Ranjeet Bhartiya 04/12/2021
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Last Updated on 19/03/2023 by Sarvan Kumar

‘बंजारा’  यह नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहले यही आता है कि ऐसे लोग जो कहीं एक जगह स्थाई रूप से नहीं रहते. उनका एक समूह होता है वो बैलगाड़ियों या ऊंटों पर समान लादकर एक जगह से दूसरे जगह भटकते रहते हैं. उनके समूह का एक मुखिया होता है जो बहुत ईमानदार और स्वाभिमानी होता है. वे अनोखे वेशभूषा वाले और अच्छे रंगरूप वाले  होते हैं इत्यादि. बंजारे का ऐसा चित्रण हमारे दिमाग में बॉलीवुड के फ़िल्मों ने बिठाया है. कई फ़िल्मों में बंजारा समाज को दिखाया गया है. कई गाने हैं जिसमें बंजारा शब्द सुनने को मिलता है जैसे –“एक बंजारा गाए, जीवन का गीत सुनाये। हम सब जीने वालों को जीने के राह बताएं …” हम बंजारो की बात मत पूछो जी
“जो प्यार किया तो प्यार किया जो,
नफ़रत की तो नफ़रत की….” तो क्या बंजारा समाज ऐसा ही है जैसा फ़िल्मों में है या वैसा जैसा हमने दिमाग में बिठा रखा है या उससे अलग.
आइए जानते हैं बंजारा समाज का इतिहास, बंजारा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

बंजारा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

एतिहासिक रूप से बंजारा खानाबदोश थे और मवेशी रखते थे. वे नमक का व्यापार करते थे. बंजारे कभी राजाओं की सेना के लिए रसद पहुंचाते थे, भारत भर में अनाज की आपूर्ति करते थे. यह  व्यापारी, प्रजनन विशेषज्ञ और ट्रांसपोर्टर का काम करते थे. यह सामान को नावों, गाड़ियों, ऊंटों, बैलों, घोड़े, गधे आदि की मदद से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करते थे. इस तरह से यह व्यापार और अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करते थे. बंजारा के कुछ उप समूह विशिष्ट वस्तुओं के व्यापार में लगे थे, जैसे तिलहन, गन्ना, तंबाकू, अफीम, फल, फूल, वन उत्पाद आदि. अब वे खेती करने के लिए बस गए हैं. बंजारे जिस गाँव में रहते हैं उसे टांडा कहा जाता है. वे पूरे भारत में पाये जाते हैं. भारत के विभिन्न राज्यों में 17 उपसमूहों में और 27 नामों से जाने जाते हैं.बंजारा आम तौर पर खुद को गोर (gor) और बाहरी लोगों को कोर (kor) कहते हैं. इतिहासकारों का मानना है कि 14वीं शताब्दी के आसपास यह समुदाय बंजारा के रूप में जाना जाने लगा. लेकिन इससे पहले इनका लमन से कुछ जुड़ाव था, जो यह दावा करते हैं कि उनका इतिहास 3000 साल पुराना है. इतिहासकार इरफान हबीब का मत है कि बंजारा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसे वनिज, वाणिक या बनिक के रूप में अनुवादित किया गया है. इन शब्दों से ही बनिया शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है, जो कि भारत का एक प्रतिष्ठित व्यापारिक समुदाय है. इतिहासकार, शोधकर्ता और लेखक B.G. Halbar के मुताबिक, बंजारा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “वन चर” से हुई है. मद्रास के बंजारा अपनी उत्पत्ति वानर राजा सुग्रीव से मानते हैं. सुग्रीव वही हैँ जिनके सहायता से भगवान राम ने लंका विजय की थी. कुछ कहते हैं यह शब्द फ़ारसी शब्द Biranjar से आया है जिसका अर्थ है rice- carriers. कुछ का मानना है यह हिन्दी शब्द बन-जरना ( ban – jarna) से आया है. कुल मिलाकर बंजारा शब्द की उत्पत्ति बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं है

बंजारा समाज का इतिहास

भारतीय इतिहास में मध्यकाल (6 वीं से 16वीं शताब्दी तक के समय को मध्यकाल के नाम से जाना जाता है) में बंजारे सामान्यतः व्यापारी वर्ग से सम्बन्धित रहे. इस काल में कई बंजारा ने अपना-अपना – अलग समाज स्थापित किया. इनमें गौर बंजारा समाज 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में बहुत अधिक प्रसिद्ध रहा. बंजारे वर्ष भर देश के अलग-अलग हिस्सों में अपना सामान लादकर जाते और वीरानो या खाली जगहों पर बस्ती से दूर अपना ठिकाना बनाते. इन बंजारों को भौगोलिक एवं ऐतिहासिक जानकारी भी होती. इन्हें देश के अलग-अलग भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे-  वनजारा (Vanjara) , लमन (Laman),  लाम्बाडी (Lambadi), लंबाणी (Lambhani), गोर (Gor), गोर बंजारा (Goar Banjara) , सुगली (Sugali), लाभन (Labhan), बालाडिया (Baladia), गवरिया (Gavaria), मथुरा बंजारा (Mathura Banjara), चरण बंजारा (Charan Banjara),  आदि. कर्नाटक में इन्हें बनिजागरु के नाम से जाना जाता है..

बंजारा किस कैटेगरी में आते हैं?

आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe, ST) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब में इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) में शामिल किया गया है. छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और राजस्थान में इन्हें अन्य पिछड़ी जाति (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

बंजारा समाज धर्म, भाषा, जनसंख्या, निवास स्थान

वर्तमान में यह उत्तर पूर्वी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़कर पूरे उत्तर-पश्चिमी, पश्चिमी और दक्षिण भारत में पाए जाते हैं. यह मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में पाए जाते हैं. बंजारा हिंदू धर्म को मानते हैं और हिंदू संस्कृति और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं. यह बालाजी, जगदंबा देवी, देवी भवानी, माहूर की रेणुका माता और हनुमान जी समेत अन्य हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. गोर बंजारा अपनी एक अलग भाषा बोलते हैं, जिसे “गोरबोली” कहा जाता है. गोरबोली को लमनी, लाम्बाडी, गोरमती या बंजारी भी कहा जाता है. इतिहासकारों का मानना है कि बंजारा या लवन मूल रूप से अफगानिस्तान के रहने वाले थे. भारत में यह सबसे पहले राजस्थान में बसे और इसके बाद देश के अन्य भागों में फैल गए.  इन्हें “भारत का जिप्सी” भी कहा जाता है. प्रोफेसर डी. बी. नायक के अनुसार, रोमा जिप्सियो और बंजारा लमानी के बीच सांस्कृतिक समानताएं हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार, अधिकांश खानाबदोश समुदायों के तरह यह भी राजपूत वंश से होने का दावा करते हैं. बी.जी. हलबर के अनुसार, यह मिश्रित जातीयता के प्रतीत होते हैं और संभवत यह उत्तर-मध्य भारत में उत्पन्न हुए हैं. ब्रिटिश सरकार के जनगणना 1891 में कुछ बंजारों ने चौहान (Chuhan ), तंवर (Tunwar) , पंवार ( Panwar), राठौर         (Rathaur), जादौन (Jadon) लिखाया. ये सारे राजपूत वंश है. इससे इनके राजपूत होने का भी पता चलता है.

बंजारा समाज के रोचक तथ्य

1.बंजारे कुछ खास चीजों के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं, जैसे नृत्य, संगीत, रंगोली, कशीदाकारी, गोदना और चित्रकारी.

2.बंजारा समाज पशुओं से बेहद लगाव रखते हैं.

3.आम तौर पर बंजारा पुरुष सिर पर पगड़ी बांधते हैं। कमीज या झब्बा पहनते हैं. धोती बांधते हैं। हाथ में नारमुखी कड़ा, कानों में मुरकिया व झेले पहनते हैं। अधिकतर ये हाथों में लाठी लिए रहते हैं.

4.बंजारा समाज की महिआएं बालों की फलियां गुंथ कर उन्हें धागों में पिरोकर चोटी से बांध देती हैं. महिलाएं गले में सुहाग का प्रतीक दोहड़ा पहनती हैं. हाथों में चूड़ा, नाक में नथ, कान में चांदी के ओगन्या, गले में खंगाला, पैरों में कडि़या, नेबरियां, लंगड, अंगुलियों में बिछिया, अंगूठे में गुछला, कमर पर करधनी या कंदौरा, हाथों में बाजूबंद, ड़ोडि़या, हाथ-पान व अंगूठियां पहनती हैं. कुछ महिलाएं घाघरा और लहंगा भी पहनती हैं. लुगड़ी ओढ़नी ओढ़ती हैं। बूढ़ी महिलाएं कांचली पहनती हैं.

क्या बंजारा समाज को हमने ठीक से समझा?

कुछ बाते जो चिंताजनक है वो है बंजारों के बारे में हमारी सोच जिन्हें हम बेघर -बेगार समझते हैं उनका त्याग और बलिदान जानकर हमारा सिर शर्म से झुक जाएगा.
विषम परिस्थितियों में भी दूर- दूर खाने पीने और दूसरी जरूरी चीजों को पहुंचाने में इन्हें कितनी तकलीफों का सामना करना पड़ता होगा आप ये सोच भी नहीं सकते.
ऐसे कामों में कई दिन लगते हैं इसलिए इनके परिवार भी साथ चलते थे. समाज की सेवा में ये यह भूल ही गए कि स्थायी घर भी होना जरूरी है. इनकी स्थिति पहले काफी अच्छी होती थी. जिस  भी गांव में 15 दिन तक रुकते वहां पर बैल की एक जोड़ी उस गांव को देकर आगे बढ़ते. ये अरब तक जाते थे वहाँ उनका सामान खरीदने, नृत्य देखने के लिए दूर दूर से लोग झुंड बनाकर आते थे. उनका बहुत सम्मान होता था.  गांव में ऐसे स्वागत होता था जैसे कि सारा गांव उनकी ही बाट जो रहा हो. गांव के लोग उनके पास आते ही बोलते हम आज आपकी मेजबानी करेंगे.
मस्तमौला हंसते गाते एक जगह से दूसरे जगह जाने के रास्ते में इनकी महिलाएं दूसरी  स्थानीय महिलाओं को गोदना लगाती थी. जगह – जगह  पर कुएं और तालाब खोदे. आज हमने इनको भुला दिया है. अंग्रेजो ने इनकी कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ा. व्यापारीक प्रतिद्वंदी मानकर बंजारों को जन्मजात क्रिमिनल घोषित कर दिया, जिससे वो अब केवल नमक में सिमट गए. आगे चलकर ब्रिटिश सरकार ने नमक के व्यापार पर भी रोक लगा दी और उन्हें गरीबी के दलदल में झोंक दिया.

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