
Last Updated on 11/06/2022 by Sarvan Kumar
बहेलिया (Baheliya or Bahelia) भारत में पाई जाने वाली एक जाति है, यह एक बहादुर जाति है. इस समुदाय के लोग शारीरिक रूप से मजबूत और हष्ट पुष्ट होते हैं. यह स्वभाव से साहसी, उत्साही, मेहनती, मिलनसार और आमतौर पर अच्छे चरित्र के होते हैं. यह मूल रूप से शिकारियों और पक्षी पकड़ने वालों का एक आदिवासी समुदाय है, जो मुख्य रूप से पक्षियों को पकड़ने, मधुमक्खियों के छत्ते से शहद निकालने और पंखे बनाने के लिए मोर के पंख इकट्ठा करने के कार्य में शामिल रहे हैं. आइए जानते हैं बहेलिया समाज का इतिहास, बहेलिया शब्द की उत्पति कैसे हुई?
शिकारी और पक्षी पकड़ने वाली जाति
परंपरागत रूप से इनकी अर्थव्यवस्था पक्षियों को पकड़ने और शहद बेचने के इर्द-गिर्द घूमती थी. बंगाल में, महाराजा कृष्ण चंद्र रॉय के शासनकाल (1728-1783) के दौरान, इस समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से चौकीदार और सैनिकों के रूप में कार्यरत थे. बाद में वह किसान और व्यवसायी बन गए.
समय के साथ यह रोजी रोटी के लिए विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में जाने लगे. इनमें से कई जीवनयापन के लिए मोर के पंख से पंखे बनाने के व्यवसाय में भी शामिल हैं. इन पंखों को बनिया या बिचौलियों को बेच दिया जाता है, जो कोलकाता और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में इसे बेचने का काम करते हैं.
R.V. Russell के अनुसार
R.V. Russell ने अपनी किताब “The Tribes and Castes of the Central Provinces of India-Volume I” में इन्हें उत्तरी भारत के एक चिड़ीमार और शिकारियों की जाति के रूप में वर्णित किया है. M. A. Sherring ने अपनी किताब “Hindu Tribes and Castes as Represented in Benares” में इन्हें एक ऐसी जनजाति के रूप में वर्णित किया है जो पेशे से शिकारी, गेमकीपर (gamekeeper) और चिड़ियों को पकड़ने वाले होते हैं. यह पक्षियों को पकड़ने की कला में अत्यधिक निपुण होते हैं. बहेलिया रस्सियों के निर्माण में, चौकीदार के रूप में तथा अन्य प्रकार की सेवाओं में भी कार्यरत है.
बहेलिया समाज एक परिचय
कैटेगरी: भारत सरकार के सकारात्मक भेदभाव की प्रणाली आरक्षण के अंतर्गत इन्हें उत्तर प्रदेश राज्य में अनुसूचित जाति (Schedule Caste, SC) में सूचीबद्ध किया गया है.
पॉपुलेशन, कहां पाए जाते हैं? यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में निवास करते हैं. भारत की 2011 की जनगणना में, उत्तर प्रदेश में इनकी आबादी 143,442 दर्ज की गई थी.
धर्म
इस समुदाय के लोग सनातन हिंदू धर्म में आस्था रखते हैं.

बहेलिया शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
बहेलिया” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द “व्याध” से हुई है, जिसका अर्थ होता है- “छेदने वाला/ जो छेदता या घाव करता है”, अर्थात-“एक शिकारी’.
बहेलिया जाति का इतिहास
सैन्य सेवा- चित्रकार और नृवंशविज्ञानी बल्थाजार सोल्विन्स (Balthazar Solvyns) ने बहेलिया सैनिकों को एक आदिम हिंदू सैनिक के रूप में वर्णित किया है. बहेलिया समुदाय का भारत में सैन्य भर्ती के एक स्रोत के रूप में एक लंबा इतिहास रहा है. यह अपने तीरंदाजी कौशल के लिए प्रसिद्ध थे. इस समुदाय के लोग विभिन्न राजा और जमींदारों की सेनाओं में पैदल सैनिक थे. सत्रहवीं शताब्दी के दौरान यह मुगल कमांडरों के अधीन लड़ने वाले पैदल सैनिकों के रूप में विशिष्ट थे. ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि बंगाल और बिहार में कई लड़ाईयों में इस समुदाय के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. लेकिन पैदल सैनिकों के बजाय घुड़सवार सेना को ज्यादा महत्व देने के शायद इनके बारे में इतिहास के किताबों में जरा भी नहीं लिखा गया है. ऐतिहासिक तथ्यों के विश्लेषण से प्रतीत होता है कि इनका मुख्य उपयोग रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए किया जाता था.
