
Last Updated on 13/01/2022 by Sarvan Kumar
चेरो (Chero) भारत में निवास करने वाली एक जाति है. अलग-अलग क्षेत्रों में इन्हें भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है. पलामू में इन्हें बाराहजारी, दक्षिणी छोटानागपुर में पच्चासी, तो बिहार में इन्हें चारवा या चूरू के नाम से जाना जाता है. झारखंड में निवास करने वाले चेरो मुख्य रूप से किसान हैं, इनमें से कई पहले बड़े जमींदार थे. आइए जानते हैं चेरो जनजाति का इतिहास, चेरो शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
चेरो किस कैटेगरी में आते हैं?
उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. लेकिन सोनभद्र और वाराणसी जिलों में इन्हें अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe, ST) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. बिहार और झारखंड में इन्हें अनुसूचित जनजाति में रखा गया है. उड़ीसा में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का जाति का दर्जा प्राप्त है.
चेरो की जनसंख्या, कहां पाए जाते हैं?
यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में पाए जाते हैं. यह मूल रूप से कई आदिवासी समुदायों, जैसे भर, पासी और कोल आदि, में शामिल हैं जो उत्तर प्रदेश राज्य के दक्षिणी-पूर्वी कोने में पाए जाते हैं. उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से सोनभद्र, मिर्जापुर और वाराणसी जिलों में निवास करते हैं. झारखंड में यह मुख्य रूप से रांची, गुमला, खूंटी, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम आदि जिलों में पाए जाते हैं. बिहार में यह रोहतास, किशनगंज और कटिहार जिलों में पाए जाते हैं.
चेरो जनजाति के धर्म,उप-विभाजन,भाषा
धर्म: यह मुख्य रूप से हिंदू और सरना धर्म को मानते हैं. हिंदू देवी देवताओं के साथ-साथ यह कई आदिवासी देवताओं जैसे सैरी-मां, गंवर भभानी और दूल्हा देव आदि की पूजा करते हैं.
चेरो जनजाति के उप-जातियां
इनके प्रमुख विभाजन हैं- बाराहजारी, तेरहहजारी,पच्चासी, रौतिया और खखरा कूचा रौतिया. हिंदू धर्म को मानने के कारण इन्हें रौतिया कहा जाता है. केकड़ा को मारने के कारण छोटा नागपुर में पाए जाने वाले चेरो जनजाति के लोगों को खखरा कूचा रौतिया कहा जाता है.
उपनाम: चेरो जनजाति के लोगों के प्रमुख उपनाम हैं- राय, साय, रौतिया, महतो और सिंह.
प्रमुख पर्व: इनके प्रमुख पर्व हैं- सोहराई, करम, फागुन, कादोलेटा, जनी शिकार, सरहुल, खुट, पाट, नवाखनी और सरना पूजा.
भाषा: यह हिंदी, ठेठ नागपुरी, मगही, भोजपुरी और मैथिली भाषा बोलते हैं.
चेरो जनजाति का इतिहास
इस जाति के लोग मूल रूप से आदिवासी क्षत्रिय होने का दावा करते हैं. इस समुदाय के अन्य सदस्य नागवंशी होने का दावा करते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह भृगु ऋषि के पुत्र च्यवन ऋषि के वंशज होने का दावा करते हैं. राजपूत शासकों और ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से पहले यह उत्तर प्रदेश, बिहार और पलामू क्षेत्र के पारंपरिक शासक और जमींदार हुआ करते थे. इनका इतिहास गौरवशाली है. झारखंड में चेरो राजवंश का 300 वर्षों से अधिक वर्षों तक राज रहा. पलामू दुर्ग आज भी इस बात का प्रमाण है. मेदनीराय चेरो राजवंश के प्रसिद्ध शासक थे.
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