
Last Updated on 10/04/2020 by Sarvan Kumar
मक्का मस्जिद धमाके के मामले में अदालत ने धर्मगुरु स्वामी असीमानंद को बरी कर दिया है. जानिये कौन हैं आदिवासियों के बीच गहरी पैठ रखने वाले और धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चलाने वाले स्वामी असीमानंद.
मक्का मस्जिद धमाका
NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की विशेष अदालत ने स्वामी असीमानंद समेत पांच लोगों को सबूतों के अभाव के कराण हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद में धमाके करने की साज़िश रचने के आरोप से बरी कर दिया है. हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में हुए धमाके में 9 लोगों की जान गई थी और 50 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे. यह धमाका इमप्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईइडी) से किय़ा गय़ा था. इस धमाके के मुख्य अभियुक्त थे स्वामी असीमानंद. दो केसों में बरी हो जाने के बाद असीमानंद अब केवल समझौता एक्सप्रेस धमाके में ही अभियुक्त हैं. समझौता एक्सप्रेस के दो कोचों में 19 फ़रवरी 2007 को धमाका हुआ था जिसमें 68 लोग मारे गए थे. इनमें से ज़्यादातर पाकिस्तानी थे जो नई दिल्ली से लाहौर जा रहे थे.
प्रताड़ित करने पर दिया था कबूलनामा
1. मार्च 2017 में NIA की अदालत ने 2007 के अजमेर विस्फोट में सबूतों के अभाव में असीमानंद को बरी कर दिया था. दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट में 2010 में एक मेट्रोपॉलिटन जज के सामने असीमानंद ने धमाका करने की बात स्वीकार की थी.
2. असीमानंद ने कहा था कि वो अन्य साथियों के साथ अजमेर शरीफ़, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव धमाके में शामिल थे. उन्होंने कहा था कि यह हिंदुओं पर मुसलमानों के हमले का बदला था.
3. 42 पन्नों के इक़बालिया बयान में असीमानंद ने इस धमाके में कई उग्र हिन्दू नेताओं के साथ होने की बात कही थी. इसमें उन्होंने RSS के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार, संघ के प्रचारक सुनील जोशी और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नाम लिया था. सुनील जोशी की 29 दिसंबर, 2007 में मध्य प्रदेश के देवास में गोली मार हत्या कर दी गई थी.
4. कबूलनामे मे असीमानंद ने कहा था कि सभी इस्लामिक आतंकी हमले में ‘बम का जवाब बम’ होना चाहिए.
5. असीमानंद ने कहा था कि उन्होंने हैदराबाद की मक्का मस्जिद को इसलिए चुना था क्योंकि वहां के निज़ाम पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे. हालांकि बाद में उन्होंने NIA की अदालत में कहा कि उन्हें प्रताड़ित किया गया था इसलिए डरकर उन्होंने ऐसा बयान दिया था.
कौन हैं स्वामी असीमानंद?
1 स्वामी असीमानंद का जन्म बंगाल के हुगली ज़िले में हुआ. इनका असली नाम नब कुमार सरकार था. इनके पिता बिभूती भूषन सरकार एक जाने माने स्वतंत्रता सेनानी थे. इनके माता का नाम प्रमिला सरकार था.
2.7 भाइयों में एक स्वामी असीमानंद के जीवन पर रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द का गहरा प्रभाव रहा.
3.असीमानंद ने वनस्पति विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थी. असीमानंद को जितेन चटर्जी और ओमकारनाथ नाम से भी जाना जाता था.
4. उनके करीबी बताते हैं की ‘एक गुरु से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना नाम बदल लिया था और फिर आदिवासियों के बीच काम करने लगे.’
आरएसएस से गहरे संबंध
1. आज भले ही मक्का मस्जिद धमाके में अदालत से बरी हुए धर्मगुरु स्वामी असीमानंद के बारे में संघ परिवार के लोग खुलकर बात नहीं करना चाहते हों लेकिन उन दिनों असीमानंद RSS से जुड़े संगठनों के करीब थे.
2. अपने छात्र जीवन में ही RSS में शामिल हो गए. समय के साथ RSS से उनका संबंध गहरा और मजबूत होता चला गया. 1977 में वो RSS के फुल टाईम प्रचारक बन गए. उन्होने RSS की संस्था वनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम करना शुरू किया.
