
ब्राह्मण समुदाय हिंदू समाज का एक अभिन्न अंग है और सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यों के मामले में एक प्रमुख स्थान रखता है. ब्राह्मण पारंपरिक हिंदू जाति व्यवस्था के अनुसार सर्वोच्च वर्ण (सामाजिक वर्ग) से संबंधित हैं. ऐतिहासिक रूप से, उनकी प्राथमिक भूमिका धार्मिक अनुष्ठानों को करना और कराना, पवित्र ग्रंथों को संरक्षित करना और पढ़ाना तथा समाज को धार्मिक और आध्यात्मिक मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करना रहा है. आइए इसी क्रम में जानते हैं कि ब्राह्मणों के कितने धर्म हैं.
ब्राह्मणों के कितने धर्म हैं?
ब्राह्मणों में कितने धर्म हैं, यह जानने से पहले हमें धर्म शब्द का अर्थ संक्षेप में समझ लेना चाहिए. धर्म मूलतः संस्कृत भाषा का शब्द है जिसके अनेक अर्थ हैं जो विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त होते हैं. धर्म शब्द का विभिन्न अर्थ इस प्रकार हैं: नैतिक और आध्यात्मिक नियमों का पालन, धार्मिक विश्वास और प्रथा के अनुरूप आचरण, सामाजिक कर्तव्य और जिम्मेदारियों का निर्वहन तथा सामाजिक और न्यायिक नियमों का पालन. ब्राह्मण समुदाय के धर्म और कर्तव्यों को हिंदू धर्म के विभिन्न धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, मनुस्मृति, महाभारत और स्मृति ग्रंथों में विस्तार से समझाया गया है. वेदों के अनुसार ब्राह्मणों का मुख्य धर्म यज्ञ करना, यज्ञ का प्रचार-प्रसार करना और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना बताया गया है. मनुस्मृति में ब्राह्मणों का धर्म अध्ययन, यज्ञ का प्रचार करना, शिक्षा और आचार्य की सेवा का करना बताया गया है. महाभारत के अनुसार धार्मिक अध्ययन, शिक्षा, यज्ञों का निष्पादन, आचार्य की सेवा, तीर्थयात्रा और समाज सेवा ब्राह्मणों के महत्वपूर्ण कार्य हैं. वहीं, स्मृति ग्रन्थों में यज्ञों के प्रचार, शिक्षा और ज्ञान का प्रचार, आचार्य की सेवा, धार्मिक अध्ययन, तीर्थाटन, दान और सेवा ब्राह्मणों के महत्वपूर्ण धर्म हैं.
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि ब्राह्मणों का धर्म भिन्न-भिन्न शास्त्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से बताया गया है. अब इस लेख के मुख्य विषय पर आते हैं और जानते हैं कि ब्राह्मणों के कुल धर्म हैं. सामान्यतः विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर धार्मिक मामलों के जानकारों में यह आम सहमति है कि ब्राह्मणों के प्रमुख 6 धर्म हैं, जो इस प्रकार हैं: अध्ययन और अध्यापन, यज्ञ करना और कराना, दान देना और दान लेना.

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