Last Updated on 04/08/2019 by Sarvan Kumar
इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की 6 दिवसीय भारत की यात्रा पर आये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया.बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य को देखते यह यात्रा कोई मायनो में में बहुए महत्वपूर्ण है. सबसे सुखद बात ये है की दोनों देश बहुत ही गर्मजोशी और सकारात्मकता के साथ भारत-इस्राइल रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हैं. इस दौड़े से भारत और इजराइल की दोस्ती और मजबूत हो जाएगी.
इजराइल और भारत की दोस्ती
इस्राइल वो देश है जिसने तमाम इस्लामीक देशो के विरोध और अरब आक्रमकता के बावजूद अपने दम पर 1948 में स्वतंत्र हुआ. भारत दुनिया के उन प्रथम देशों में था, जिसने इस्राइल को 1950 में मान्यता दी. इसके बावजूद भारत ने 1992 तक इस्राइल से राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए. मुस्लिम देशों की नाराजगी के दबाब के कारण भारत कई बार खुलकर इस्राइल का साथ नहीं दे पाया पर इस्राइल ने हमेशा भारत की सामरिक सहायता करता रहा है.
2000 वर्ष पुराना संबंध
इस्त्राइल – भारत के प्रगाढ़ संबंध की वजह 2000 वर्षों पुराना साझा इतिहास है. हिंदू और यहूदी स्मृतियों में लगातार भेदभाव और धर्म एवं जाति के आधार पर झेले गए अत्याचारों, आक्रमणों का अनुभव है. दुनिया के 86 देशों में यहूदियों के साथ नस्ली भेदभाव हुआ, उन्हें निकाला गया, दूसरे धर्मों का नागरिक बनाकर अपमानित किया गया. भारत अकेला ऐसा देश था, जहां के हिंदुओं ने 2000 वर्ष पहले से यहूदियों को अपनेपन, सम्मान व समानता के साथ शरण दी. इस्त्राइल – भारत संबंध के दूसरे आयाम कूटनीतिक, रक्षा, कृषि, टेक्नोलॉजी हो सकते हैं. लेकिन 2000 साल पुराना अपनापन और आत्मीयता इस्राइल और भारत के बीच असाधारण संबंध का मुख्य आधार है.
मोदी की इस्राइल और नेतन्याहू की भारत यात्रा
आज जो दोनों देशों के रिश्ते में गर्मजोशी दिखाई दे रही इसका श्रेय नरेंद्र मोदी की साहसिक विदेश नीति को जाता है. मोदी ने मुस्लिम देशों के भय को खारिज करते हुए पिछले साल जुलाई में इस्राइल की ऐतिहासिक यात्रा की. मोदी स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री हुए, जो इस्राइल की यात्रा पर जाने का साहस कर पाए.
बेकार का विरोध!
इस्राइल से संबंध न तो भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ है, न किसी अन्य देश के. फिलिस्तीन के साथ ही नहीं, खाड़ी तथा अन्य अरब देशों के साथ भारत के परंपरागत संबंध एवं विदेश नीति में निरंतरता जारी है. पर भारत के ज़यादातर मुस्लमान और तथाकथित बुद्धिजीवी यह देखना नहीं चाहते. फिलिस्तीन खुद भी अरब देशों से अलग-थलग हो रहा है, लेकिन भारत में अरब से भी ज्यादा तत्व मिल जाएंगे, जो देश हित की चिंता किए बगैर इस्राइल का विरोध कर रहे हैं, और बैनर लेकर नेतन्याहू की यात्रा का विरोध कर रहे.
फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत का साथ चाहता है इस्राइल
बदलते हुए वैश्विक समीकरण में एक तरफ भारत जहां अपनी सारी झिझक छोड़ कर इस्राइल के साथ सामरिक और टेक्नोलॉजी क्षेत्रों में आगे बढ़ने को तैयार है, वहीं इस्राइल चाहता है की फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत उसका साथ दे. भारत के रिश्ते इस्राइल के साथ कभी भी ख़राब नहीं रहे. लेकिन कई मौकों पर भारत इस्राइल को खुल कर साथ देने में झिझकता रहा. अभी हाल ही में येरूशलम मुद्दे पर भारत का रवैया उसका एक उदाहरण है. जिसपर देश में काफी कानाफूसी भी हुयी.
खुल कर साथ नहीं दे पाता था भारत
इसका एक मुख्या कारण है इस्राइल और अरब देशों के रिश्ते का दोस्ताना नहीं होना, जिसका असर भारत और इस्राइल के रिश्ते पर पड़ता आया है. भारत तेल के लिए अरब देशों पर निर्भर है. भारत के लाखों लोग अरब देशों में रहते और रोजगार करते हैं. इसी दबाब के कारण भारत इस्राइल को कई बार खुल कर साथ नहीं दे पाता, जितना इस्राइल भारत से अपेक्षा रखता है.
इजराइल और भारत की दोस्ती प्रगाढ़ हो रही है
अब ऐसा प्रतीत होता है की हम इस्राइल से और भी प्रगाढ़ संबंध रखने की स्थिति में आ रहे हैं.पहली बात ये है की अब खुद अरब देशों और इस्राइल में कटुता की कमी आने लगी है. अरब मुल्कों और इस्राइल के बीच जो पहले जो कट्टर दुश्मनी थी, उसकी तीव्रता में काफी कमी आई है. भारत पर इसका प्रभाव यह हुआ है कि अगर हम इस्राइल के साथ मित्रता बढ़ाएं, तो अरब देशों के साथ हमारे रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना बहुत कम है.
