहे थे. ऐसे में वह भगवान शिव का दर्शन कर पाप मुक्त होना चाहते थे.
भगवान शंकर पांडवों से रुष्ट थे!
पांडव, भगवान शिव को खोजते -खोजते काशी पहुंचे, पर वे वहां से अंतर्ध्यान हो गए. भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसीलिए वे केदारनाथ में जा बसे. पांडव भी धुन के पक्के थे वे भगवान शिव को खोजते खोजते केदार जा पहुंचे.
भगवान शिव बैल के रूप धारण किया
अपनी पहचान छुपाने के लिए भगवान शिव बैल का रूप धारण कर लिया और दूसरे पशुुओं में मिल गये. पांडवों को शक हो गया कि भोले शंकर जरूर ऐसा किया किए होंगे. महाबली भीम ने दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिया. दूसरे पशु उनके पैरों के नीचे से निकल गए पर बैैल रूपी भगवान शिव पैरों के नीचे से निकलने को तैयार नहीं हुए. भीम को यकीन हो गया बैल के रूप में वे भगवान शिव ही है. महाबली भीम ने बैल को झपट्टा मारा.भगवान अंतर्धान होने का प्रयास किया. भीम ने बैल के त्रिकोणात्मक पीठ को पकड़ लिया.
भगवान शिव पांडवों के भक्ति- भाव से काफी प्रसन्न हुए
भोले शंकर पांडवों के भक्ति- भाव से काफी प्रभावित हुए, और दर्शन देकर पाप मुक्त किया. आज भी केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में कोई शिवलिंग नहीं है बल्कि नुकीली चट्टान के रूप में बैल का त्रिकोणात्मक पीठ स्थित है.अंतर्ध्यान होने के समय बैल का धर काठमांडू में प्रकट हुआ जहां विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर है. भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में मुख रुद्रनाथ में नाभि मद्मेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए. इन चार स्थानों सहित केदारनाथ को पंच केदार कहा जाता है यहां भगवान शिव का भव्य मंदिर बना हुआ है
चार धाम में से एक है बद्रीनाथ और ऐसा कहा जाता है कि केदारनाथ की यात्रा के बिना बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी है.
केदारनाथ मंदिर कब खुलता है?
ठंडी के मौसम में भारी बर्फ के चलते यह मंदिर 6 महीनों तक बंद रहता है. नवंबर से लेकर अप्रैल तक यह मंदिर बंद रहता है. अगले 6 महीनें के लिए मंदिर को खोला जाता है. कपाट बंद करते समय मंदिर के अंदर एक दीप प्रज्वलित किया जाता है. आश्चर्य की बात यह है कि 6 महीने के बाद जब यह मंदिर को खोला जाता है तो दीप जलते ही मिलता है. ठंड के 6 महीने में बाबा केदार की पूजा-अर्चना पंचगद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में होती है.
केदारनाथ कैसे पहुंचे?
यहां आप आसानी से आ सकते हैं. केदारनाथ सड़क, रेल मार्ग और वायु मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है.
सड़क मार्ग- अगर आप सड़क मार्ग से यहां आना चाहते हैं तो सबसे पहले हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून पहुंचे. यहां से भाड़े के कार- जीप से केदारनाथ पहुंच सकते हैं.
रेल मार्ग- ऋषिकेश, देहरादून और हरिद्वार रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है. यहां एक बार पहुंचकर भाड़ेे के वाहन से केदारनाथ पहुंच सकते हैं
वायु मार्ग- केदारनाथ से 239 किलोमीटर की दूरी पर देहरादून में जौली ग्रांट एयरपोर्ट स्थित है.