Sarvan Kumar 07/11/2023
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Last Updated on 07/11/2023 by Sarvan Kumar

राजपूत और ठाकुर दोनों शब्द भारत में प्रभावशाली सामाजिक समूहों से जुड़े हैं. इन दोनों समूहों का ऐतिहासिक महत्व है और ये समकालीन भारतीय समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. “राजपूत” और “ठाकुर” शब्द अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते हैं, लेकिन दोनों के बीच अंतर है. यहां हम राजपूत और ठाकुर के बीच अंतर के बारे में जानेंगे.

राजपूत और ठाकुर के बीच अंतर

इस लेख के मुख्य विषय पर आने से पहले आइए राजपूत और ठाकुर के बारे में संक्षेप में जान लें.

राजपूत (Rajput)

राजपूत जाति समूह एक प्रमुख और व्यापक सामाजिक समूह है, जिसमें कई घटक शामिल हैं, जो मध्ययुगीन काल के दौरान उभरा. राजपूतों का एक समृद्ध और जटिल इतिहास है. राजपूत अपनी वीरता, शूरता और मार्शल परंपराओं के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने भारतीय इतिहास में शासकों और योद्धाओं दोनों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं, और भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने पर स्थायी प्रभाव छोड़ा है. राजपूत समुदाय आज भी अपनी विरासत और विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए जाना जाता है और समाज में उनका बहुत सम्मान किया जाता है.

ठाकुर (Thakur)

“ठाकुर” भारतीय उपमहाद्वीप में एक ऐतिहासिक सामंती उपाधि है, जो अधिकार या कुलीनता की स्थिति का संकेत देती है. इसका उपयोग आमतौर पर सामंती युग के दौरान किया जाता था. यह उपाधि छोटी-बड़ी रियासतों के राजा और बड़े जमींदारों को दी जाती थी, जिनका भूमि पर नियंत्रण होता था या किसी विशेष क्षेत्र पर उनका अधिकार होता था. वर्तमान भारत में यह शब्द आज भी उपनाम के रूप में उपयोग किया जाता है. ठाकुरों को उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और जमींदारों के रूप में उच्च स्थिति के कारण भारतीय समाज में पारंपरिक रूप से सम्मान दिया जाता है. आइए अब इस लेख के मुख्य विषय पर आते हैं और जानते हैं कि राजपूत और ठाकुर में क्या अंतर है. राजपूत और ठाकुर के बीच तीन बुनियादी अंतर इस प्रकार हैं:

1.सभी ठाकुर राजपूत नहीं है ( All Thakur are not Rajput):

राजपूत एक जाति समूह को संदर्भित करता है जबकि ठाकुर एक उपाधि है. भारत में, इस उपाधि का उपयोग करने वाले सामाजिक समूहों में राजपूत कोली, चारण, भूमिहार ब्राह्मण, मैथिल ब्राह्मण और बंगाली ब्राह्मण शामिल हैं

2.ऐतिहासिक उत्पत्ति और स्थिति (Historical Origin and Status):

राजपूतों का उत्तर भारत के शासक राजवंशों और योद्धा परंपराओं के साथ ऐतिहासिक संबंध रहा है. “राजपूत” शब्द कुलों या वंशों के एक समूह को संदर्भित करता है जो क्षत्रिय (योद्धा) स्थिति का दावा करते हैं. राजपूत पारंपरिक रूप से अपने राज्यों की रक्षा और सुरक्षा से जुड़े रहे हैं और अपने मार्शल कौशल के लिए जाने जाते हैं.

दूसरी ओर, ठाकुर एक अधिक स्थानीयकृत शब्द है जिसका उपयोग भारत के विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किया जाता है. ठाकुर अक्सर जमींदार होते हैं जो राजपूत समुदाय से होते हैं या क्षत्रिय होने का दावा करते हैं. हालाँकि, यह आवश्यक नहीं है कि सभी ठाकुर राजपूत समुदाय से हों.

3.सामाजिक पदानुक्रम (Social Hierarchy):

राजपूत, योद्धा परंपराओं और ऐतिहासिक शासक वंशों से जुड़े होने के कारण, अक्सर पारंपरिक हिंदू जाति व्यवस्था के भीतर उच्च सामाजिक स्थिति रखते हैं. दूसरी ओर, ठाकुरों को राजपूत समुदाय का हिस्सा माना जाता है, लेकिन आम तौर पर शासक वंश से जुड़े राजपूतों की तुलना में उनकी सामाजिक स्थिति कम मानी जाती है.

4.वंशानुगत उपाधियाँ (Hereditary Titles)

राजपूत कुलों की अपनी वंशानुगत उपाधियाँ होती हैं, जैसे राणा, महाराणा, महाराजा, आदि, जो उनकी शक्ति और अधिकार की ऐतिहासिक स्थिति को दर्शाती हैं. दूसरी ओर, ठाकुर अक्सर ठाकुर, रावत, राव आदि जैसी उपाधियाँ रखते हैं, जो उनके संबंधित क्षेत्रों के भीतर उनकी जमींदारी या सामंती स्थिति का संकेत देते हैं.

5 क्षेत्रीय विविधताएँ और प्रथाएँ (Regional Variations and Practices):

“राजपूत” एक व्यापक शब्द है जो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात सहित उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में अधिक व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. राजपूत अक्सर विशिष्ट क्षेत्रीय रीति-रिवाजों, परंपराओं और आचार संहिता का पालन करते हैं. दूसरी ओर, ठाकुर एक अधिक स्थानीयकृत शब्द है जो मुख्य रूप से राजस्थान और उत्तर प्रदेश में उपयोग किया जाता है, और ठाकुरों से जुड़ी प्रथाएं और रीति-रिवाज इन राज्यों में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न हो सकते हैं.

6.प्रभाव का स्तर (Level of Influence):

राजपूतों और ठाकुरों के बीच स्थानीय समाज के भीतर प्रभाव, सामाजिक संपर्क और विशिष्ट भूमिका का स्तर भी उनके ऐतिहासिक और क्षेत्रीय संदर्भ के आधार पर भिन्न हो सकता है.


References:

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•Sudeshna Basak (1991). Socio-cultural Study of a Minority Linguistic Group: Bengalees in Bihar, 1858-1912. B.R. Publishing Corporation. p. 91. ISBN 9788170186274.

•Das, Sisir Kumar (April 1968). “Forms of Address and Terms of Reference in Bengali”. Anthropological Linguistics. Trustees of Indiana University. 10 (4): 19–31. JSTOR 30029176

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