
Last Updated on 30/08/2020 by Sarvan Kumar
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ फैलाना आजकल जोरो पर है. हर छोटी बडी खबर पर असामाजिक तत्व ऐसी खबर फैला देते हैं कि लोगों को सही गलत का पता नहीं चल पाता.
19 अक्टूबर, 2018 : नवरात्रि में 9 दिनों तक दिन माता की भक्ति के बाद आज का दिन अधर्म पर धर्म की जीत के प्रतीक रावण के पुतला दहन का था. लोग अपने-अपने शहरों में बड़े उत्साह के साथ रावण दहन देखने को निकले थे. लोग रावण दहन समारोह से अपने घर वापस भी नहीं लौटे थे कि देश में यह खबर जंगल की आग तरह फैल गई. पंजाब के अमृतसर से एक बुरी खबर आयी शाम को रावण दहन के दौरान ट्रेन के चपेट में आ जाने से लगभग 61 लोगों की मौत हो गई थी और 100 ज्यादा लोग घायल थे. हालांकि यह एक सरकारी आंकड़ा है वास्तविकता में इससे ज्यादा भी जान-माल की क्षति हो सकती है.
जानकारी के मुताबिक अमृतसर के जोड़ा फाटक के पास रावण दहन देखने के लिए भारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे. लोग रेल की पटरियों पर खड़े होकर रावण दहन देख रहे थे कि अचानक तेज रफ्तार से आयी एक ट्रेन ने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया और सैकड़ों लोगों को रौंदते हुए चली गयी.
हमारे देश की राजनीति इतनी गिर गई है हमारे नेता लाश और चिता की आग पर भी अपनी गंदी राजनीति की रोटी सेकने से बाज नहीं आते. बरहाल आगे बढ़ते हैं. इस हादसे में सबसे पहले जिनका नाम आया वह थीं पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर.खबरों की माने नवजोत कौर इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थी और रावण दहन का आयोजन करने वाला नेता कांग्रेस का था जो इस मामले के बाद फरार हो गया.
ऐसा क्यों हुआ, कैसे हुआ, इसमें दोषी कौन है- यह तो जांच के बाद पता चलेगा. लेकिन जितने भी खबर सामने आई उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस हादसे के लिए लापरवाह दर्शक, मुर्ख आयोजक, बेपरवाह नेता और गैर जिम्मेदार प्रशासन जिम्मेदार है.
इस ब्लॉग का मुद्दा इन सब बातों से हट कर है. आइए जानते हैं अमृतसर ट्रेन हादसे के बाद सोशल मीडिया पर क्या हुआ
कई चैनलों ने एक न्यूज़ दिखाया जिसमें एक प्रत्यक्षदर्शी ने यह दावा किया कि हादसे से पहले दो और ट्रेन गुजरी थी, जिन्होंने अपना स्पीड कम कर लिया था. फिर क्या था सोशल मीडिया के शूरवीरों ने मोर्चा संभाल लिया. इसके आगे जो खेल शुरू हुआ उस खेल को समझना बेहद जरूरी है.
सोशल मीडिया पर ट्रेन ड्राइवर के कई नाम उछाले जाने लगे- कुछ नाम हिंदू थे, कुछ नाम मुस्लिम थे, और कुछ नाम सिख भी थे.
जब सोशल मीडिया को खंगाला गया तो इस हादसे पर लोग अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग अलापते से नजर आए. इसके बारे में नीचे बताया जा रहा है.
जानिए फेसबुक पर क्या हुआ-
1. एक यूजर मुकेश कुमार ने ‘संघवाद से आजादी’ ग्रुप में पोस्ट किया-
” अमृतसर में कत्लेआम मचाने वाले ट्रेन ड्राइवर का नाम मनोज मिश्रा है सोचा बता दूं”
2. एक दूसरे यूजर अभिनव अस्थाना ने ‘आई हेट आप पार्टी’ ग्रुप में पोस्ट किया-
“पंजाब ट्रेन ड्राइवर का नाम इम्तियाज अली है. सोचा बता दूं.”
3. प्रभाकर यादव नाम के यूजर ने ‘समाजवादी इंडिया: डिजिटल फोर्स’ ग्रुप में पोस्ट किया-
“ट्रेन ड्राइवर का नाम है,मनोज मिश्रा बता दूं.”
4. विनोद कुमार ने अपने वॉल पर लिखा-
“अमृतसर ट्रेन हादसा: ट्रेन ड्राइवर इम्तियाज अली, अभी कुछ समझना बाकी है क्या?”
5. एक यूज़र ने समाचार पत्र की कटिंग शेयर करते हुए लिखा-
“एक समाचार पत्र ने ड्राइवर का नाम जगबीर है और दूसरे अखबार ने अरविंद कुछ गड़बड़ है.
जी हाँ. कुछ नहीं पूरा ही गड़बड़ है !
इसके बाद जब तमाम टीवी चैनल, न्यूज़ पेपर, प्रतिष्ठित न्यूज़ एजेंसी को खंगाला गया तब भी मुझे ट्रेन ड्राइवर का नाम नहीं पता चल पाया. कहीं भी अधिकारिक तौर पर यह नहीं बताया गया है कि उस ट्रेन ड्राइवर का नाम क्या है जो उस ट्रेन को चला रहा था जिससे हादसा हुई.
