
Last Updated on 11/11/2021 by Sarvan Kumar
कोल भारत में पाई जाने वाली एक जनजाति है. अधिकांश कोल भूमिहीन हैं जो जंगलों में अपना जीवन यापन करते हैं. यह जीविका चलाने के लिए मुख्य रूप से वन उत्पाद और जंगल के संसाधनों पर निर्भर हैं. यह जंगल काट कर लकड़ियों को स्थानीय बाजार और शहरों में पहुंचाने का काम करते थे, जहां लकड़ियों की बिक्री की जाती थी. यह पानी ढोने और मछली पकड़ने का भी काम करते हैं. वर्तमान में इस जाति के अधिकांश लोग उद्योगों में मजदूर के रूप में कार्य करते हैं. यह मुख्य रूप से हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं. कोल समाज कई बहिर्विवाही कुलों में विभाजित है, जिनमें प्रमुख हैं- ब्राह्मण, बारावीरे, भील, चेरो, मोनासी, रौतिया, रोजबोरिया, राजपूत और थलुरिया. यह हिंदी और बघेलखंडी भाषा बोलते हैं. आइए जानते हैैं कोल जाति का इतिहास, कोल शब्द की उत्पति कैसे हुई?
कोल किस कैटेगरी में आते हैं?
सरकारी नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिनिधित्व बढ़ाकर विकास के मुख्यधारा में शामिल करने के लिए इन्हें भारत सरकार की सकारात्मक भेदभाव प्रणाली (आरक्षण) के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति (scheduled tribe) और अनुसूचित जाति (scheduled caste)के रूप में वर्गीकृत किया गया है. मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. उत्तर प्रदेश में इन्हें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
कोल की जनसंख्या कहां पाए जाते हैं?
यह लगभग 5 शताब्दी पूर्व छोटा नागपुर से मध्य भारत में आए. यह मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाए जाते हैं. प्रतिष्ठित अखबार नवभारत टाइम्स के मुताबिक झारखंड में करीब दो लाख कोल जाति के लोग निवास करते हैं.
मध्य प्रदेश में लगभग 10 लाख कोल निवास करते हैं, वही उत्तर प्रदेश में इनकी आबादी लगभग 5-7 लाख है. यह उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी जनजाति हैं. यहां यह मुख्य रूप से प्रयागराज (इलाहाबाद), वाराणसी, बांदा और मिर्जापुर जिलों में निवास करते हैं.
कोल जाति का इतिहास
कोल विद्रोह
कोल विद्रोह कोल जनजाति द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार तथा आर्थिक और शारीरिक शोषण के विरुद्ध 1831 में किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह है. इस विद्रोह का नेतृत्व बुधू भगत, जोआ भगत और मदारा महतो ने किया किया था. इस विद्रोह को निर्दयता से दवा दिया गया. भारी संख्या में कोल जाति के लोग मारे गए, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया. यह विद्रोह असमानता, शोषण और अत्याचार के विरुद्ध अन्य आदिवासी जातियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया.

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