भारत और ईरान
इस्राइल और ईरान के रिश्ते अभी ठीक नहीं चल रहे. लेकिन भारत और ईरान के रिश्ते आगे बढ़ रहे हैं. चाबहार समझौता भारत और ईरान के बढ़ते रिश्ते का ही उदाहरण है. हमारे लिए अफगानिस्तान से सड़क मार्ग के जरिये कारोबार में पाकिस्तान बाधा बना हुआ है. लेकिन चाबहार बंदरगाह मार्ग से भारत अपना सामान अफगानिस्तान भेज सकता है.भारत अरब देशों, ईरान, अफगानिस्तान और इस्राइल के साथ रिश्तों में एक संतुलन कायम करने की कोशिश की है, और सफल भी रहा है. स्पष्ट है कि भारत ने एक व्यावहारिक विदेश नीति की रणनीति अपनाई है, जिससे इन सभी देशों के साथ हम बेहतर संबंध बनाकर अपने लक्ष्य कीओर बढ़ना चाहता है.
इस्राइल-फलस्तीन विवाद
इस्राइल-फलस्तीन के विवाद दुनिया भर में चर्चा का विषय बना रहता है. ये बात दुनिया जानती है की फलस्तीन के प्रति इस्राइल का रवैया काफी सख्त रहा है. दोनों देशों के बीच आये दिन हिंसक संघर्ष होते रहते हैं.अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में येरूशलम को इस्राइल की राजधानी बनाए जाने की मांग का समर्थन किया है. लेकिन भारत ने इस मामले में संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के विपरीत रुख लिया और विश्व को यह संदेश दिया की भारत किसी भी दबाब में आये बिना अपनी अलग राह और रे अपना सकता है. नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान भी फलस्तीन और येरूशलम का मुद्दा उठा, लेकिन साझा बयान में फलस्तीन मुद्दे का कहीं जिक्र नहीं था. नेतन्याहू ने स्पष्ट कहा की संयुक्त राष्ट्र में में भारत के एक वोट से भारत-इस्राइल के रिश्तों पर फर्क नहीं पड़ेगा.
इजराइल और भारत की दोस्ती के महत्वपूर्ण पहलू
टेक्नोलॉजी
इस्राइल और भारत की दोस्ती का एक महत्वपूर्ण पहलू है- टेक्नोलॉजी. इस्राइल विज्ञानं और इंजीनियरिंग में काफी आगे हो चुका है. इस्राइल ने जो प्रौद्योगिकी विकसित की है, उनसे हम फायदा उठा सकते हैं और वे हमें बेचने के लिए तैयार भी हैं. यह एक हर्ष का विषय है.दोनों देश एक-दूसरे की आर्थिक विकास में मदद कर सकते हैं. भारत कृषि और रक्षा क्षेत्र में इस्राइल की तकनीक का उपयोग करके फायदा उठा सकता है और उन्हें अपना विशाल बाजार भी दे सकते हैं.
नेतन्याहू के दौरे में हुए 9 समझौते
दोनों देश एक-दूसरे के लिए दिल और दरवाजे खोल रहे हैं. नेतन्याहू के इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 9 समझौते हुए हैं. दोनों देशों के बीच फिल्म, स्टार्ट अप इंडिया, रक्षा और निवेश को लेकर सहमति बनी है और उम्मीद की जा रही कि आने वाले समय में दोनों देश मिलकर एक-दूसरे की तरक्की और दोनों देशों की जनता के लिए मिलकर काम कर सकेंगे.
तेल और गैस क्षेत्र में निवेश
दोनों देशों के बीचपहली बार तेल और गैस क्षेत्र में निवेश को लेकर समझौता हुआ. इस्राइल अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारतीय कंपनियों को उन्नत तकनीक देने के लिए तैयार है और इसको लेकर भी समझौता हुआ है. उड्डयन के क्षेत्र में भी समझौता हुआ है, जिससे दोनों देशों के रिश्ते में और प्रगाढ़ता आएगी.
साइबर सुरक्षा समझौता
पहले हुए साइबर सुरक्षा समझौते को और भी व्यापक बनाया गया है.
अंतरिक्ष और औद्योगिक अनुसंधान में समझौता
अंतरिक्ष और औद्योगिक अनुसंधान के क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच दो नए समझौते हुए हैं. एक-दूसरे के निवेशकों को प्रोत्साहन और सुरक्षा देने के संबंध में भी समझौता हुआ.
कुछ अन्य समझौते
दोनों देशों की फिल्मों की शूटिंग को प्रोत्साहन देने के लिए भी समझौता हुआ है. तेल, ऊर्जा, औद्योगिक शोध तथा विकास, पर्यटन, कृषि, टेक्नोलॉजी, रक्षा के क्षेत्र में इस्राइल भारत की काफी मदद कर सकता है. बंजर व कम पानी वाले क्षेत्रों को हरियाला बनाने की तकनीक, खारे जल को पेयजल में बदलने और वर्तमान के पांच अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार को दस अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य-ये सब आज के बदले मौसम के कुछ प्रारंभिक झांकी मात्र हैं.
इजराइल और भारत की दोस्ती और भी होगी मजबूत
मोदी की इस्राइल और नेतन्याहू की भारत यात्रा हमारी विदेश नीति में एक बड़े बदलाव का इशारा है. भारत अब अपनी शक्ति और युक्ति में पूरा भरोसा करने लगा है. अगर इस्राइल जैसे जीवंत,ऊर्जावान, साहसी और कुशाग्र बुद्धि का पराक्रमी विश्वसनीय मित्र का साथ हो , तो निश्चय ही यह देखकर भारत के शत्रुओं की नींद तो उड़ेगी ही. उम्मीद करनी चाहिए कि दोनों देश नए उम्मीद, ऊर्जा और राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ आगे रिश्ता बढ़ाएंगे और एक-दूसरे के लिए फायदेमंद साबित होंगे और तरक्की की नई राह खोलें!