Ranjeet Bhartiya 04/12/2021
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Last Updated on 04/12/2021 by Sarvan Kumar

दर्जी (Darzi or Darji) भारत, पाकिस्तान और नेपाल के तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली एक व्यवसायिक जाति है. कर्नाटक में इन्हें पिसे, वेड, काकड़े और सन्यासी के नाम से जाना जाता है. यह मुख्य रूप से एक भूमिहीन या कम भूमि वाला समुदाय है, जिसका परंपरागत व्यवसाय सिलाई (Tailoring) है. आज भी यह मुख्य रूप से अपने पारंपरिक व्यवसाय में लगे हुए हैं. यह खेती भी करने लगे हैं. साथ ही यह शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाते हुए अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भारत के आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत हिंदू और मुस्लिम दर्जी दोनों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. आइए जानते हैैं दर्जी समाज का इतिहास, दर्जी शब्द की उत्पति कैसे हुई?

दर्जी समाज की धर्म को मानते हैं?

भारत के गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाइन्ह महारा , छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. धर्म से यह हिंदू या मुसलमान हो सकते हैं. हिंदू समुदाय में इन्हें हिंदू दर्जी या क्षत्रिय दर्जी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें मुख्य रूप से क्षत्रिय वर्ण का गोत्र माना जाता है. मुस्लिम समुदाय में दर्जी जाति को इदरीशी (हजरत इदरीस के नाम पर) के नाम से जाना जाता है.

दर्जी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

सिलाई के कार्य से जुड़े होने के कारण इनका नाम दर्जी पड़ा. कहा जाता है कि “दर्जी” शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा के शब्द “दारजान” से हुई है, जिसका अर्थ होता है- “सिलाई करना”. हिंदुस्तानी भाषा में दर्जी का शाब्दिक अर्थ है- “टेलरिंग का काम करने वाला या सिलाई का काम करने वाला’. कहा जाता है कि पंजाबी दर्जी हिंदू छिम्बा जाति से धर्मांतरित हुए हैं, और उनके कई क्षेत्रीय विभाजन हैं जैसे- सरहिंदी, देसवाल और मुल्तानी. पंजाबी दर्जी (छिम्बा दारज़ी‍‌‌) लगभग पूरी तरह सुन्नी इस्लाम के अनुयाई हैं. इदरीसी दर्जी दिल्ली सल्तनत ‌के शुरुआती दौर में दक्षिण एशिया में बस गए थे. यह भाषाई आधार पर भी विभाजित हैं. उत्तर भारत में निवास करने वाले उर्दू, हिंदी समेत विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, जबकि पंजाब में रहने वाले पंजाबी भाषा बोलते हैं.

दर्जी समाज का इतिहास

हिंदू दर्जी समुदाय की उत्पत्ति के बारे में भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं. राजस्थान में निवास करने वाले दर्जी राजपूत से अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं और खुद को लोकनायक श्री पीपा जी महाराज का वंशज बताते हैं, जो बाद में भारत में भक्ति आंदोलन के दौरान संत बन गए. जैसे-जैसे समय बीतता गया, कई कारणों से इस समुदाय के लोग अपने मूल स्थान से रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में चले गए और इस तरह से पूरे भारत में फैल गए. भारत में निवास करने वाले हिंदू दर्जी अनेक कुलों में विभाजित हैं. इनके प्रमुख कुल हैं- काकुस्त, दामोदर वंशी, टैंक, रोहिल्ला, जूना गुजराती. उड़ीसा में यह महाराणा, महापात्र आदि उपनामो का प्रयोग करते हैं. मुस्लिम दर्जी कुरान और बाइबिल में वर्णित हजरत इदरीस (Prophet Idris) के वंशज होने का दावा करते हैं. इनकी मान्यताओं के अनुसार, हजरत इदरीस सिलाई का काम सीखने वाले पहले व्यक्ति थे. उनका मानना है कि हजरत इदरीसी असली शिक्षक थे, जिनसे उनके पूर्वजों ने सिलाई की कला सीखी थी. उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले मुस्लिम दर्जी खय्यात के नाम से भी जाने जाते हैं.

 

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