
Last Updated on 12/12/2021 by Sarvan Kumar
मजहबी सिख (Mazhabi Sikh) उत्तर भारत में पाया जाने वाला वाल्मीकि जाति का एक समूह है, जिन्होंने हिंदू धर्म त्याग कर सिख धर्म को अपना लिया. मुख्य रुप से गरीब किसानों का समुदाय होने के कारण भले ही आज इनकी पहचान धुंधली है, लेकिन इनका इतिहास स्वर्णिम और गौरवशाली रहा है. यह समुदाय अपनी निडरता और बहादुरी के लिए जाना जाता है. मजहबी सिख खालसा सेना, ब्रिटिश भारतीय सेना और आजादी के बाद भारतीय सेना में उत्कृष्ट सैन्य सेवा देने के लिए जाने जाते हैं. आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. आइए जानते हैं मजहबी सिख का इतिहास, मजहबी सिख की उत्पति कैैसे हुई?
मजहबी सिख की जनसंख्या
यह मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, उत्तराखंड, चंडीगढ़ और दिल्ली में पाए जाते हैं. 2011 की जनगणना में, पंजाब में इनकी आबादी 26,33,921 दर्ज की गई थी. इनमें से 25 लाख 62 हजार 761 लोगों ने खुद को सिख, 71,000 लोगों ने हिंदू और 160 लोगों ने बौद्ध बताया था. इसी जनगणना में राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इनकी आबादी क्रमश: 1,58,698, 1,41,681 और 14,192 दर्ज की गई थी.
मजहबी सिख किस धर्म को मानते हैं?
यह मुख्य रूप से सिख धर्म को मानते हैं. ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में कुछ ने सिख धर्म छोड़कर इसाई धर्म अपना लिया है, जिन्हें ईसाई मजहबी सिख कहा जाता है. कुछ हिंदू धर्म का भी पालन करते हैं. जबकि छोटी संख्या में कुछ ने बौद्ध धर्म को भी अपना लिया है.
मजहबी सिख की उत्पत्ति कैसे हुई?
मजहबी शब्द फारसी भाषा के शब्द “मजहब” से लिया गया है, अर्थ होता है- ‘वफादार”. जब सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर को दिल्ली में मुगलों द्वारा शहीद कर दिया गया, तो वाल्मीकि जाति के 3 लोगों ने उनके खंडित शरीर (उनके शव और शीश को) मुगलों से बरामद करके गुरु तेग बहादुर जी के बेटे गुरु गोविंद सिंह को सौंप दिया.उनके इस कार्य से प्रभावित होकर, गुरु गोविंद सिंह जी ने उन्हें खालसा (सिख धर्म) में भर्ती कर लिया और उन्हें मजहबी और रंगरेटे नाम दिया. वर्तमान मजहबी सिख समुदाय के भीतर एक उप समूह है, जो रंगरेटा के नाम से जाना जाता है. यह इस आधार पर अपनी उच्च स्थिति का दावा करते हैं कि उनके पूर्वजों में से एक भाई जैता रंगरेटा थे, जिन्होंने आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर जी के सिर को दिल्ली से लाकर गुरु गोविंद सिंह जी को सौंपा था. इस कार्य के लिए, उनके वीरता और त्याग के सम्मान में, गुरु गोविंद सिंह जी ने उन्हें “रंगरेटा गुरु का बेटा” कहा था.

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