Last Updated on 26/03/2023 by Sarvan Kumar
तांती (ततवा) भारत में निवास करने वाली एक हिंदू जाति है. बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा में इनकी अच्छी खासी आबादी है. भारत के अलावा बांग्लादेश में भी इनकी आबादी है. तांती की मूल उत्पति पहले की बंगाल से मानी जाती है. तब के बंगाल में आज के बिहार, ओडिशा समेत पूरा बांग्लादेश आता था. ज्यादा पुरानी बात नहीं है तांती समाज के हर घर में करघा (loom) और कपड़े मौजूद होते थे. गमछी, चादर, कंबल बनाना या रेशम के कपडे बनाना इनका परंपरागत पेशा था. आधुनिक युग में जब कपड़ों का उत्पादन कारखानों में किया जाता है, इनके सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है. इसके कारण इन्हें अपना परंपरागत काम को छोड़कर काम धंधे के अन्य अवसरों की तरफ रुख करना पड़ रहा है.यह मुख्य रूप से हिंदी, बंगाली, भोजपुरी और उड़िया भाषा बोलते हैं. यह हिंदू धर्म को मानते हैं. ऐतिहासिक रूप से यह एक प्रतिष्ठित समुदाय है, क्योंकि इस विशेष समुदाय के लोगों का वर्गीकरण धार्मिक विश्वास या समूह के आधार पर नहीं, बल्कि काम पर आधारित है. आइये जानते हैं, तांती जाति का इतिहास तांती शब्द की उत्पत्ति कैसेे हुई?
तांती शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
तांती शब्द की उत्पत्ति हिंदी के शब्द तांत से हुई है, जिसका अर्थ होता है-करघा. करघा एक प्रकार का उपकरण है, जिससे कपड़ा बुना जाता है.
तांती जाति का इतिहास
THE TRIBES and CASTES of BENGAL जो 1891 में H.H. RISLEY के द्वारा लिखी गई थी के अनुसार 1872 में बंगाल में 358,689 तांती थे, जिनमें से केवल 31,457, या 8 प्रतिशत नौ पूर्वी जिलों में रहते थे, जबकि लगभग एक तिहाई मिदनापुर जिले के थे. इसी किताब में एक दंतकथा इस प्रकार मिलती है. तांती जाति शिव दास या घाम दास के वंशज के रूप में दर्शाती है. शिव दास पसीने से पैदा हुए थे, जो नृत्य करते समय भगवान शिव से गिरे थे. शिव दास की पत्नी कुसबती, जिसे शिव ने कुश के पत्ती से बनाया था. शिव दास के चार पुत्र थे- बलराम, उद्धव, पुरंदर और मधुकर, जो इन नामों वाली चार उपजातियों के पूर्वज थे. इसी किताब के अनुसार इस समूह की महिलाएं nose-rings नहीं पहनती थी और इसे सामाजिक विशिष्टता का प्रतीक माना जाता था. यह जाति पारंपरिक रूप से बुनकर जाति रही है. इनका मुख्य पेशा लुम चलाना ही था. इनका काम गमछी, चादर, कंबल बनाना या रेशम के कपडे बनाना था. यह दक्षिण-एशिया में निवास करने वाले कई समुदायों में से एक हैं, जो परंपरागत रूप से इस शिल्प से जुड़े हैं. बिहार में 1 जुलाई 2015 से जाति के आधार पर तांती का कोई अस्तित्व नहीं है. तांती बिहार में पान/स्ववासी समुदाय की एकमात्र उपाधि है. कहा जाता है कि तांती जाति की उत्पत्ति प्राचीन काल में बंगाल में बुनकरों और कपड़ा प्रदाताओं के रूप में हुई थी. यह बुनाई के महान कौशल, लिनेन साथ-साथ रोजमर्रा के सामान्य कपड़े बनाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे.
तांती किस कैटेगरी में आते हैं?
आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत इन्हें विभिन्न राज्यों में अति पिछड़ा वर्ग या अनुसूचित जाति में (Schedule Caste) शामिल किया गया है.
तांती जाति के प्रमुख व्यक्ति
कमल कुमार तांती
इनका (जन्म 1982) असमिया कविता की समकालीन दुनिया में एक प्रसिद्ध युवा आवाज हैं. कमल एक द्विभाषी कवि, आलोचक, लेखक और अनुवादक हैं. यह असमिया और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं.
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tanti jaati wale bhot kam hi hai hamari jaati m log kam sikhshit hai aur kam log ko jobs v hai aap savi tanti samaj k log se anurodh hai aap log vikash ke saile par chaliye hmari jaati se v kisi ka naam bhot upar jaaye…jai bunkar smaj !