Ranjeet Bhartiya 28/06/2023
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Last Updated on 28/06/2023 by Sarvan Kumar

भारत के मूल निवासियों का निर्धारण एक जटिल कार्य है. भारत का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन, जटिल और अविश्वसनीय विविधताओं से भरा है. भारत ने अपने लंबे इतिहास में कई विदेशी आक्रमणों और प्रवासन को देखा है. इन आक्रमणों और प्रवासन के माध्यम से, विदेशी स्थानीय भारतीय आबादी के संपर्क में आए. इससे विभिन्न स्तरों पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ, जिसने सामूहिक रूप से भारत के सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक ताने-बाने को क्या ब्राह्मण भारत के मूल निवासी हैं? आकार दिया. इसी क्रम में हम यहां जानेंगे कि क्या ब्राह्मण भारत के मूल निवासी हैं.

क्या ब्राह्मण भारत के मूल निवासी हैं?

ब्राह्मण हिंदू समाज में एक प्रमुख सामाजिक और सांस्कृतिक समूह हैं, जिन्हें पारंपरिक रूप से वर्ण (जाति) व्यवस्था में सर्वोच्च माना जाता है. ब्राह्मणों की उत्पत्ति के संबंध में इतिहासकारों और विद्वानों द्वारा अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं. ये सिद्धांत इस सामाजिक समूह की उत्पत्ति पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं. कुछ विद्वानों का प्रस्ताव है कि भारतीय उपमहाद्वीप में ब्राह्मणों की उत्पत्ति स्वदेशी है. दूसरी ओर, कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि ब्राह्मण भारत में बाहर से आए थे, अर्थात ब्राह्मण भारत के मूल निवासी नहीं हैं. ब्राह्मणों की उत्पत्ति के बारे में एक प्रचलित सिद्धांत आर्यन प्रवास सिद्धांत (Aryan migration theory) है. इस सिद्धांत के अनुसार, ब्राह्मण और अन्य ऊंची जातियां इंडो-आर्यन के वंशज हैं जो 1500 ईसा पूर्व के आसपास भारतीय उपमहाद्वीप में आए थे. वे अपने साथ वैदिक संस्कृति लाए और एक पदानुक्रमित सामाजिक संरचना की स्थापना की जिसमें ब्राह्मणों को पुजारी और बुद्धिजीवियों के रूप में सर्वोच्च दर्जा प्राप्त था. इसके विपरीत, कई विद्वान आर्यों के प्रवास सिद्धांत का खंडन करते हैं. उनका मानना ​​है कि भारतीय उपमहाद्वीप में ब्राह्मणों की उत्पत्ति स्वदेशी है. उनका तर्क है कि ब्राह्मण पूर्व-आर्य स्वदेशी पुरोहित वर्गों या बौद्धिक अभिजात वर्ग से विकसित हुए जो प्राचीन भारत में मौजूद थे और समय के साथ उन्होंने धीरे-धीरे अपनी सामाजिक स्थिति और प्रभाव स्थापित किया.

निष्कर्ष:

भारत के लोगों का इतिहास और उत्पत्ति जटिल और बहुआयामी है. ब्राह्मण भारत के मूल निवासी हैं या नहीं, इस पर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं. इसलिए इस विषय पर और शोध किए जाने की जरूरत है. यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रवासन, जाति और स्वदेशी अधिकारों के बारे में चर्चा जटिल और संवेदनशील हो सकती है. इन विषयों पर चर्चा करते समय सांस्कृतिक संवेदनशीलता का ध्यान रखना चाहिए ताकि अनावश्यक विवाद न हो और समाज में कटुता न फैले.

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