3. खुद को साधु कहने वाले और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रह चुके असीमानंद ने 1977 में बीरभूम में RSS के बनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम करना शुरू किया था.
धर्मांतरण रोकने और आदिवासी समाज के जीवन स्तर को सुधारने के लिए करते थे काम
1. असीमानंद हिंदू राष्ट्र के प्रबल समर्थक रहे हैं और उनके करीबी उन्हे कभी समझौता न करने वाले व्यक्ति के तौर पर याद करते हैं.
2. हिंदू संगठनों से जुड़े रहे असीमानंद ने पश्चिम बंगाल, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम में काम किया. लेकिन गुजरात, झारखंड और अंडमान द्वीप के सुदूर इलाकों में असीमानंद ने प्रमुख रूप से काम किया और यहीं से उनकी पहचान बनी.
3. स्वामी विवेकानंद के हिंदुओं के प्रति योगदान को लेकर असीमानंद के मन में गहरी श्रद्धा थी. असीमानंद का मनना था कि हिंदुओं का धर्म छोड़ना खतरनाक है.’वह साफ कहते थे- अधिक हिंदुओं को अपने साथ जोड़ो लेकिन यह ध्यान रहे कि कोई भी हिंदू छोड़कर न जाए. वह कहते थे यदि एक भी हिंदू की आस्था डिगती है तो वह धर्म के लिए बड़ा खतरा है.’
4. गुजरात के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के अभियान’ को रोकने के लिए उन्होंने प्रयास किए थे.यह एक बेहद कठिन कार्य था, जिसे असीमानंद ने 1990 के दशक में अपने हाथ में लिया था.
5. असीमानंद आदिवासियों के बीच घुल-मिल जाते थे. उनकी ही बोली में बात करते थे, उनके बीच नाचते-गाते थे. हिंदू पर्वों का भव्य आयोजन आदिवासियों के बीच वह करवाते थे.
6. हिंदू मान्यताओं में गहरी आस्था रखने वाले रामकृष्ण मिशन के विचारों से करीबी रखने वाले एक बंगाली परिवार में जन्मे असीमानंद ने शुरुआत से ही आदिवासियों के बीच काम किया.
7. असीमानंद शुरुआत से ही आदिवासियों के बीच काम करना चाहते थे. गुजरात में असीमानंद के साथ काम कर चुके RSS के नेता के ने बताया कि वह शुरुआत से ही इस बात को लेकर स्पष्ट थे कि उन्हें आदिवासियों के बीच काम करना है.
12. असीमानंद ने पश्चिम बंगाल से काम की शुरुआत की जिसके बाद RSS ने उन्हें 1970 के दशक में अंडमान भेजा. असीमानंद को 1990 के दशक के आखिरी में गुजरात के आदिवासी बहुल डांग जिले में भेजा गया था. यहा उन्होंने खासतौर पर ईसाई मिशनरियों की ओर से धर्मांतरण पर नजर रखी और उसे रोकने का प्रयास किया. इतना ही नहीं जहां भी उन्हें संभावना दिखी, वहां उन्होंने ईसाई बने हिंदुओं को वापस हिंदुत्व से जोड़ने का प्रयास किया.
13. असीमानंद ने ‘आदिवासी समाज के जीवन स्तर को सुधारने के लिए संघ के साथ मिलकर काफी कार्य किये. वह दो साल से ज्यादा वक्त डांग जिले में रहे और बहुत से लोगों को मिशनरियों के प्रभाव से निकालने का प्रयास किया. उन्होने कई धर्मांतरित हिन्दूओं को हिंदू धर्म में वापस लाने और उनके बच्चों की घर वापसी कराने का कार्य किया.’
14. असीमानंद साल 1995 में गुजरात के डांग जिले के मुख्यालय आहवा आए और हिंदू संगठनों के साथ ‘हिंदू धर्म जागरण और शुद्धिकरण’ का काम शुरू किया. यहीं उन्होंने शबरी माता का मंदिर बनाया और शबरी धाम स्थापित किया.
15. असीमानंद आदिवासी बहुल इलाक़ों में हिन्दू धर्म का प्रसार करने और ‘आदिवासियों को ईसाई बनने’ से रोकने में लगे थे.

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