
Last Updated on 07/01/2022 by Sarvan Kumar
कंसबानिक या कंसारी (Kansabanik or Kansari) भारत में पाई जाने वाली एक जाति है. यह परंपरागत रूप से ब्रेज़ियर (brazier) और ताम्रकार (coppersmith) के रूप में काम करते हैं. बंगाल में यह ‘नबासख’ (Nabasakh) समूह का हिस्सा हैं, जिसमें कुल 14 जातियां शामिल है.कंसारी घण्टा धातु (Bell metals), पीतल (Brass) और कांसे (bronze) का भी काम करते हैं. बता दें कि घण्टा धातु (Bell metals) एक कठोर मिश्रातु (alloy) है जिससे घण्टे, घंटियाँ और अन्य उपकरण जैसे झांझ (cymbals) आदि का निर्माण किया जाता है. यह बर्तन और कई प्रकार के उपकरण बनाते हैं और अपने उत्पादों को स्थानीय और बाहरी बाजारों में बेचकर जीवन यापन करते हैं. आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा कंसबानिकों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में मान्यता दी गई है. आइए जानते हैं कंसबानिक जाति का इतिहास, कंसबानिक की उत्पति कैसे हुई?
कंसबानिक जाति एक परिचय
भारत में यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में पाए जाते हैं. उड़ीसा में यह मुख्य रूप से खोर्धा जिले में पाए जाते हैं. यह हिंदू धर्म का पालन करते हैं. देवी लक्ष्मी और भगवान विश्वकर्मा में इनकी विशेष आस्था है. बता दें कि लक्ष्मी माता इनकी कुलदेवी हैं, जबकि भगवान विश्वकर्मा इनके कुलदेवता हैं. यह बंगाली, उड़िया, असमिया और हिंदी बोलते हैं.
कंसबानिक जाति की उत्पति कैसे हुई?
संभवत: कांसे का काम करने के कारण इनका नाम कंसबानिक या कंसारी पड़ा.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इनकी उत्पत्ति भगवान विश्वकर्मा के पुत्र से हुई है. हिंदुओं के एक प्रमुख धार्मिक ग्रंथ बृहद्धर्म पुराण (Brihaddharma Purana) में कंसाबनिकों को जाति पदानुक्रम में उच्च मिश्रित जातियों की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है. एक प्रचलित किवदंती के अनुसार, स्वर्ग की एक अप्सरा को श्राप दिया गया था और उसने पृथ्वी लोक पर मानव के रूप में जन्म लिया. निर्माण और सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा ने धरती पर एक ब्राह्मण के रूप में अवतार लिया. फिर उस श्रापित अप्सरा और भगवान विश्वकर्मा का विवाह हुआ, जिससे उनके 9 पुत्र हुए. सभी पुत्र बड़े होकर कुशल कलाकार और दक्ष शिल्पकार बने. उन्हीं पुत्रों में से एक ब्रेज़ियर और ताम्रकार के रूप में काम करने लगा. कंसबानिक उन्हीं के वंशज होने का दावा करते हैं.

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