
Last Updated on 13/02/2020 by Sarvan Kumar
काफी गर्मा-गर्मी के माहौल में दिल्ली का चुनाव आखिरकार संपन्न हो गए. जीत के लिए आश्वस्त आम आदमी पार्टी के पक्ष में जब एग्जिट पोल आया तो बीजेपी को विश्वास नहीं हुआ. दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने एग्जिट पोल फेल होने का दावा किया. अमित शाह समेत पार्टी के दूसरे नेता भी बीजेपी की जीत का दावा करने लगे. बीजेपी समर्थकों में उम्मीद जगने लगा. लेकिन जब 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए, आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीतकर बीजेपी के सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. बीजेपी को केवल 8 सीटों से संतोष करना पड़ा, जो कि पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में में दोगुने से ज्यादा है. इस तरह से विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार का सिलसिला रुकता हुआ नहीं दिख रहा है. आइए जानते हैं दिल्ली में आम आदमी पार्टी के जीत के क्या मायने है? क्यों हारी बीजेपी?
1. चुनाव प्रचार में पैनापन का अभाव
दिल्ली विधानसभा में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के चुनाव प्रचार अभियान में पैनापन का अभाव रहा. बीजेपी का चुनाव प्रचार मुख्य रूप से आरोप लगाने तक सीमित रहा. उनके पास ऐसे मुद्दे नहीं थे जिसके सहारे वह जनता को लुभा सके.
2. केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड
केजरीवाल यह जानते थे कि बीजेपी हिंदुत्व के सहारे उन्हें घेरने की कोशिश करेगी. इसीलिए उन्होंने मौका देखकर खुद को हनुमान भक्त बता दिया ताकि बीजेपी के हिंदुत्व को काउंटर किया जा सके.
3. बीजेपी के नेताओं की गलत बयानबाजी
इस पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी नेताओं कि गलत बयानबाजी, “गद्दारों को गोली मारो”, “केजरीवाल आतंकी है” कहना बीजेपी पर भारी पड़ा. जब केजरीवाल को आतंकी कहा गया तब केजरीवाल ने केवल यह कहा कि मैं तो दिल्ली का बेटा हूं अगर मैं आतंकवादी हो तो मुझे वोट मत करना.
5. केजरीवाल का मोदी पर व्यक्तिगत हमले ना करना
मोदी के पहले कार्यकाल में केजरीवाल पहले नेता थे जो मोदी पर सबसे ज्यादा हमलावर थे. लेकिन धीरे-धीरे केजरीवाल समझ गए कि मोदी पर व्यक्तिगत हमले करने का लाभ मोदी को ही मिलता है. इसीलिए धीरे-धीरे उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया और मोदी पर व्यक्तिगत हमले करना बंद कर दिया, जिसका लाभ भी आम आदमी पार्टी को मिला.
6. मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण
दिल्ली में बीजेपी सोचती रही कि मुस्लिमों का वोट आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में बटेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. मुस्लिमों ने एकतरफा आम आदमी पार्टी के लिए वोट किया. जिसके कारण आम आदमी पार्टी और मजबूत हुई और सारे मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में जबरदस्त जीत दर्ज किया.
7. केजरीवाल के मुकाबले सही चेहरे का अभाव
दिल्ली में बीजेपी केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए कोई मजबूत चेहरा नहीं दे पाई. आईआईटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद केजरीवाल राजस्व विभाग में एक बड़े अधिकारी रहे, उसके बाद उन्होंने इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सहारे अपनी अलग पहचान बनाई. केजरीवाल की छवि एक पढ़े-लिखे स्वच्छ छवि वाले जमीनी नेता की है जो हर वर्ग वर्ग को आकर्षित करता है, जिसका तोड़ फिलहाल दिल्ली में तो बीजेपी के पास नहीं है.
8. हिंदुत्व के मुद्दे अत्यधिक निर्भरता
लगभग हर चुनाव में बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर आश्रित रहती है. जिसका उन्हें फायदा भी होता है लेकिन आप हर चुनाव हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ेंगे और स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज करेंगे तो जनता आप से कनेक्ट नहीं कर पाएगी.
9. केजरीवाल का पानी बिजली फ्री करना
दिल्ली में फ्री पानी, फ्री बिजली, महिलाओं के लिए बस सेवा और मोहल्ला क्लीनिक केजरीवाल के फेवर में गया.
10. केजरीवाल का शिक्षा सुधार
आम आदमी पार्टी ने अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हुए कायाकल्प को जोर-शोर से प्रचार किया. जिसे दिल्ली के मतदाताओं ने जमीनी मुद्दा समझा और केजरीवाल के लिए वोट किया.
11.मोदी के चेहरे पर अत्यधिक निर्भरता
दिल्ली में जो भी वोट बीजेपी को मिला वह मोदी के नाम पर ही मिला. लेकिन दिल्ली की जनता ने सातों सीट बीजेपी को देकर मोदी को पहले ही प्रधानमंत्री बना दिया है. यह चुनाव दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए था इसीलिए मोदी के नाम पर अत्यधिक निर्भरता और लोकल चेहरों का अभाव बीजेपी पर भारी पड़ा रहा.
