
Last Updated on 11/07/2023 by Sarvan Kumar
कुछ ऐतिहासिक वृत्तांतों के अनुसार, खत्री समुदाय की उत्पति क्षत्रियों के एक समूह द्वारा हुआ जो प्राचीन भारत में योद्धा वर्ग थे. समय के साथ, कई क्षत्रियों ने विभिन्न कारणों से युद्ध छोड़कर व्यापार – वाणिज्य अपना लिया. इससे खत्री समुदाय का उदय हुआ. एक अन्य सिद्धांत से पता चलता है कि खत्री समुदाय की उत्पति ब्राह्मणों के एक समूह द्वारा हुआ जो व्यापारी बन गए थे. प्राचीन भारत में ब्राह्मण पुरोहित वर्ग थे, और वे पारंपरिक रूप से पठन , पाठन से जुड़े थे. हलांकि कुछ ब्राह्मण व्यापार और वाणिज्य, विशेषकर कपड़ा उद्योग में भी लगे हुए थे. आइए जानते हैं क्या खत्री ब्राह्मण होते हैं ,खत्री व्यापारी कैसे बन गए?
खत्री व्यापारी कैसे बन गए?
■ जिस क्षेत्र में खत्री मूल रूप से रहते थे, उस पर 1013 ईस्वी तक हिंदू राजाओं का शासन था. क्षेत्र पर मुस्लिम विजय के बाद खत्रियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे दृढ़ता से इस स्थिति का सामना किया उच्च स्तर की शिक्षा और बौधिक स्तर के कारण वे कठिन समय में भी जीवित रहने में सक्षम थे और व्यापार आदि अपना कर अपनी जीविका चलाते रहे.
■ एक किंवदंती के अनुसार, मुगल सम्राट औरंगजेब के समय तक खत्री सैन्य पेशे का पालन करते थे. औरंगजेब के दक्कन अभियान के दौरान कई खत्री मारे गए, और सम्राट ने उनकी विधवाओं को पुनर्विवाह करने का आदेश दिया. जब खत्रियों ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया, तो औरंगजेब ने उनकी सैन्य सेवा समाप्त कर दी, और उन्हें दुकानदार और ब्रोकर्स बनने का निर्देश दिया.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं. वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे उन्होंने खत्री समाज पर विस्तार से लिखा है जिनके कुछ बिंदु इस प्रकार है.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के अनुसार खत्री
■ खत्री कौन वर्ण हैं,तो हम साधारण रूप से कहते हैं कि ये क्षत्री हैं . क्षत्री से खत्री कैसे हुए इस में बड़ा विवाद है बहुत लोगों का तो यह सिद्धांत है कि पंजाब के लोग क्ष उच्चारण नहीं कर सकते, इससे ये क्षत्री से खत्री कहलाये.
■ जब परशुराम जी ने क्षत्रियों का संहार किया तब पंजाब देश में कई बालक बचा लिये गये थे जो ब्राह्मण के घर पले और उन्हीं से खत्री समाज की उत्पति हुई.
■ क्षत्री और खत्री से भेद राजा चंद्रगुप्त के समय से हुआ क्योंकि चंद्रगुप्त शूद्र के पेट से था और जब उसने चाणक्य ब्राह्मण के बल से नंदों को मारा और का राजा हुआ तो सब क्षत्रियों से उसने रोटी और बेटी का व्यवहार खोलना चाहा तब से बहुत से क्षत्री अलग होकर हिमालय की नीची श्रेणी में जा छिपे और जब उसने क्षत्रियों का संहार करना आरंभ किया तब से ये सब क्षत्री खत्रियों के नाम से बनिये बन कर बच गये.
■ क्षत्री कलियुग के प्रभाव से वैश्य हो गये हैं.
■ किसी समय सारे भारतवर्ष में जैनों का मत फैल गया था .तब सब वर्ण के लोग जैन हो गये थे विशेष करके वैश्य और क्षत्री. उन में से जो क्षत्री आबू के पहाड़ पर ब्राह्मणों ने संस्कार देकर बनाये वे तो क्षत्री हुए और उन लोगों से सैकड़ों वर्ष पीछे जो क्षत्री जैन धर्म छोड़ कर हिंदू हुए वे खत्री कहाये.
■ गुरु गोविंद सिंह ने अपने ग्रंथ नाटक के दूसरे तीसरे चौथे पांचवें अध्याय में लिखा है कि “सब खत्री मात्र सूर्यवंशी हैं. रामजी के दो पुत्र लव और कुश ने मद्र देश के राजा की कन्या से विवाह किया और उसी प्रांत में दोनों ने दो नगर बसाये . कुश ने कसूर, लव ने लाहौर उन दोनों के वंश में कई सौ वर्ष लोग राज्य करते चले आये. एक समय में कुशवंश में कालकेतु नामा राजा हुआ और लव वंश में कालराय इन दो राजाओ के समय में दोनों वंशों से आपस में बड़ा विरोध उत्पन्न हुआ. कालकेतु राजा बलवान था उसने सब लववंशी क्षत्रियों को उस प्रांत से निकाल दिया .राजा कालराय भागकर सनौड़ देश में गया और वहां के राजा की बेटी से विवाह किया और उससे जो पुत्र हुआ उस का नाम सोढ़ीराय रक्खा .उस सोढ़ीराय के वंश के क्षत्री सोढ़ी कहाये कुछ काल बीते जब सोढ़ियों ने कुश वंशवालों को जीता तो कुश वंश के भाग कर काशी में चले आये और वे लोग वहाँ रह कर वेद पढ़ने लगे और उन में प्राय: बड़े बड़े पंडित हुए . बहुत दिनों पीछे जब सोढ़ियों ने सुना कि हमारे दूसरे भाई लोग काशी में वेद पढ़कर पंडित हुए है तो उनको काशी से बुलाया और वेद सुनकर अपना सब राज्य उन लोगों को दे दिया, जिनकी वेद पढ़ने से वेदी संज्ञा हो गई थी. काल के बल से इन दोनों वंश के राज्य नष्ट हो गए और वेदियो के पास केवल बीस गाँव रह गये और उन्हीं वेदियों के वंश में साल 1469 में कालू चोणे के घर बाबा नानक का जन्म हुआ और सीढ़ियों के वंश में गुरु गोविंद सिंह हुए”. गुरु नानक साहब अपने ग्रंथ साहब में जहाँ चारों वर्णों का नाम लिखते हैं वहां ब्राहमण, खत्री, वैश्य, शूद्र लिखते हैं.

Disclosure: Some of the links below are affiliate links, meaning that at no additional cost to you, I will receive a commission if you click through and make a purchase. For more information, read our full affiliate disclosure here. |
See List of: |