Ranjeet Bhartiya 25/08/2023
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Last Updated on 25/08/2023 by Sarvan Kumar

उधम सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे। उन्होंने लंदन में माइकल ओ’डायर की हत्या करके जलियांवाला नरसंहार का बदला लिया।
इस हत्याकांड को अंजाम देने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मौत की सजा दी गयी. फाँसी देने के बाद उनके पार्थिव शरीर को एक कब्र में दफना दिया गया। उनकी मृत्यु के कई वर्षों बाद उनके शव के अवशेषों को भारत लाया गया। इसी क्रम में यहां हम जानेंगे कि उधम सिंह के शव स्वदेश लाने के बाद उनकी अस्थियों को किस नदी में बिखेरा गया था या प्रवाहित किया गया था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास में एक बीभत्स और हृदय विदारक घटना थी। इस घटना ने पूरे भारत को झकझोर के रख दिया। ‌जलियांवाला बाग में हुई गोलीबारी में सैकड़ों निर्दोष भारतीय मारे गए और हजारों घायल हो गए। जलियांवाला बाग हत्याकांड के कई मास्टरमाइंड थे, जिनमें से एक माइकल ओ’डायर भी था, जो उस समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था।

इस जघन्य हत्याकांड से क्रांतिकारी उधम सिंह इतने आहत हुए कि उन्होंने इसका बदला लेने की ठान ली। उन्होंने 13 मार्च 1940 को लंदन में माइकल ओ’डायर की हत्या कर दी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मौत की सजा दी गई। उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को लंदन की पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई और एक कब्र में दफना दिया गया। अंग्रेजों को लगा कि कब्र में दफनाने से उधम सिंह की कहानी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी और वह गुमनामी में खो जाएंगे। पर ऐसा हुआ नहीं।

भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ। भारत सरकार ने उधम सिंह के पार्थिव शरीर को भारत लाने की कोशिश की, जो अंततः 19 जुलाई 1974 को सफल हुई। उधम सिंह की कब्र खोदी गई और उनके शरीर को बाहर निकाला गया। उनके पार्थिव शरीर को एयर इंडिया की विशेष उड़ान से भारत लाया गया। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और शंकर दयाल शर्मा ने दिल्ली हवाई अड्डे पर उनके पार्थिव शरीर का स्वागत किया। एयरपोर्ट पर भारत के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह भी मौजूद थे. उनके पार्थिव शरीर को कपूरथला हाउस ले जाया गया, जहां इंदिरा गांधी उनके स्वागत के लिए मौजूद थीं। उनकी शवयात्रा भारत के जिस भी हिस्से में गई, हजारों की संख्या में लोग उनके स्वागत के लिए आए।

आइए अब इस लेख के मुख्य विषय पर आते हैं और जानते हैं कि उनकी अस्थियों को किस नदी में प्रवाहित किया गया था। उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने उनकी चिता को मुखाग्नि दी। 2 अगस्त 1974 को उनकी अस्थियाँ एकत्र की गईं और उन्हें सात कलशों में रखा गया। उनमें से एक को हरिद्वार, दूसरे को कीरतपुर साहिब गुरुद्वारा और तीसरे को रौज़ा शरीफ भेजा गया। अंतिम कलश को 1919 के नरसंहार स्थल जलियांवाला बाग ले जाया गया। उनकी अस्थियों को हरिद्वार के गंगा और पंजाब के सतलुज नदियों में बहाया गया था।

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