Ranjeet Bhartiya 02/07/2023
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Last Updated on 15/11/2023 by Sarvan Kumar

आए दिन कोई ना कोई ब्राह्मणों के बारे में भला-बुरा कहते ही रहता है. दलित और पिछड़े समाज से आने कई लोग अपनी हर समस्या का कारण ब्राह्मणों को मानते हैं  उनका मानना है की ब्राह्मणों ने उन्हें शिक्षा से वंचित रखा. देश के अर्थिक संसाधनों पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लिया. शाशन- प्रशासन में भागीदार नहीं बनने दिया. हो सकता हैं प्राचीन समाज ऐसा रहा हो पर वर्तमान में इसका कोई मतलब नहीं है. आज हर क्षेत्र में दलित और पिछड़े वर्ग को आरक्षण प्राप्त है. अगर फिर भी हम ब्राह्मणों का ही रोना रो रहे तो कहीं ना कहीं यह हमारी कमज़ोरी ही है. भारत में ब्राह्मणों ने ऐतिहासिक रूप से धार्मिक और बौद्धिक ज्ञान के संरक्षक के रूप में अपनी पारंपरिक भूमिका के कारण प्रभाव और शक्ति के पदों पर अपना दबदबा बनाए रखा है. धार्मिक-आध्यात्मिक मार्गदर्शन, शिक्षा और शासन के साथ उनके जुड़ाव ने समाज में उनके कथित प्रभाव में योगदान दिया है. इसी क्रम में यहां हम जानेंगे कि ब्राह्मणों को कब्जे में कैसे लें?

ब्राह्मणों को कब्जे में कैसे लें?

“कब्जा में लेना” एक अभिव्यक्ति है जो विभिन्न संदर्भों में प्रयोग होती है. आइए पहले इसके सामान्य अर्थ के बारे में बात करते हैं. यदि किसी व्यक्ति या संगठन ने अनुचित तरीके से किसी अन्य व्यक्ति या संगठन की संपत्ति या संपत्ति पर कब्जा कर लिया है, तो इस प्रकार की परिस्थितियों को व्यक्त करने के लिए “कब्जा लेना” का उपयोग किया जाता है. इसमें अनुचित रूप से संपत्ति पर कब्जा करना, अवैध कब्जा, जबरन कब्जा आदि शामिल हो सकते हैं. सामाजिक संदर्भ में “कब्जा लेना” सामाजिक संपत्ति, संसाधनों, अधिकारों या सामाजिक व्यवस्था पर अधिकार प्राप्त करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है.भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का व्यापक प्रभाव है. जाति व्यवस्था में ब्राह्मण जाति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. ब्राह्मण समुदाय को भारतीय समाज में धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली माना जाता है.

भारतीय समाज में ब्राह्मणों को कब्जा में लेने अर्थात उनके प्रभाव को कम करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं. यहां कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं:

•शिक्षा और ज्ञान को प्रमुखता देना:

ब्राह्मण समुदाय में शिक्षा को महत्व दिया जाता है और  वे अक्सर शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाते हैं  इसीलिए दूसरी जातियों के लोगों को भी शिक्षा के महत्व को समझना चाहिए और इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

•धार्मिक मामलों में भागीदारी:

ब्राह्मण समुदाय को हिंदू धर्म के पुरोहित, ब्राह्मण पाठशाला के अध्यापक और आचार्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वे धर्म संबंधी ज्ञान, यज्ञों का निर्वहन और धार्मिक संस्कृति की संरक्षण करने में सक्षम होते हैं. इसलिए, उन्हें धार्मिक दृष्टि से प्रमुख माना जाता है. इसलिए अन्य जातियों के लोगों को भी धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए और योग्यता के आधार पर मंदिरों में पुजारी आदि के रूप में नियुक्ति की मांग करनी चाहिए.

•नेतृत्व का विकास:

ऐतिहासिक रूप से, ब्राह्मण समुदाय के लोग अक्सर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका निभाते रहे हैं और समाज में प्रभावशाली होते हैं. इससे उन्हें सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है. ब्राह्मणों की भाँति अन्य जाति के लोगों को भी सामाजिक नेतृत्व अपने हाथ में लेने का प्रयास करना चाहिए.

• सत्ता में हिस्सेदारी

ब्राह्मणों को विचारशीलता, संघटना क्षमता और नेतृत्व के गुणों के कारण राजनीतिक दलों में प्रमुखता प्राप्त होती है. इसके कारण उन्हें राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली माना जाता है. अन्य जातियों के लोगों को भी सत्ता में हिस्सेदारी के लिए संगठित प्रयास करने चाहिए.

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