Ranjeet Bhartiya 09/10/2018
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Last Updated on 04/11/2018 by Sarvan Kumar

जयप्रकाश नारायण एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, राजनेता और आधुनिक भारत के अग्रण्य विचारक थे. जयप्रकाश नारायण के राजनीतिक विचार आज भी है प्रासंगिक हैं.

जयप्रकाश नारायण को लगभग 30 वर्षों तक एकछत्र शासन करने वाली और निरंकुश होती जा रही कांग्रेस पार्टी की सरकार को समाप्त कर जनता पार्टी की सरकार को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए याद किया जाता है.

क्या है जनता का राज जयप्रकाश के नज़र में

जयप्रकाश नारायण कहते थे अगर हम सच में और सही अर्थों में जनता का राज लाना चाहते हैं तो इसके लिए हमें एक सम्पुर्ण क्रांति करके सामाजिक परिवर्तन करना पड़ेगा. जनता को राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृति, बौद्धिक , शैक्षणिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता दिलानी होगी. हमें गरीबी, बेरोजगारी , शोषण को जड़ से समाप्त करना होगा. जब जनता खुद अपने कामों में सीधे भागीदार बनने लगेगी तभी यह लोकशाही को सच्चे अर्थों में जनता का राज कहा जा सकेगा.

जयप्रकाश नारायण की  संपूर्ण क्रांति का क्या  मकसद था?

जयप्रकाश नारायण के राजनीतिक विचार में जो सबसे प्रमुख विचार था- वो था संपूर्ण क्रांति का  विचार. वो संपूर्ण क्रांति करके शोषण और विषमता को जन्म देने वाली वर्तमान सिस्टम को नष्ट कर एक नए समाज की स्थापना करना चाहते थे.

जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन सभी स्वार्थी लक्ष्यों और मूल्यों के खिलाफ था. जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन उस सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था के गलत धारणाओं के खिलाफ था जिससे शोषण और विषमताओं का का जन्म होता है.

जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति का उद्देश्य महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और शोषण की तब की वर्तमान व्यवस्था को तोड़कर एक ऐसी व्यवस्था बनाने के लिए था जहां शोषण और विषमता ना पनपे.

जयप्रकाश नारायण यह मानते थे शोषण और विषमता को मिटाने के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन जरूरी हैं. इसके लिए हमें सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और वैचारिक क्षेत्रों में भी परिवर्तन करने होंगे. जेपी अपने आंदोलन को आध्यात्मिक आंदोलन भी मानते थे. उनकी दृष्टि में आध्यात्मिकता का अर्थ था अपना निजी स्वार्थ छोड़कर जनता की भलाई के लिए और एक दूसरे के सुख-दुख में साथ देकर संपूर्ण सृष्टि में एकता कायम करना.

जयप्रकाश नारायण मानते थे की जनता को संघ सेवक या प्रहरी की भूमिका निभानी चाहिए.

वो कहते थे यह हमारी गलतफहमी है कि कोई बाहरी संगठन जनता के समस्याओं का समाधान कर सकती है. जनता को खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी चाहिए और अपनी समस्याओं का समाधान खुद ही करना चाहिए.

परिवर्तन में युवाओं की भूमिका

जयप्रकाश नारायण इस बात पर जोर देते थे की परिवर्तन के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए और नेतृत्व करना चाहिए क्योंकि युवाओं और छात्रों में अन्याय के खिलाफ विरोध करने की क्षमता होती है. युवाओं और छात्रों को मिलकर काम करना चाहिए और अन्याय और शोषण के खिलाफ जनमत तैयार करना चाहिए.

स्वार्थ से ऊपर उठकर सच्चाई और अहिंसा को बनाए हथियार

जयप्रकाश नारायण कहते थे कि परिवर्तन प्रक्रिया एक शांतिपूर्ण आंदोलन है जिसमें अहिंसा और सच्चाई जनता के हथियार हैं और निडरता उसके प्राण.

जयप्रकाश नारायण का मानना था की व्यवस्था परिवर्तन या परिवर्तन प्रक्रिया में भाग लेने वाले आंदोलन के कार्यकर्ताओं को सत्ता की लालच में कोई कार्य नहीं करना चाहिए.

जयप्रकाश नारायण कहते थे अन्याय सहन नहीं करना चाहिए क्योंकि अन्याय को सहन करना भी एक प्रकार का अपराध है.

गांधी से प्रभावित होते हुए भी अलग थे जयप्रकाश नारायण के राजनीतिक विचार

महात्मा गांधी से प्रभावित होने के बावजूद भी जयप्रकाश नारायण अहिंसात्मक क्रांति और धीमी गति से होने वाले परिवर्तनों के तरफ आकर्षित नहीं हो पाए. वे रूसी साम्यवाद से प्रभावित रहे. कांग्रेस समाजवादी दल में रहकर भी वह तेज गति से होने वाले हिंसक क्रांति, सशक्त क्रांति और सत्ता-पलट क्रांति के समर्थक बने रहे.

1942 में जयप्रकाश नारायण दिवाली की रात में हजारीबाग जेल की दीवार फांदकर जेल से भाग गये. इस घटना के बाद जयप्रकाश नारायण साहस, शौर्य और दुस्साहस का प्रतीक बन गए और युवाओं में उनकी पहचान एक हीरो की तरह बन गई.

जयप्रकाश नारायण को क्यों करना पड़ा संपूर्ण क्रांति का आह्वान

1947 में  भारत को आजादी मिल गई. 1948 में गांधी की मृत्यु के बाद जयप्रकाश का मन अंतर्द्वंद से घिर गया वो आत्ममंथन करने लगे. जब भारत आजाद हुआ तो महात्मा गांधी ने कहा था हमें राजनीतिक आजादी तो मिल गई लेकिन सामाजिक, आर्थिक और नैतिक आजादी मिलना अभी बाकी है और हमारा  कार्य अब आरंभ हुआ है.

1973 में जयप्रकाश नारायण जी की धर्मपत्नी प्रभावती देवी का स्वर्गवास हो गया. जयप्रकाश अकेले पर गये. उनमे जीवन जीने की रूचि खत्म हो गयी. वो सन्यास लेने का विचार करने लगे.

लेकिन उनके क्रांतिकारी मन में हमेशा समाज परिवर्तन की चिंता होने लगी. बात 1973 की है आजादी के इतने सालों बाद भी सत्ता के स्वार्थी लोगों के कारण भारत की जनता को निरंकुश तानाशाही व्यवस्था को झेलना पड़ रहा था . जनता को हाशिए पर धकेला जा रहा था. नौकरशाही का जाल फैलता जा रहा था. गरीबी, डर, भ्रष्टाचार ,परिवारवाद और भाई-भतीजावाद का बोलबाला हो गया था. प्रतिभाशाली छात्र बिछड़ते जा रहे थे नौकरियों में भी भाई-भतीजावाद होने लगा था .बिना पैरवी के नौकरी नहीं मिलती थी. भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंचने लगा था. सरकार के नौकरशाही मंत्रियों के हाथ के  कठपुतली बन गए थे. विकास ठहर गया था और देश के सामने अंधेरा था और इंदिरा गांधी की सरकार थी. तब 1974 में 72 साल की उम्र में जय प्रकाश नारायण ने व्यवस्था परिवर्तन के लिए संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया.

जयप्रकाश नारायण ने कहा यह लड़ाई गद्दी और सत्ता पाने के लिए नहीं है यह लड़ाई है व्यवस्था परिवर्तन की यह भारत के नवनिर्माण की लड़ाई है.

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