Sarvan Kumar 07/12/2021

Last Updated on 07/12/2021 by Sarvan Kumar

कंजर ( Kanjar) भारत और पाकिस्तान में पाई जाने वाली एक जनजाति है. इन्हें गिहार के नाम से भी जाना जाता है. पुराने समय में अधिकांश कंजर जंगलों में निवास करते थे और खाने के लिए जानवरों का शिकार करते थे. यह मांस और दूध के लिए यह बकरियों, गायों और भैंसों को भी पालते थे. इनमें से कई आज भी घुमक्कड़ और खानाबदोश हैं, लेकिन कुछ शहरों और कस्बों में स्थाई रूप से रहने लगे हैं. घुमक्कर और खानाबदोश कंजर एक निर्धारित मार्ग का पालन करते हैं और अक्सर उन गांवों के साथ संबंध बनाए रखते हैं, जहां से वह गुजरते हैं. पारंपरिक रूप से यह सदियों से कारीगिरी और मनोरंजन करने के पेशे से जुड़े हुए हैं. पहले यह यजमानी का काम करते थे और लोगों का मनोरंजन करते थे. मनोरंजन करने के बदले मिलने वाले धन और पशुओं से यह अपना जीवन निर्वाह करते थे. अब यह खिलौना बनाने का कार्य करते हैं. इनमें से कई खेतिहर मजदूरों के रूप में भी काम करते हैं. वर्तमान में यह अपने परंपरागत धंधे को छोड़कर अन्य लाभकारी काम धंधे को अपनाने लगे हैं. भारत और पाकिस्तान में इनकी महत्वपूर्ण आबादी है. यह पूरे उत्तर भारत के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में फैले हुए हैं. भारत में मुख्य रूप से कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में पाए जाते हैं. 2011 की जनगणना में, उत्तर प्रदेश में इनकी जनसंख्या 1 लाख 15,968 दर्ज की गई थी.

कंजर समाज का इतिहास

पाकिस्तान में यह मुख्य रूप से कराची, लाहौर और फैसलाबाद में निवास करते हैं. कराची में पाए जाने वाले उर्दू भाषी कंजर उत्तर भारत के कंजरो के वंशज हैं. ज्यादातर दिल्ली और लखनऊ से आकर कराची में बस गए. लाहौर में यह मुख्य रूप से शाही मोहल्ले के आसपास के इलाकों में पाए जाते हैं. शाही मोहल्ला एक प्रसिद्ध बाजार है और इस पर लखनऊ और उत्तर भारत के कंजरी तौर-तरीकों का प्रभाव को साफ देखा जा सकता है. धर्म से यह हिंदू, सिख और इस्लाम धर्म के अनुयाई हो सकते हैं. अधिकांश कंजर एक कम प्रसिद्ध भारतीय आर्य भाषा बोलते हैं, जिसे कंजरी कहा जाता है. यह हिंदी, राजस्थानी, भोजपुरी, उर्दू और पंजाबी भाषा भी बोलते हैं. अपनी मूल भाषा कंजरी के साथ-साथ यह चार-पांच अन्य भाषाएं भी बोलते हैं, जिन्हें नरसी-पारसी कहा जाता है. इसमें विभिन्न प्रकार के जानवरों और पक्षियों की ध्वनियों के साथ-साथ कोडित शब्द और संकेत भी शामिल हैं.

 

कंजर जाति के उत्पति

“कंजर” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द “कानन+चर” से हुई है. ‘कानन” का अर्थ होता है-‘जंगल” और “चर” का अर्थ होता है-“विचरण करने वाला”. इस तरह से कंजर शब्द का शाब्दिक अर्थ है- “जंगलों में विचरण करने वाला”. एक किवदंती के अनुसार, कंजर समुदाय के लोग अपने दिव्य पूर्वज “मान गुरु” का वंशज होने का दावा करते हैं. कहा जाता है कि मान गुरु अपनी पत्नी नथिया कंजरिन के साथ जंगल में निवास करते थे. अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान इन्हें अपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 (The Criminal Tribes Act, 1871) के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया था. आजादी के बाद, अपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 अपराधिक जनजाति अधिनियम‌, 1871 को आदित्य अपराधी अधिनियम (The Habitual Offenders Act) द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया और इस तरह से इस समुदाय का नाम अपराधिक जनजाति अधिनियम से हटा दिया गया.

 

 

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