Sarvan Kumar 31/10/2021
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Last Updated on 02/06/2022 by Sarvan Kumar

बढ़ई (Carpenter) भारत में निवास करने वाली एक जाति है. लकड़ी के सामान बनाना इनका पारंपरिक काम रहा है. इन्हें काष्ठकार (Carpenter) के नाम से भी जाना जाता है. आधुनिक समाज के विकास में इनका महत्वपूर्ण योगदान है. काठ से घर और मंदिरों की आवश्यक वस्तुओं का निर्माण के कारण प्राचीन काल से ही इनका भारतीय समाज में महत्वपूर्ण स्थान रहा है. वैदिक काल में इनका कार्य यज्ञ के पात्र, मंदिरों और और मूर्तियों को बनाना था. आइए जानते हैं बढ़ई जाति का इतिहास बढ़ई शब्द की उत्पति कैसे हुई?

बढ़ई जाति के 9 प्रमुख बातें

1. सनातन  हिंदू धर्म में कार्य के आधार पर जातियों की उत्पत्ति हुई है. प्राचीन काल की व्यवस्था के अनुसार इन्हें जीवन यापन के लिए वार्षिक वृत्ति दी जाती थी.

2. पारिश्रमिक के रूप में इन्हें पर्व-त्यौहार के अवसर पर भोजन, फसल कटने पर अनाज तथा विशेष अवसरों पर कपड़े और अन्य सहायता दी जाती थी. काम कराने वाले घरों के साथ इनका संबंध जीवन भर रहता था. जरूरत पड़ने पर इनके अलावा और कोई दूसरा व्यक्ति उस घर में काम नहीं कर सकता था. इस तरह से इनकी आजीविका सुरक्षित रहती थी. लेकिन वर्तमान में अब मजदूरी देकर काम कराने की प्रथा चल पड़ी है. बड़ी-बड़ी कंपनियां फर्नीचर और लकड़ी के अन्य सामान बनाने का काम करने लगी है. इस सब के कारण इनका रोजगार प्रभावित हुआ है. मजबूरन इन्हें रोजगार के अन्य विकल्पों की तरफ जाना पड़ा है.

3. यह हिंदू धर्म को मानते हैं. इनके इष्ट देव भगवान विष्णु और विश्वकर्मा हैं. विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर यह अपने सभी यंत्र, औजार और मशीन को साफ करते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं.

4. कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, जबकि विश्वकर्मा ने शिल्पो की. धर्म ग्रंथों और अन्य प्राचीन पुस्तकों में पुष्पक विमान, उड़न खटोला, उड़ने वाले घोड़े, रथ, बाण और तरकस आदि का उल्लेख मिलता है. इससे पता चलता है की लकड़ी का कार्य करने वाले बढ़ई अपने कार्य में अत्यंत ही निपुण थे.

5. इस समाज के लोग यह दावा करते हैं कि 5000 साल पहले यह ब्राह्मण होते थे और इन्हें जन्मजात आविष्कारक माना जाता था.

6. भारत में इनकी अनुमानित जनसंख्या लगभग 6-8% है.अलग-अलग राज्यों इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- बढई, शर्मा, मिस्त्री, ठाकुर, राणा, धीमान, सुथार, सुतार, विश्वकर्मा आदि.

7. रामशरण शर्मा लिखित पुस्तक ‘शूद्रो का प्राचीन इतिहास’ के अनुसार -आश्वलायन श्रौतसूत्र रथकार के स्थान में ‘ उपक्रुष्ट’ शब्द प्रयुक्त हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ है कोई निंदित व्यक्ति लेकिन टीकाकारों ने इसका अर्थ लगाया है बढ़ई (तक्षक). इससे पता चलता है कि भले ही बढ़ई की निंदा की जाती थी पर उसे यज्ञ में आने दिया जाता था.

8. पाणिनी के अनुसार बढ़ई दो प्रकार के होते थे ग्रामतक्ष जो गांव में अपने ग्राहक के घर जाकर रोजाना मजूरी लेकर काम करते थे और कौटतक्ष जो अपने घर पर रहकर काम करते थे.

9. ब्राह्मण बढ़ई का पता चलता है जो जंगल से लकड़ी काट कर लाते थे और गाड़ियां बनाकर अपना जीवन यापन करते थे.

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