Last Updated on 12/11/2021 by Sarvan Kumar
सहरिया (Saharia, Sahariya, Sehariya, or Sahar) भारत में पाई जाने वाली एक जाति है. इन्हें रावत, बनरावत, बनरखा और सोरेन के नाम से भी जाना जाता है. यह मुख्य रूप से उत्तर भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में निवास करते हैं. जीवन यापन के लिए यह मुख्य रूप से वनों पर निर्भर हैं. यह विशेषज्ञ लकड़हारे और वन उत्पाद संग्रहकर्ता हैं. पारंपरिक रूप से इनका मुख्य व्यवसाय लकड़ी, शहद, गोंद, तेंदूपत्ता, महुआ और औषधीय जड़ी-बूटियों को इकट्ठा करना और बेचना है. यह टोकरी बनाने, खनन और उत्खनन और पत्थर तोड़ने का काम भी करते हैं. यह खैर के वृक्षों से कत्था बनाने में विशेष रूप से कुशल हैं. यह टोकरी बनाने में माहिर होते हैं. टोकरी बनाना इस समुदाय का एक महत्वपूर्ण शिल्प है. यह शिकार करने और मछली पकड़ने में भी कुशल होते हैं. कुछ सहरिया खेती का काम भी करते हैं, जबकि इस समाज के भूमिहीन सदस्य मजदूरी का करते हैं. आइए जानते हैं सहरिया जाति का इतिहास, सहरिया शब्द की उत्पति कैसे हुई?
सहरिया किस कैटेगरी में आते हैं?
आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत इन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. भारत सरकार ने इन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के उद्देश्य से विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (Particularly vulnerable tribal group, PVTG) के अंतर्गत वर्गीकृत किया है.
सहरिया की जनसंख्या, कहां पाए जाते हैं?
यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पाए जाते हैं. मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से मुरैना, शिवपुर, भिंड, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, विदिशा और गुना जिलों में निवास करते हैं. राजस्थान में यह एक मात्र आदिम जाति है,जो बांरा जिले की किशनगंज और शाहबाद तहसीलों में निवास करती है.
सहरिया किस धर्म की मानते हैं
यह हिंदू धर्म को मानते हैं. यह हिंदू त्योहारों जैसे जन्माष्टमी, रक्षाबंधन, दीपावली, होली, तेजा दशमी आदि मनाते हैं. इस जनजाति के लोग जीववाद में विश्वास करते हैं. यह दुर्गा माता, हनुमान जी जैसे हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. यह गोंड देवता, वीर तेजा, ठाकुर बाबा, बुंदेला देवता, लालबाई, बेजसन, सूरिन और बीजासुर जैसे कई स्थानीय देवी देवताओं की भी पूजा करते हैं.
सहरिया की उप-जातियां
सहरिया समाज कई बहिर्विवाही गोत्रों में विभाजित है, जिनमें प्रमुख हैं- सनाउना, राजौरिया, चंदेल, रोहतेले, सोलंकी, खरेइया, बगोलिया, जेचेरिया, कुसमोर्ना, चकरदिया, कुर्वाना और ठियोगना.
सहरिया शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
सहरिया शब्द की उत्पत्ति हिंदी के शब्द “सहरा” से हुई है, जिसका अर्थ होता है- “जंगल या वन”. इस प्रकार
सहरिया का अर्थ है-जंगलों में निवास करने वाले.
सहरिया जाति का इतिहास
इनकी उत्पत्ति के बारे में अनेक अनेक मान्यताएं हैं.
एक प्रमुख मान्यता के अनुसार, यह रामायण की सबरी से अपनी उत्पत्ति होने का दावा करते हैं. जबकि इस समाज के अन्य सदस्य, भगवान शिव के उपासक बैजू भील के वंशज होने का दावा करते हैं. एक अन्य के किवदंती के अनुसार, सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा जी सृष्टि बनाने में व्यस्त थे. उन्होंने लोगों को बैठने के लिए एक जगह बनाई. उस स्थान के मध्य में उन्होंने एक सहरिया को बैठाया, जो एक साधारण व्यक्ति था. बाद में अन्य लोग भी उसके साथ बैठने वहां आए, लेकिन उन्होंने उसे वर्गाकार केंद्र से एक कोने में धकेल दिया. जब ब्रम्हा जी ने यह देखा तो वह कुपित हो गए. उन्होंने सहरिया को दबाव से निपटने में असमर्थता को देखकर डांटते हुए कहा,-“आगे से तुम जंगलों या दूरदराज के इलाकों में ही रहोगे”.