Ranjeet Bhartiya 26/02/2023
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Last Updated on 13/03/2023 by Sarvan Kumar

कायस्थ भारत में रहने वाली एक ऐसी जाति है जिसकी उत्पत्ति के बारे में बहुत सी बातें कही जाती हैं. इनकी वर्ण स्थिति को लेकर भी कई अवधारणाएं हैं. परंपरागत रूप से एक लेखक जाति के रूप में इनकी पहचान है. वर्तमान में इस जाति को हिंदुओं की एक अगड़ी जाति के रूप में स्वीकार्यता है. भारत में मुस्लिम कायस्थों की एक छोटी आबादी भी है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे मूल रूप से हिंदू थे, जो मुस्लिम शासकों के शासनकाल के दौरान इस्लाम में परिवर्तित हो गए थे. वहीं, कुछ लोगों का मानना ​​है कि कायस्थ मूल रूप से बौद्ध थे. यहां हम चर्चा करेंगे कि क्या कायस्थ जाति बौद्ध धर्म से संबंधित है.

क्या कायस्थ जाति बौद्ध धर्म से संबंधित है?

वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था के उदय के बाद भारतीय सामाजिक व्यवस्था में एक स्थिरता आई. लेकिन सामाजिक व्यवस्थाएं परिवर्तनशील होती हैं और समय के साथ-साथ उनमें अनेक परिवर्तन होते रहते हैं. भारतीय सामाजिक व्यवस्था में कायस्थों का उदय भी इस परिवर्तनशील सामाजिक संरचना का अद्भुत उदाहरण है. गौतम बुद्ध, भगवान महावीर जैसे विचारकों ने वैदिक दर्शन को चुनौती देते हुए नई सामाजिक व्यवस्थाओं को विकसित करके समाज के पुनर्गठन पर बल देने लगे. इससे भारतीय सामाजिक व्यवस्था में एक नया आन्दोलन प्रारम्भ हुआ और जाति व्यवस्था के अतिरिक्त कार्य, कौशल, भाषा, सहनशीलता और प्रगतिशीलता के आधार पर एक नयी जाति अस्तित्व में आयी, जिसे हम वर्तमान में कायस्थ के नाम से जानते हैं. उत्तर वैदिक काल आते-आते वर्ण आधारित सामाजिक व्यवस्था को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. नए उद्योगों और आर्थिक गतिविधियों के उदय के कारण सामाजिक संरचना ने एक नया आकार लेना शुरू कर दिया. राजशाही व्यवस्था के सामने अपने आर्थिक और प्रशासनिक मामलों का रिकॉर्ड रखना भी जरूरी हो गया. बदलती राजनीतिक और सामाजिक स्थिति में जब इसका महत्व बढ़ा तो बहुत से लोग इन कार्यों की ओर आकर्षित हुए. इसमें संभवत: सभी जातियों के लोग शामिल थे. चित्ररेखा गुप्ता के शोध आलेख (Research article) के अनुसार, यह संभव है कि बौद्धों ने एक शिक्षित गैर-ब्राह्मण वर्ग बनाने के अपने प्रयास में, शिक्षा की उपयोगिता को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया और उन व्यवसायों को बढ़ावा दिया जिनके लिए लेखन का ज्ञान आवश्यक था. इसकी पुष्टि उदान (Udāna) नामक बौद्ध ग्रंथ में होती है, जहाँ लेखा-सिप्पा (‘लेखन का शिल्प’) को सभी शिल्पों में सर्वोच्च बताया गया है. यह इस तथ्य से भी समर्थित है कि लेखाका (‘लेखक’) या कायस्थ का उल्लेख करने वाले सबसे पुराने शिलालेख बौद्ध धर्म के सहयोग से बनाए गए हैं. कुछ पुस्तकों में यह उल्लेख मिलता है कि कायस्थ बौद्ध हैं. श्रावस्ती क्षेत्र के आसपास के कायस्थ ‘श्रीवास्तव’ हैं, संकिसा के आसपास के कायस्थ ‘सक्सेना’ हैं और मथुरा के आसपास के कायस्थ ‘माथुर हैं. कायस्थ के बौद्ध होने के संदर्भ में यह तर्क दिया जाता है कि यह समुदाय चातुर्वर्ण व्यवस्था के तहत किसी एक वर्ण में फिट नहीं बैठता है. यानी कायस्थ चार वर्णों की – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की चारदीवारी के बाहर हैं. अर्थात् यह पांचवीं इकाई या पांचवा वर्ण हैं और यह इकाई और कोई नहीं बल्कि बौद्ध ही हैं. हालांकि, यहां पर यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि इस विषय पर और शोध किए जाने की आवश्यकता है.

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