
Last Updated on 01/08/2022 by Sarvan Kumar
कोरवा (Korwa) मुख्य रूप से भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में पाई जाने वाली एक प्राचीन जनजाति है. अधिकांश कोरवा अन्य समुदायों से अलग-थलग पहाड़ी और जंगली दुर्गम इलाकों में निवास करते हैं. ज्यादातर कोरवा आज भी शिकारी हैं और जंगली उत्पादों, खाद्य पदार्थों, जड़ी-बूटी और कंदमूल को इकट्ठा करने का काम करते हैं. बहुत कम संख्या में बसे हुए कोरवा ने कृषि को अपनाया है. इनकी एक विशेष संस्कृति है. यह सादा जीवन जीते हैं. प्रकृति के साथ इनका अटूट संबंध है. आज भी कंदमूल इनके दैनिक भोजन का मुख्य हिस्सा है. यह कोरवा, सादरी (नागपुरी) और छत्तीसगढ़ी भाषा बोलते हैं. इनके धर्म और रीति-रिवाजों पर हिंदू धर्म का प्रभाव है. इनके अपने देवता हैं जिन्हें डीह के नाम से जाना जाता है. यह सतबहिनी देवी की पूजा करते हैं. इनकी प्रत्येक बस्ती में देवी का मंदिर है, जिसे डीहवार कहा जाता है. आइए जानते हैैं कोरवा जनजाति का इतिहास, कोरवा शब्द की उत्पति कैैैसे हुई?
कोरवा किस कैटेगरी में आते हैं?
आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत इन्हें अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe, ST) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. समय के साथ संख्या घटने के कारण इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य में विशेष पिछड़ी जनजातियों (Special Backward Tribes) में शामिल किया गया है.
कोरवा जनजाति की जनसंख्या, कहां पाए जाते हैं?
यह मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा पर निवास करते हैं. ज्यादातर कोरवा पूर्वोत्तर छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं, जहां इनकी आबादी लगभग 1,30,000 है. छत्तीसगढ़ में यह मुख्य रूप से जशपुर, सरगुजा, बलरामपुर और कोरबा जिलों में निवास करते हैं. झारखंड में इनकी जनसंख्या लगभग 36,000 है और यह मुख्य रूप से पश्चिमी झारखंड में निवास करते हैं. यहां यह मुख्य रूप से है गढ़वा, पलामू और लातेहार जिलों में पाए जाते हैं. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी यह कम संख्या में पाए जाते हैं. उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से राज्य के दक्षिण-पूर्वी कोने में स्थित मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों में निवास करते हैं. बिहार में यह रोहतास, भोजपुर, पूर्णिया और मुंगेर जिलों में पाए जाते हैं.
कोरवा जनजाति कई उप-जातियां
कोरवा जनजाति कई उप समूहों और कुलों में विभाजित है. इनके चार प्रमुख उप समूह हैं- अगरिया कोरवा, दम कोरवा, डीह कोरवा और पहाड़ कोरवा. उप समूह: सात बहिर्विवाह कुलों में विभाजित हैं- गुलेरिया, हरिल, हुहर, लेथ, मुंडा, मुरा और पहाड़ी.
कोरवा जाति की उत्पत्ति कैसे हुई?
इस जनजाति की उत्पत्ति के बारे में ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. फिर भी इनकी उत्पत्ति के बारे में अनेक मान्यताएं और सिद्धांत हैं. कर्नल डाल्टन के अनुसार, यह कोलारियन समूह से निकली एक जाति है.

पहला मत: एक किवदंती के अनुसार, इस जनजाति के लोग भगवान श्री राम और माता सीता से अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं. किंवदंतियों के अनुसार, वनवास काल में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण धान के एक खेत के पास से गुजर रहे थे. पशु-पक्षियों से फसल की रक्षा के लिए एक मानवाकार पुतले को धनुष-बाण पकड़ाकर खेत के मेड़ में खड़ा कर दिया गया था. माता सीता ने कौतूहल बस भगवान राम से उस पुतले में प्राण डालने को कहा. भगवान राम ने पुतले में प्राण डालकर मनुष्य बना दिया, यही पुतला कोरवा जनजाति का पूर्वज था.
दूसरा मत: एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर ने जब सृष्टि की रचना की तो उनके मन में मनुष्य को उत्पन्न करने का विचार आया. तत्पश्चात उन्होंने रेतनपुर राज्य के काला और बाला पर्वत से मिट्टी लेकर दो मनुष्य बनाए. काला पर्वत की मिट्टी से निर्मित मनुष्य का नाम कईला तथा बाला पर्वत की मिट्टी से बने मनुष्य का नाम घुमा रखा गया. इसके बाद शंकर जी ने दो नारियों की मूर्ति का निर्माण किया, जिनका नाम सिद्धि और बुद्धि रखा गया. कईला ने सिद्धि से विवाह किया. इनके तीन संतान हुए. पहले पुत्र का नाम कोल, दूसरे का कोरवा और तीसरे पुत्र का नाम को कोडाकू हुआ. कोरवा के दो पुत्र हुए. पहला पुत्र जो पहाड़ियों में जाकर जंगलों को काटकर दहिया खेती करने लगा, वह पहाड़ी कोरवा कहलाया. दूसरा पुत्र जंगलों को साफ करके हल द्वारा स्थाई खेती करने लगा, वह डिहारी कोरबा कहलाया.
हमारे पाठक के तरफ से एक महत्वपूर्ण सूचना;
कोरवा समाज से आने वाले एक पाठक हमें लिखते हैं उनका Mail ID है-
Korwa Samaj Surguja • korwasamajsurguja@gmail.com
उन्ही के शब्दो में-
आपने कोरवा जनजाति के बारे में लिखा बहुत अच्छी बात है।

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