Ranjeet Bhartiya 27/11/2021
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Last Updated on 27/11/2021 by Sarvan Kumar

खड़िया मध्य-पूर्व भारत में पाया जाने वाला एक एस्ट्रोएशियाटिक जनजातीय समुदाय है. इनका निवास स्थान मध्य भारत के पठारी क्षेत्र हैं, जहां ऊंची पहाड़ियां, घने जंगल, नदियां और झरने हैं. इन पहाड़ों की तराइयों, जंगलों के बीच समतल मैदानों और ढलान में इनकी बहुतायत आबादी है. यह मूल रूप से ग्रामीण खेतिहर‌ समुदाय है. यह जंगलों को साफ करके खेती करते हैं और विभिन्न प्रकार के फसलों को उगाते हैं. जीविका के लिए यह आहार संग्रह, शिकार, वन उत्पाद, रस्सी और टोकरी बनाने, मजदूरी आदि पर निर्भर हैं. यह कुटीर उद्योग में कुशल होते हैं. आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत इन्हें अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe, ST) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.आइए जानते हैं खड़िया जनजाति का इतिहास , खड़िया शब्द की उत्पति कैसे हुई?

खड़िया जनजाति का इतिहास

यह मुख्य रूप से उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और त्रिपुरा में पाए जाते हैं. 2011 की जनगणना में, देश में इनकी कुल आबादी 4,33,722 दर्ज की गई थी. इस जनगणना में, उड़ीसा और झारखंड में इनकी जनसंख्या क्रमशः 2,22,884 और 1,96,135 दर्ज की गई थी. वहीं, छत्तीसगढ़ और बिहार में इनकी आबादी क्रमशः 49,032 और 11,559 दर्ज की गई थी. ज्यादातर खड़िया हिंदू धर्म को मानते हैं. जबकि अन्य सरना (जो इनका लोक धर्म है) और इसाई धर्म को मानते हैं. अन्य जनजातीय समुदायों की तरह यह भी सूर्य को ऊर्जा का स्रोत और जीवन का मूल आधार मानते हैं. खड़िया सूर्य को “बेड़ों” और चंद्रमा को “बेड़ोंडय” के रूप में पूजते हैं. इनके प्रमुख त्यौहार हैं सरहुल, दिमतड, धानबुनी, नवाखानी और बंदई. इनकी मूल भाषा खड़िया है, जो एस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार की एक भाषा है. खड़िया के अलावा यह मुंडारी, हो, संथाली और हिंदी भाषा बोलते हैं.भाषाविद् पॉल सिडवेल के अनुसार, मुंडा भाषाएं लगभग 4000-3500 साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया से उड़ीसा के तट पर आई थीं. ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा बोलने वाले दक्षिण पूर्व एशिया से फैलकर और स्थानीय भारतीय आबादी के साथ व्यापक रूप से घुल मिल गए

खड़िया जनजाति की उपजातियां

खड़िया समुदाय मुख्य रूप से तीन उप समूहों में विभाजित है-शबर या पहाड़ी खड़िया, डेलकी या ढेलकी खड़िया और दूध खड़िया. इनमें से डेलकी और दूध खड़िया, पहाड़ी खड़िया की तुलना में अधिक विकसित हैं. दूध खड़िया सबसे ज्यादा शिक्षित समुदाय है. पहाड़ी खड़िया घुमंतू जीवन जीते हैं और किसी एक जगह निवास नहीं करते हैं. इसी कारण यह खेती भी नहीं करते हैं. जीवन यापन के लिए यह पूर्ण रूप से जंगलों और वन उत्पादों पर निर्भर हैं. डेलकी और दूध खड़िया का जंगलों से अभी भी संबंध है, लेकिन यह जीवन यापन के लिए केवल वनों पर निर्भर नहीं हैं. इन्होंने खेती के योग्य जमीन तैयार कर लिया है और अब यह खेती करते हैं. यह एक जगह गांव बसा कर के स्थाई रूप से रहते हैं.

पहाड़ी खड़िया:

यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर और बांकुरा जिलों में; झारखंड के पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम जिले; झारखंड के पूर्वी और पश्चिमी जिले में; छत्तीसगढ़ के रायगढ़, रायपुर और बिलासपुर जिलों; और उड़ीसा के गंजाम, कटक, मयूरभंज, कालाहांडी, क्योझर, ढेंकानाल, पुरी, बलांगिर, सुंदरगढ़ और संबलपुर जिलों में निवास करते हैं.

डेलकी खड़िया

अधिकांश डेलकी खड़िया छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़ महासमुंद और कोरबा जी लो में पाए जाते हैं.

दूध खड़िया

यह मुख्य रूप से झारखंड और उड़ीसा में पाए जाते हैं.

खड़िया जनजाति के प्रमुख व्यक्ति 

तेलंगा खड़िया: स्वतंत्रता सेनानी

रोज केरकेट्टा: लेखिका, शिक्षाविद और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता

ज्योति सुनीता कुल्लू: महिला हॉकी खिलाड़ी

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