
Last Updated on 22/01/2023 by Sarvan Kumar
उत्तर प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले दो-तिहाई लोगों के बीच छुआछूत जैसी सामाजिक कुप्रथा बरकरार है.समाज से छुआछूत मिटाने के लिए काफी लंबे वक्त तक जन आंदोलन हुए. बावजूद इसके 21वीं सदी के भारत में ये सामाजिक बीमारी अब भी घर किए हुए है. आइए जानते हैं कितनी गहरी है छुआछूत प्रथा? छुआछूत समस्या से बचने के लिए दलित क्या करें? भारत में सामाजिक बुराई छुआछूत की पूरी जानकारी.
गहरी है छुआछूत प्रथा
एक सर्वे के अनुसार राजस्थान और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की दो तिहाई आबादी अब भी इस सामाजिक दंश को झेलने के लिए मजबूर है. द इंडियन एक्सप्रेस ने एक सर्वे के अनुसार गांवों के अलावा राजस्थान की 50% शहरी आबादी ने छुआछूत मानने की बात स्वीकार की है. उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 48 % है. सर्वे के अनुसार, राजस्थान में 60% और उत्तर प्रदेश में 40% लोग दलित और गैर-दलित के बीच विवाह के खिलाफ हैं.
कैसे हुआ सर्वे
जानकारी के मुताबिक इस सर्वे को सोशल एटीट्यूड रिसर्च इंडिया (सारी) ने टेक्सास यूनिवर्सिटी, जेएनयू और रिसर्च इंस्टीट्यूट कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक ने मिलकर इस सर्वे कराया था. सोशल एटीट्यूड रिसर्च इंडिया (SARI) नाम के इस सर्वे को साल 2016 में फोन के जरिए कराया गया था. इसमें दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, यूपी के इलाके शामिल थे. इसका मुख्य मकसद दलितों और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के आंकड़े जुटाना था. सर्वे में कुल 8065 पुरुष-महिलाओं ने भाग लिया.इसके लिए दिल्ली, मुंबई, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में आठ हजार से अधिक लोगों के साथ बातचीत की थी.
अंतरजातीय विवाह का विरोध
सर्वे से निकलकर आया कि दोनों राज्यों के इन इलाकों में लोग दलित और गैर दलित हिन्दुओं में अंतरजातीय विवाह का विरोध करते हैं. बताया गया कि महिलाएं इस कुप्रथा को ढोने के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं. ग्रामीण राजस्थान की 66 फीसद तो ग्रामीण यूपी की 64 फीसद आबादी छुआछूत की जद में है. सर्वे में बताया गया है की इन राज्यों की बड़ी आबादी दलित और गैर-दलित हिन्दुओं में अतंरजातीय विवाह के खिलाफ है. सर्वे के अनुसार राजस्थान की 60 % और यूपी की 40 % ग्रामीण आबादी ऐसी है जो अंतरजातीय विवाह का विरोध करती है. इतना ही नहीं सर्वे में शामिल लोगों ने ऐसे विवाह को रोकने के लिए एक कानून की मांग भी की है.
क्या छुआछूत के शिकार सिर्फ गरीब हैैं?
अगर आप सोच रहे जातिगत भेदभाव और छुआछूत केवल गरीब और कमज़ोर दलितों के साथ होता है , तो ज़रा रुकिए!
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने खुलासा किया था की उन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए भी छुआछूत का शिकार होना पड़ा. मांझी ने बताया कि वे बिहार के मधुबनी में चुनाव प्रचार के दौरान के एक मंदिर में गए जहां उन्होंने पूजा-अर्चना की थी. लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि पूजा के बाद लोगों ने मंदिर परिसर और मूर्ति को धोया था. यहां तक की उस घर को भी धो दिया गया, जहां वो कुछ वक्त के लिए ठहरे थे. मुख्यमंत्री जैसे उच्च पद पर बैठे किसी व्यक्ति के साथ हुई ये ऐसी घटना है जो आज भी सोचने को मजबूर कर देती है.
दलित सिर्फ एक वोट बैंक!
ये बड़े दुर्भाग्य का विषय है की आज़ादी से अब तक दलित के नाम पर बस राजनीति हुयी है. दलित सिर्फ एक वोट बैंक बन के रह गए हैं. दलित कल्याण के ना जाने कितने योजनायें लायी गयी पर दलितों के स्थिति में ज़यादा सुधार ना हो सका. यह अत्यंत ही दुखद है , ढेर सरे दलित नेता केंद्र में मंत्री रहे, राज्यों के मुख्यमंत्री रहे वो भी दलितों को मुख्यधारा में जोड़ ना पाए. यह इन दलित नेताओं और दूसरे नेताओं के मंशा पर सवालिया निशान लगाता है. दलित एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिसे बस हमारे नेता अपने सियासी फायदे के लिए बस भुना लेना चाहते हैं.
क्या करें दलित?
》 दलितों को दारू, शराब, जुए जैसे चीज़ों के दुष्प्रभाव से खुद को बचाना होगा जिससे वे अपने परिवार और समुदाय के विकास के लिए सही माहौल और आधारिक संरचना तैयार कर सकें.
》 2.65 % दलित बच्चों ने स्कूल नहीं देखा है. अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति सचेत रहें. उनको शिक्षा के लिए , आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें.
》बच्चों को स्कूल भेजें. सरकार की तरफ से दी जा रही सुविधाओं; वर्दी, पुस्तक, साइकिल एवं छात्रवृत्ति; का लाभ उठायें.
》 बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि जिसमें राजनीति चेतना होगी, वही आगे बढ़ेगा.दलित तभी आगे बढ़ेंगे जब वो एक नई राजनीति चेतना से एकजुट होकर अपनी शक्ति को पहचानें. दलितों को एकजुट होकर एक राजनीतिक शक्ति बनना होगा. राजनीतिक शक्ति हासिल करने के लिए यह ज़रूरी है की वे विभिन्न जातियों में ना बंटे और अपनी एक जाति के रूप में पहचान बनाये.
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