
Last Updated on 25/01/2023 by Sarvan Kumar
अपनी अनोखी वेशभूषा और रंगरूप के कारण आज भी बंजारे अपने अस्तित्व को अनेक जातियों से पृथक घोषित करते हैं. सभ्यता की मुख्यधारा से कटी हुई इस जाति की अपनी संस्कृति, वेशभूषा, रहन-सहन, अनूठी बोली भारतीय इतिहास में मध्यकाल (6 वीं से 16वीं शताब्दी तक के समय को मध्यकाल के नाम से जाना जाता है) में बंजारे सामान्यतः व्यापारी वर्ग से सम्बन्धित रहे. इस काल में कई बंजारा ने अपना-अपना अलग समाज स्थापित किया. इनमें गौरा बंजारा समाज 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में बहुत अधिक प्रसिद्ध रहा. बंजारे वर्ष पर देश के अलग-अलग हिस्सों में अपना सामान लादकर जाते और वीरानो या खाली जगहों पर बस्ती से दूर अपना ठिकाना बनाते. इन बंजारों को भौगोलिक एवं ऐतिहासिक जानकारी भी होती थी। इनकी परिवहन का साधन बैलगाड़ी होती थी।
बंजारा (Banjara) भारत में पाई जाने वाली एक ऐतिहासिक खानाबदोश व्यापारिक जनजाति है. इन्हें देश के अलग-अलग भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे-लमन, लाम्बाडी (Lambadi), लंबाणी, गोर (Gor), गोर बंजारा, सुगली, लाभन, बदलिया, गौरिया, वंजर, गवरिया, आदि. कर्नाटक में इन्हें बनिजागरु के नाम से जाना जाता है. ऐतिहासिक रूप से यह व्यापारी, प्रजनन विशेषज्ञ और ट्रांसपोर्टर का काम करते थे. यह सामान को नावों, गाड़ियों, ऊंटों, बैलों, घोड़े, गधे आदि की मदद से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करते थे. इस तरह से यह व्यापार और अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करते थे. बंजारा के कुछ उप समूह विशिष्ट वस्तुओं के व्यापार में लगे थे, जैसे तिलहन, गन्ना, तंबाकू, अफीम, फल, फूल, वन उत्पाद आदि. आइए जानते हैैं बंजारा समाज का इतिहास, बंजारा शब्द की उत्पति कैसे हुई?
बंजारा किस कैटेगरी में आते हैं?
आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe, ST) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब में इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) में शामिल किया गया है. छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और राजस्थान में इन्हें अन्य पिछड़ी जाति (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
बंजारा समाज धर्म, भाषा, जनसंख्या, निवास स्थान
वर्तमान में यह उत्तर पूर्वी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़कर पूरे उत्तर-पश्चिमी, पश्चिमी और दक्षिण भारत में पाए जाते हैं. यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में पाए जाते हैं. बंजारा हिंदू धर्म को मानते हैं और हिंदू संस्कृति और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं. यह बालाजी, जगदंबा देवी, देवी भवानी, माहूर की रेणुका माता और हनुमान जी समेत अन्य हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. गोर बंजारा अपनी एक अलग भाषा बोलते हैं, जिसे “गोरबोली” कहा जाता है. गोरबोली को लमनी, लाम्बाडी, गोरमती या बंजारी भी कहा जाता है.
बंजारा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
बंजारा आम तौर पर खुद को गोर और बाहरी लोगों को कोर कहते हैं. इतिहासकारों का मानना है कि 14वीं शताब्दी के आसपास यह समुदाय बंजारा के रूप में जाना जाने लगा. लेकिन इससे पहले इनका लमन से कुछ जुड़ाव था, जो यह दावा करते हैं कि उनका इतिहास 3000 साल पुराना है. इतिहासकार इरफान हबीब का मत है कि बंजारा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसे वनिज, वाणिक या बनिक के रूप में अनुवादित किया गया है. इन शब्दों से ही बनिया शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है, जो कि भारत का एक प्रतिष्ठित व्यापारिक समुदाय है. इतिहासकार, शोधकर्ता और लेखक B.G. Halbar के मुताबिक, बंजारा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “वन चर” से हुई है.
बंजारा समाज का इतिहास
इतिहासकारों का मानना है कि बंजारा या लवन मूल रूप से अफगानिस्तान के रहने वाले थे. भारत में यह सबसे पहले राजस्थान में बसे और इसके बाद देश के अन्य भागों में फैल गए. डोंबा जनजाति के साथ इन्हें “भारत का जिप्सी” भी कहा जाता है. प्रोफेसर डी. बी. नायक के अनुसार, रोमा जिप्सियो और बंजारा लमानी के बीच सांस्कृतिक समानताएं हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार, अधिकांश खानाबदोश समुदायों के तरह यह भी राजपूत वंश से होने का दावा करते हैं. बी.जी. हलबर के अनुसार, यह मिश्रित जातीयता के प्रतीत होते हैं और संभवत यह उत्तर-मध्य भारत में उत्पन्न हुए हैं.
बंजारा समाज के रोचक तथ्य
1.बंजारे कुछ खास चीजों के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं, जैसे नृत्य, संगीत, रंगोली, कशीदाकारी, गोदना और चित्रकारी.
2.बंजारा समाज पशुओं से बेहद लगाव रखते हैं.
3.आम तौर पर बंजारा पुरुष सिर पर पगड़ी बांधते हैं। कमीज या झब्बा पहनते हैं. धोती बांधते हैं। हाथ में नारमुखी कड़ा, कानों में मुरकिया व झेले पहनते हैं। अधिकतर ये हाथों में लाठी लिए रहते हैं.
4.बंजारा समाज की महिआएं बालों की फलियां गुंथ कर उन्हें धागों में पिरोकर चोटी से बांध देती हैं. महिलाएं गले में सुहाग का प्रतीक दोहड़ा पहनती हैं. हाथों में चूड़ा, नाक में नथ, कान में चांदी के ओगन्या, गले में खंगाला, पैरों में कडि़या, नेबरियां, लंगड, अंगुलियों में बिछिया, अंगूठे में गुछला, कमर पर करधनी या कंदौरा, हाथों में बाजूबंद, ड़ोडि़या, हाथ-पान व अंगूठियां पहनती हैं. कुछ महिलाएं घाघरा और लहंगा भी पहनती हैं. लुगड़ी ओढ़नी ओढ़ती हैं। बूढ़ी महिलाएं कांचली पहनती हैं.
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