
Last Updated on 13/03/2023 by Sarvan Kumar
कायस्थ और ब्राह्मण भारत की सबसे सफल और प्रभावशाली जातियों में गिने जाते हैं. अमेरिकी इंडोलॉजिस्ट, धार्मिक अध्ययन और दक्षिण एशियाई अध्ययन के विद्वान क्रिश्चियन ली नोवेट्ज़के (Christian Lee Novetzke) के अनुसार, मध्यकालीन भारत के कुछ हिस्सों में कायस्थ को या तो ब्राह्मण या ब्राह्मणों के बराबर माना जाता था. प्राचीनता, उत्पत्ति, पारंपरिक कार्य, वर्ण स्थिति आदि के आधार पर इन दोनों समुदायों के बीच कई अंतर हैं. यहां हम कायस्थ और ब्राह्मण के बीच के अंतर के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे.
कायस्थ और ब्राह्मण में अंतर
कायस्थ और ब्राह्मण के बीच के अंतर को समझने के लिए इन दोनों समुदायों के बीच समानता के बारे में बताना जरूरी है. आधुनिक युग में, कायस्थों को सामाजिक और शैक्षिक आधार पर “अगड़ी जाति” माना जाता है. कई ग्रंथों, ऐतिहासिक पुस्तकों और विद्वानों के अनुसार कायस्थ एक “लेखक ब्राह्मण” जाति है. कई इतिहासकार मानते हैं कि इस समुदाय का रहन सहन, आचार व्यवहार, रीति रिवाज ब्राह्मणों के समान है. इन समानताओं के होते हुए भी कायस्थ और ब्राह्मण निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर एक दूसरे से भिन्न हैं-
उत्पत्ति
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया, तो उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई. दोनों भुजाओं से उत्पन्न व्यक्ति को क्षत्रिय, जंघा से उत्पन्न व्यक्ति को वैश्य तथा ब्रह्मा जी के चरणों से उत्पन्न व्यक्ति को शूद्र कहा गया. वहीं ब्रह्मा जी के मुख से उत्पन्न मनुष्य ब्राह्मण कहलाया. कायस्थों की उत्पत्ति के संदर्भ में कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के शरीर अर्थात् संपूर्ण शरीर से हुई है.
प्राचीनता
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार धर्मराज यमराज को अपने कार्य में सहायता के लिए एक सहायक की आवश्यकता हुई, जो जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रख सके. इसके लिए उन्होंने ब्रह्मा जी से एक सहायक के लिए प्रार्थना की. तब महाराज चित्रगुप्त ध्यानमग्न ब्रह्मा जी के शरीर से प्रकट हुए. महाराज चित्रगुप्त से हीं कायस्थ समुदाय की उत्पत्ति मानी जाती है. इससे स्पष्ट होता है कि ब्रह्मा जी द्वारा चार वर्णों की रचना के बाद कायस्थों की उत्पत्ति हुई. इस तरह यह समुदाय ब्राह्मणों की तुलना में एक पृथक जाति समुदाय के रूप में बहुत बाद में अस्तित्व में आया.
वर्ण स्थिति
ब्राह्मणों की वर्ण स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है. लेकिन कायस्थों की वर्ण स्थिति को लेकर कई यत हैं. “लेखक ब्राह्मण” समुदाय के रूप में, इन्हें ब्राह्मण वर्ण का माना जाता है. इन्हें क्षत्रिय वर्ण का भी माना जाता है. तो कहीं-कहीं इन्हें एक शुद्र वर्ण के रूप में भी बताया गया है. कहा जाता है कि ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण इनमें सभी वर्णों के गुण हैं. इन सबके विपरीत एक तीसरा मत यह है कि यह समुदाय चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के अन्तर्गत किसी एक वर्ण में नहीं फिट बैठता. इसलिए चित्रगुप्त को ब्रह्मा जी ने अपने ही शरीर से बनाया था ताकि लेखन के सक्षम पाँचवाँ वर्ण अस्तित्व में आ सके.
पारंपरिक कार्य
धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि ब्राह्मणों का परम्परागत कार्य था अध्ययन करना, वेदों का अध्यापन करना, यज्ञ करना तथा कराना तथा दान देना तथा लेना है.जबकि कायस्थ पुजारी का काम नहीं करते हैं. इनका पारंपरिक कार्य लेखन कार्य रहा है. परंपरागत रूप से कायस्थों के पास भूमि और राजस्व संबंधी कार्यों का लेखा-जोखा या दस्तावेज रखना कायस्थों के ही अधिकार में था.

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