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
आजादी की लड़ाई में बहेलिया समुदाय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में इस समुदाय के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. मध्य प्रदेश के सतना के पिंडरा गांव में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस समुदाय के कई लोग अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. गांव में मौजूद स्मारक पर इस समुदाय के कई वीर शहीदों के नाम का उल्लेख किया गया है, जिसमें बाबू राम बहेलिया, धाकर बहेलिया, सरजू बहेलिया, विरजू बहेलिया, पूरन बहेलिया, विशाल बहेलिया, नवल किशोर बहेलिया, सुजात बहेलिया, सुजान बहेलिया, रामसेवक बहेलिया, सोनेलाल बहेलिया, वंश बहेलिया, इंद्रजीत बहेलिया, महादेव बहेलिया, सूरजदीन बहेलिया, तिलखुआ बहेलिया और कमरधुआ बहेलिया आदि के नाम शामिल हैं. दीपनारायण सिन्हा ने अपनी पुस्तक “फतेहपुरा के स्वतंत्र सेनानी” में जिक्र किया है कि बाबा गयादीन दुबे उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के कोरानी गांव के बड़े जमींदार थे. उनके पास 62 गांव थे. उनके पास 200 बहेलिया सैनिकों शक्तिशाली और दुर्जेय सेना थी. अपने बहेलिया
सैनिकों के साथ उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की मदद की थी.
काशी के राजा के पास थी बहेलियाओं की सेना
बनारसी लाल आर्य ने “महाराजा बलवंत सिंह और काशी का अतित” नामक पुस्तक में उल्लेख किया है कि काशी (बनारस) के महाराजा बलवंत सिंह के पास बहेलियाओं की सेना थी. यह सेना गोरिल्ला युद्ध (Gorilla warfare) में माहिर थी. महाराजा की बहेलियाओं की सेना ने अंग्रेजो के खिलाफ कई छापामार लड़ाइयां लड़ी थी, जिससे अंग्रेजी फौज में भगदड़ और आतंक फैल जाता था. इस सेना ने महाराजा के लिए नवाबों के विरुद्ध भी लड़ाइयां लड़ी थीं. यह नवाब के आदमियों को लूट में मार डाला करते थे.
गवर्नर के रूप में की गई थी नियुक्ति
मिर्जापुर गजेटियर के अनुसार, इन्हें मुगलों के अधीन गवर्नर के रूप में भी नियुक्त किया गया था. 14 वीं शताब्दी में दिल्ली में तुगलक के शासनकाल के दौरान, बनारस के पास गंगा के तट पर चुनार के किले में एक अफ्रीकी और एक बहेलिया को हजारी की उपाधि के साथ जॉइंट गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्हें 27 गांवों की जागीर प्रदान की गई थी. कहा जाता है कि जब चुनार के किले को मोहम्मद शाह के एक सेनापति ने जीत लिया, तो उसने एक बहेलिया को किले के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया था. 1764 में बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों की जीत तक चुनार का किला एक दुर्लभ स्थायित्व के साथ बहेलिया परिवार देखरेख में चलता रहा.
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References:
Hindu Tribes and Castes as Represented in Benares
Book by M. A. Sherring
Title: The Tribes and Castes of the Central Provinces of India–Volume I (of IV)
Author: R.V. Russell
People of India Uttar Pradesh Volume XLII Part One edited by A Hasan & J C Das pages 112 to 116 Manohar Publications
Banarsi Lal Arya, Maharaja Balwant Singh aur Kashi Ka Atit, 1975, Pg 37;77
Dipnarayana Sinha, Phatehapura ke svatantrata Senani, 1979, Pg
Naukar, Rajput and Sepoy, D.H.A.Kolff (1990), 117.
https://www.amarujala.com/lucknow/aheria-cast-is-annouced-as-scheduled-caste-hindi-news
Mirzapur Gazetteer 307. Crooke Tribes and Caste, 1,105. See also Thomas Chronicles, 196
Sir William Wilson Hunter, The Imperial Gazetteer of India, Volume 9, 454
Amanda Mazur, To what extent were mercenaries used in the Mughal and Ottoman Empires?, Pg. 6.

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