21अक्टूबर को यानी इस घटना के दो-तीन दिन बाद जब ट्रेन ड्राइवर ने अपना स्टेटमेंट दिया तब पता चला कि उसका नाम अरविंद कुमार है.स्टेटमेंट की कॉपी कई अखबारों में प्रकाशित हुई
इनके पीछे का मकसद समझिए
इनके पीछे का मकसद साफ है. अब देश में कोई भी घटना होगी उस पर राजनीति की रोटी सेकी जाएगी. इसमें हिंदू-मुसलमान गंदा खेल खेला जायेगा. अगर सिख हुआ तो इस मुद्दे को खालिस्तानी आतंकवाद के चश्मे से देखा जाएगा.
1 . इस मामले में अगर कोई सच में मुसलमान ड्राइवर होता तो सोशल मीडिया पर इस मामले को जिहाद से जोड़ दिया जाता और देश के सारे मुसलमानों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता !
2 . अगर इस मामले में कोई हिन्दू होता तो उसको हिंदूवादी संगठनों से जोड़ दिया जाता. इसे सोशल मीडिया पर आरएसएस की दंगा भड़काने की साजिश करार दिया जाता. हिंदूवादी संगठनों को और उनके समर्थकों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता.
3 .इस हादसे में कोई ड्राइवर सिख होता तो शायद सोशल मीडिया पर इसे खालिस्तान आतंकवाद से जोड़कर पूरे सिख समुदाय को कटघरे में खड़ा किया जाता.
ऐसे असामाजिक तत्व सोशल मीडिया का हथियार बना कर अगर अपने साजिशों में सफल हो जाते तो पूरे देश में आग लग जाती और देश में खून खराबा हो जाता . ना जाने कितने लोगों की जान खतरे में पड़ जाती.
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ और
प्रोपेगंडा से कैसे बचे?
1 . देश का यह दुर्भाग्य है कि हम इस देश के नागरिक से ज्यादा किसी पार्टी के समर्थक या कार्यकर्ता बन के रह गए हैं. या फिर हम एक नागरिक से ज्यादा अपने धर्म/ पंथ के अनुयायी हो गए हैं. आपको सत्य जानने के लिए किसी पार्टी, धर्म और समुदाय से ऊपर की दृष्टि रखनी होगी.
2 . अगर किसी हादसे में किसी राजनीतिक दल या नेता का नाम आये/ या उछाला जाये और सोशल मीडिया पर लोग हादसा भूल कर उस राजनीतिक पार्टी और नेता पर हमले शुरू कर दे तो आप समझ जाएं इस घटना के पीछे राजनीति हो रही है ,आप तथ्यों को जांचे-परखे.
3 . सोशल मीडिया पर किसी भी पोस्ट को ऐसे ही शेयर ना करें. कोई पोस्ट आपत्तिजनक या फिर भ्रामक लगे तो पोस्ट करने वाले से उस पोस्ट के सोर्स के बारे में पूछे और उसे लिंक देने के लिए कहें.
अगर वो आपको लिंक देता है तो लिंक पर जाकर देखें की वह ऑनलाइन पोर्टल विश्वासयोग्य है या नहीं.
4 . अगर किसी हादसा या दुर्घटना के बाद किसी धर्म, समुदाय, या खास व्यक्ति का नाम उछाला जाने लगे तो आप ढेर सारे प्रतिष्ठित न्यूज़पेपर और न्यूज़ एजेंसी को खंगाल कर हीं किसी नतीजे पर पहुंचे.
6 . यह भी दुर्भाग्य है कि आज के पत्रकार न्यूज़ को इस तरह से पेश करते हैं कि किसी खास व्यक्ति, पार्टी, समुदाय या संगठन को कटघरे में खड़ा किया जा सके. अत: किसी भी पत्रकार पर आंख मूंदकर भरोसा ना करें, यह उनका ऑपिनियन हो सकता है जो शायद तथ्यों पर आधारित नहीं हो.
7 . अगर किसी पोस्ट में किसी समुदाय या धर्म पर या किसी खास व्यक्ति पर हमला होता दिखाई दे तो सतर्क होकर तथ्यों को जांच करें.
8 . पत्रकार/ टीवी चैनल/ समाचार पात्र भी आजकल किसी पार्टी के नेता के समर्थक नजर आते हैं. ऐसे पत्रकारों से सावधान रहें.
9 .कई पत्रकार ऐसे हैं जो यह कहते हैं कि पत्रकारों का काम है विपक्ष की भूमिका निभाना. उनकी बात कुछ हद तक सही है. लेकिन पत्रकार ना विपक्ष का होता है ना सत्ता पक्ष का होता है. पत्रकार का काम है जनता के सामने तथ्यों के आधार पर सत्य को रखना. उन सारे पत्रकारों पर भरोसा ना करें जो अपनी एक खास तरह की पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं. जिन के निशाने पर एक पार्टी होती है लेकिन दूसरी पार्टी के लिए वह कुछ भी नहीं बोलते.
जिन के निशाने पर एक समुदाय होता है लेकिन दूसरे समुदाय के बारे में वह कुछ नहीं बोलते. ऐसे पत्रकारों से आप सावधान रहें

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