
Last Updated on 29/08/2020 by Sarvan Kumar
कांशीराम एक भारतीय राजनीतिज्ञ ,समाज सुधारक और करिश्माई दलित नेता थे. कांशीराम को बहुजन नायक और साहेब के नाम से भी जाना जाता है.
उन्होंने भारतीय वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे के पायदान पर आने वाले शोषित- अछूतों, दलितों और बहुजन समाज -के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए कार्य किया.
कब और कहाँ हुआ था जन्म?
कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 में पंजाब के रूपनगर जिले में हुआ था. वो सिख रामदासिया समुदाय से आते हैं जिसे अछूत माना जाता था.उनके पिता का नाम हरि सिंह था .वे सात भाइयों में सबसे बड़े थे. उनके माता जी का नाम बिशन कौर था. बिशन कौर एक धार्मिक महिला थी. दलित परिवार (चमार जाति) से आने के बावजूद भी कांशीराम का परिवार खुशहाल और समृद्ध था . कांशीराम के दादा ढेलो राम आर्मी के रिटायर्ड जवान थे.
कांशीराम की शिक्षा
स्थानीय विद्यालयों से स्कूली शिक्षा लेने के बाद कांशीराम ने रूपनगर गवर्नमेंट कॉलेज से 1956 में बीएससी डिग्री लिया.
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पुणे चले गए, जहां उन्होंने एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेटरी में काम करना शुरू किया. यह नौकरी उन्हें भारत सरकार के आरक्षण नीति के तहत मिली थी.
जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा
पुणे में पहली बार कांशीराम को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा. इस घटना का उनके मन पर काफी प्रभाव पड़ा. वे 1964 में शोषित अछूतों, दलितों और बहुजन समाज को उनका हक़ दिलाने के लिए एक्टिविस्ट बन गए.
शुरुआत में उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को सपोर्ट किया. रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया कांग्रेस का सपोर्ट किया करती थी जिससे उनका मोहभंग हो गया.
कांशीराम का राजनीतिक करियर
1971 में उन्होंने ऑल इंडिया एससी, एसटी ,ओबीसी और माइनॉरिटी एम्पलाई एसोसिएशन का गठन किया. 1978 में यह संगठन BAMCEF नाम से जाना जाने लगा. इस संगठन का उद्देश्य था पढ़े लिखे SC,ST, OBC समाज और माइनॉरिटी समुदाय के लोगों को अंबेडकर के सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए राजी करना. यह संगठन कोई राजनीतिक और धार्मिक संगठन नहीं था.
1981 में वे एक अन्य सामाजिक संगठन का गठन किया जिसका नाम था दलित शोषित समाज संघर्ष समिति. कांशीराम ने दलित वोट को एकजुट करना शुरू कर दिया और 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया. कांशीराम के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी -दलित और ओबीसी समुदाय को एक साथ लाने की. उन्हें यह सफलता मायावती के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में मिली.
कांशीराम ने 1982 में एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था ‘द चमचा एज‘ . इस किताब में उन्होंने दलित नेताओं जैसे जगजीवन राम और रामविलास पासवान को चमचा कहा था. तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि दलितों को राजनीति अपने हितों के रक्षा के लिए करनी चाहिए ना कि उन्हें दूसरे दलों के साथ काम करके दलित हितों के साथ समझौता करना चाहिए.
बहुजन समाज पार्टी की स्थापना के बाद कांशीराम ने कहा कि उनकी पार्टी पहला चुनाव हारने के लिए लड़ेगी, दूसरा चुनाव लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए और तीसरा चुनाव जीतने के लिए लड़ेगी. कांशीराम 1988 में इलाहाबाद सीट से भारत के भविष्य के प्रधानमंत्री वीपी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े. उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन 70000 वोटों से हार गए.1989 में वे दिल्ली ईस्ट लोकसभा चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़े और चौथे नंबर पर आये.1996 में वो होशियारपुर सीट से 11वीं लोकसभा के लिए चुने गए. वे भारतीय जनता पार्टी को महाभ्रष्ट पार्टी कहा करते थे और कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और जनता दल सभी को बीजेपी के ही समान महाभ्रष्ट समझते थे.
कांशीराम 2002 में धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म में जाने का इरादा जाहिर किया. इसके लिए उन्होंने 14 अक्टूबर 2006 का दिन तय किया .यह वही दिन था जब 50 साल पहले अंबेडकर ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था. वे अपने 2 करोड़ समर्थकों के साथ धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बन जाना चाहते थे. जिसमे न केवल दलित समुदाय के लोग थे बल्कि विभिन्न जातियों के लोग भी शामिल थे. वो ऐसा इसलिए करना चाहते थे कि बौद्ध धर्म के नाम पर लोगों को एकजुट किया जा सके, खासकर दलितों और पिछले जाति के लोगों को. लेकिन इससे पहले कि यह हो पाता 9 अक्टूबर 2006 को यानी कि 5 दिन पहले ही कांशीराम की मृत्यु हो गई.
कांशीराम की मृत्यु
काशीराम को डायबिटीज की बीमारी थी. उन्हें 1994 में हार्ट अटैक भी हुआ था. 2003 में उन्हें पैरालिटिक स्ट्रोक हुआ. बुढ़ापे और बीमारी के कारण वो काफी कमज़ोर हो गए थे. जीवन के अंतिम 2-3 साल वो बिस्तर पर ही रहे. 9 अक्टूबर 2006 को 72 साल की आयु में घातक दिल का दौरा पड़ने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. उनके इच्छा के अनुरूप बौद्ध रीति रिवाज से उनकी अंत्येष्टि की गई. चिता को अग्नि दिया था उनके उत्तराधिकारी मायावती ने.

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