अहीर (Ahir or Aheer) भारत में पाया जाने वाला एक जाति समुदाय है. इस समुदाय के अधिकांश लोग खुद को यादव (Yadav) के रूप में पहचान करते हैं, क्योंकि वह इन दोनों शब्दों को पर्यायवाची मानते हैं. यह हिंदू धर्म को मानते हैं. भगवान श्री कृष्ण में इनकी विशेष आस्था है.जीवन यापन के लिए यह मुख्य रूप से कृषि और गोपालन पर निर्भर हैं जो इनका पारंपरिक व्यवसाय है. भारत के विभिन्न भागों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है. उत्तर भारत में इन्हें गौली (Gauli), घोसी (Ghosi) या गोप (Gop) के नाम से जाना जाता है. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में निवास करने वाले कुछ अहीर दाऊवा (Dauwa) के नाम से जाने जाते हैं. पश्चिम भारत में स्थित गुजरात राज्य में इन्हें अयार (Ayar) कहा जाता है. दक्षिण भारत के राज्यों जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में यह कोनार (Konar) के नाम से जाने जाते हैं. आइए जानते हैं अहीर समाज का इतिहास, अहीर शब्द की उत्पति कैसे हुई?
आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. वैसे तो यह पूरे भारत में निवास करते हैं, लेकिन विशेष रुप से उत्तर भारत में इनकी बहुतायत आबादी है. भारत के अलावा, यह अन्य देशों में भी पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- नेपाल, मॉरीशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका और कैरिबियन (Caribbean). कैरिबियाई द्वीप समूह में अहीरों की महत्वपूर्ण आबादी है और जहां यह मुख्य रूप से गुयाना (Guyana), त्रिनिदाद और टोबैगो (Trinidad and Tobago) और सूरीनाम (Suriname) में निवास करते हैं. दक्षिणी हरियाणा और उत्तर-पूर्वी राजस्थान में स्थित क्षेत्रों जैसे बहरोड़, अलवर, रेवाड़ी, नारनौल, महेंद्रगढ़, गुरुग्राम और झज्जर में इनकी महत्वपूर्ण और बहुतायत आबादी है. इसीलिए यह क्षेत्र अहीरवाल (Ahirwal) के नाम से जाना जाता है. “अहीरवाल” का शाब्दिक अर्थ होता है-“अहीरों का निवास स्थान या अहीरों का गढ़”.महाराष्ट्र में यह मुख्य रूप से उत्तरी महाराष्ट्र के खानदेश क्षेत्र में निवास करते हैं. जलगांव, धुले और नाशिक जिलों में इनकी अच्छी खासी आबादी है.
यह मुख्य रूप से तीन उप समूहों में विभाजित हैं-यदुवंशी (Yaduvanshi) नंदवंशी (Nandavanshi) और ग्वालवंशी (Gwalvanshi). यदुवंशी यदु से वंश का दावा करते हैं. नंदवंशी भगवान श्री कृष्ण के पालक पिता नंद के वंशज होने का दावा करते हैं. गोलवंशी भगवान कृष्ण के साथ गाय चराने वाले गोप और गोपियों के वंशज होने का दावा करते हैं.
“अहीर” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “अभीर” से हुई है, जिसका अर्थ होता है-“निडर”. इनकी उत्पत्ति के बारे में अनेक मान्यताएं हैं, जिसके बारे में विस्तार से नीचे बताया गया है.
एक मान्यता के अनुसार, अहीर महाराज यदु के वंशज हैं. महाराज यदु एक चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा थे. दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार, पद्म पुराण में विष्णु कहते हैं वह अहीरों के बीच आठवें अवतार अवतार (यानी कि भगवान श्री कृष्ण) के रूप में जन्म लेंगे.एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान परशुराम धरती से क्षत्रियों का संहार कर रहे थे तो अभीरों ने गड्ढे में छुप कर अपनी जान बचाई. इस पर मार्कंडेय ऋषि ने कहा कि ” सभी क्षत्रिय मारे गए लेकिन आभीर बच गए, यह निश्चित रूप से कलयुग में पृथ्वी पर राज करेंगे”. प्राचीन दार्शनिक वात्स्यायन ने भी अपने प्रसिद्ध कामसूत्र में आभीर साम्राज्यों का उल्लेख किया है. एक किवदंती के अनुसार, अहीर या आभीर यदुवंशी राजा आहुक के वंशज है. शक्ति संगम तंत्र मे वर्णन किया गया है कि राजा ययाति के दो पत्नियाँ थीं-देवयानी व शर्मिष्ठा. देवयानी से यदु व तुर्वशू नामक पुत्र हुये, जो यदु के वंशज यादव कहलाए. यदुवंशीय भीम सात्वत के वृष्णि आदि चार पुत्र हुये. इन्हीं की कई पीढ़ियों बाद राजा आहुक हुये, जिनके वंशज आभीर या अहीर कहलाए. आहुक वंशात समुद्भूता आभीरा इति प्रकीर्तिता। (शक्ति संगम तंत्र, पृष्ठ 164) “Encyclopaedia of the Hindu world” नामक पुस्तक के लेखक गंगा राम गर्ग (Gaṅga Ram Garg) के अनुसार, अहीर वेदों, महाकाव्यों और हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित एक प्राचीन जाति आभीर या अभीरा क्षत्रिय (Abhira tribe or Abhira Kshatriyas)के वंशज हैं. मॉरीशस (Mauritius) और कैरिबियाई द्वीप समूह में निवास करने वाले अधिकांश अहीर अपने उन पूर्वजों के वंशज हैं जो अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान, 19वीं और 20वीं शताब्दी के बीच, पूर्व-विभाजित भारतीय उपमहाद्वीप से जाकर वहां बस गए.
वीर लोरिक (Veer Lorik) अहीर समाज के पौराणिक नायक हैं. इन्हें लोरिकयान (Lorikayan) के नाम से भी जाना जाता है. यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी लोककथाओं का हिस्सा हैं.
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