12. पारंपरिक राष्ट्रवाद पर अत्यधिक निर्भरता
बीजेपी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक ही मुद्दे पर लड़ती है. लेकिन जनता इन मुद्दों के लिए आपको पहले ही वोट दे चुकी है. जनता उन्हीं मुद्दों पर आपको फिर से वोट क्यों देगी?
13. लोगों के बुनियादी समस्याओं की नजरअंदाज करना
बीजेपी को अब यह समझ लेना चाहिए कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव के अलग मुद्दे होते हैं. विधानसभा चुनाव में भी आप राष्ट्रीय मुद्दों का सहारा लेंगे और लोगों के बुनियादी समस्याओं- पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य- को नजरअंदाज करेंगे तो आप को जनता नजरअंदाज करेगी.
14. कार्यकर्ताओं की अनदेखी
दिल्ली चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर एक महिला का वीडियो वायरल हुआ. महिला ने खुद को बीजेपी कार्यकर्ता होने का दावा करते हुए कहा कि वह दिल्ली के एक सांसद से मिलने गई. उस सांसद ने महिला के अभिवादन का जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा और नजरअंदाज करते करके आगे बढ़ गए. अगर आप कार्यकर्ताओं की अनदेखी करेंगे तो उनके मनोबल पर प्रभाव पड़ेगा और आप चुनाव कैसे जीत सकते हैं?
15. स्थानीय नेताओं की अनदेखी, सांसदों के पास जनता के लिए टाइम नहीं।
दिल्ली के सांसद जनता के बीच नहीं जाते. वह अपनी बात केवल ट्विटर के सहारे कहते हैं और जिसके कारण उनकी जमीनी पकड़ नहीं दिखती और इसका खामियाजा चुनाव में उठाना पड़ा.
16. गलत उम्मीदवारों का चयन
बीजेपी पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि स्थानीय नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई. उम्मीदवारों के चयन में कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं के विचार को प्रमुखता नहीं दी गई.
17. शाहीन बाग कार्ड फेल।
बीजेपी शाहीन बाग का मुद्दा बनाकर राष्ट्रवाद के सहारे दिल्ली जीतना चाहती थी. अमित शाह ने यहां तक कह दिया था कि ईवीएम बटन इतनी जोर से दबाना ताकि करंट शाहिनबाग तक पहुंचे. लेकिन शाहीनबाग के राजनीतिकरण से बीजेपी के वोट शेयर में केवल 1-2% की हीं वृद्धि हुई. शाहीन बाग पर ज्यादा शोर मचाना बीजेपी को भारी पड़ा. इसका कारण यह है कि केंद्र में बीजेपी की सरकार है. गृह मंत्रालय बीजेपी के पास है और दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के अधीन है. लोगों को लगा शाहीन बाग कानून-व्यवस्था का मामला है. बीजेपी को कार्यवाही करनी चाहिए ना इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहिए. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आया पहले जामिया और फिर शाहीन बाग में गोलीबारी की घटना हुई और इस घटना के लिए बीजेपी केजरीवाल को दोषी ठहराने लगी. लेकिन जनता को पता था कि दिल्ली में कानून व्यवस्था बनाए रखने का कार्य केंद्र का है. इसीलिए शाहीन बाग का मुद्दा बीजेपी पर उल्टा पड़ गया.
18. हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं कर पाई बीजेपी
दिल्ली में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो पाया।. दिल्ली में जाट और ब्राह्मण समाज का वोट बीजेपी को जरूर गया लेकिन सामान्य वर्ग, ओबीसी और दलित वोट आम आदमी पार्टी को गए.
19. केजरीवाल का सटीक चुनाव प्रचार
बीजेपी के विपरीत आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार अभियान को विकास के मुद्दों और अपने किए गए कामों के प्रचार-प्रसार तक ही सीमित रखा.
20. लोकप्रिय चेहरों की पैराशूट लैंडिंग करवाना।
आप ने दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में देखा होगा. किरण बेदी पहले आम आदमी पार्टी में शामिल होती हैं, उसके बाद अचानक हुआ आम आदमी पार्टी छोड़ देती है और रातों-रात बीजेपी उन्हें सीएम कैंडिडेट बना लेती है और विधानसभा चुनाव बुरी तरह से हार जाती है. जब आप स्थानीय नेताओं की और जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की अनदेखी करेंगे तो इसका नुकसान आपको उठाना पड़ेगा. ऐसा ही हरियाणा में भी हुआ. बीजेपी ने लोकप्रिय चेहरे (बबीता फोगाट और योगेश्वर दत्त) को चुनाव मैदान में उतार तो दिया. लेकिन इससे वहां के जमीनी नेताओं में नाराजगी देखने को मिली और पॉपुलर चेहरों का लाभ बीजेपी को नहीं मिल पाया.
21. फ्री की योजना का बंद हो जाने का डर
बीजेपी ने दिल्ली में फ्री बिजली, फ्री पानी, मोहल्ला क्लीनिक इत्यादि में कमी निकालने का कोशिश तो किया लेकिन कोई ऐसी योजना जनता के बीच लेकर नहीं आ पाए जिसके सहारे वह केजरीवाल का काउंटर कर सके. उल्टे दिल्ली के मतदाताओं कों यह डर बैठ गया कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो यह फ्री की योजना बंद हो जाएगी इसलिए भी उन्होंने एकजुट होकर आम आदमी पार्टी को वोट किया है.

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