
Last Updated on 25/05/2022 by Sarvan Kumar
हिंदू समाज में कुलदेवता और कुलदेवी के पूजन का हमेशा से महत्व रहा है. भारत में विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं. जातियों के अनुसार अलग-अलग कुलदेवी और कुलदेवता की पूजा की जाती है. आइए इसी क्रम में जानते हैं कुशवाहा/ कच्छवाह समाज की कुलदेवी के बारे में.
कुशवाहा समाज की कुलदेवी
कुशवाहा/कच्छवाह समाज की कुलदेवी जमवाय माता
(Jamway Mata) हैं. जमवाय माता को समर्पित ऐतिहासिक मंदिर राजस्थान के जयपुर जिले के जमवारामगढ़ अनुमंडल में स्थित है. यह मंदिर जयपुर से लगभग 30 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में, रामगढ़ बांध से कुछ ही दूरी पर स्थित है. इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण कच्छवाह वंश के राजा दूल्हे राय कछवाहा (Raja Dulhe Rai Kachawaha) ने देवी के आशीर्वाद से युद्ध जीतने के पश्चात करवाया था. राजा दूल्हे राय को राजपूताना में कछवाहा शासन स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है.
जमवाय माता के मंदिर का रोचक इतिहास
इस मंदिर का इतिहास अत्यंत ही रोचक है. इस मंदिर के बारे में प्रचलित एक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि पूर्व काल में इस क्षेत्र का नाम मांच (Manch) था. यहां जमींदार मीणाओं का शासन था. स्थानीय किंवदंतियों की माने तो राजा दुल्हे राय को इस क्षेत्र को जीतने के लिए जमवाय माता की आध्यात्मिक शक्ति से प्रोत्साहित किया गया था. कहा जाता है कि जमवाय माता राजा दूल्हे राय के सपने में आईं और उन्हें इस क्षेत्र को जीतने के लिए निर्देश दिया. दूल्हे राय और मीणाओं में युद्ध हुआ जिसमें दूल्हे राय की हार हुई. वह मूर्छित हो गए. मूर्छित अवस्था में उन्हें जमवाय माता ने दर्शन दिया. माता ने दूल्हे राय से कहा कि मीणा राजा उनके मंदिर में तामसी भोग अर्पित करते हैं. यदि तुम तामसी भोग बंद करा के मीठे भोग करवाना शुरू करोगे और मंदिर का जीर्णोद्धार करवाओगे तो तुम मीणाओं से यह युद्ध जीत जाओगे. साथ हीं तुम्हें जीवन दान भी मिलेगा. बिल्कुल ऐसा ही हुआ. माता की कृपा से राजा दूल्हे राय कछवाहा युद्ध जीत गए. उन्होंने मंदिर में तामसी भोग बंद करवा दिया. तामसी भोग की जगह माता को मीठी लापसी (मीठे दलिया ) का भोग अर्पित किया जाने लगा. मांच का नाम बदलकर अब इसका नाम जमवा रामगढ़ रख दिया गया. एक अन्य मान्यता के अनुसार, कछवाहा राजा दुल्हे राय ने नरवर (ग्वालियर) से आकर सर्वप्रथम राजस्थान के दौसा में अपना राज्य स्थापित किया. उनकी इच्छा राज्य विस्तार की हुई. इसके लिए उन्होंने सोचा कि ढूंढाड़ (जयपुर क्षेत्र) पर अधिकार किया जाए, जिस पर मीणाओ का कब्जा था. राजा दूल्हे राय और मीणाओं के बीच युद्ध शुरू हो गया. मीणाओं के साथ युद्ध करते-करते एक दिन राजा कुछ सैनिकों के साथ अपनी कुलदेवी बुडवाय माता का दर्शन करने गए. तभी रास्ते में मीणाओं ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया. दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ, लेकिन कम सैनिक होने के कारण राजा दूल्हे राय की सेना ज्यादा देर तक मीणाओं का सामना नहीं कर पाई. राजा और उनकी सेना के सैनिक घायल और मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े. इस हमले में केवल राजा दूल्हे राय की रानी और पुरोहित ही सुरक्षित बच पाए. रानी जोर-जोर से रोने लगी. इस पर पुरोहित ने रानी से कहा कि रानी आप अपने कुलदेवी का स्मरण करो. वही आपको इस विपदा से बचा सकती हैं, यह युद्ध जितवा सकती हैं तथा आपके पति के प्राणों की रक्षा कर सकती हैं. रानी ने ऐसा ही किया. तभी एक बूढ़ी औरत गाय के साथ प्रकट हुई. रानी उस बूढ़ी औरत का पैर पकड़ के रोने लगी. बूढ़ी महिला ने रानी को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम इस वट वृक्ष के पत्तों का दौना बनाकर इस गाय का दूध अपने पति और सैनिकों छिड़को, यह सभी लोग जीवित हो जाएंगे. रानी ने ऐसा ही किया. सभी सैनिक और राजा दूल्हे राय जीवित हो गए. फिर राजा और रानी ने उस बूढ़ी महिला को प्रणाम किया और समझ गए कि यह उनकी कुलदेवी बुडवाय माता का ही रूप हैं. माता ने राजा दूल्हे राय के समक्ष तीन शर्ते रखीं.
पहला, आज से मुझे आज से मुझे बुडवाय माता के स्थान पर जमवाय माता कह कर पुकारा जाये. जमवाय माता के नाम से हमारे मंदिर का निर्माण इसी वटवृक्ष के नीचे करवाया जाए. अपने इष्ट देव श्री राम और कुलदेवी के नाम पर इस क्षेत्र का नाम जमवा रामगढ रखा जाए. दूसरी, अपनी सेना के साथ मीणाओं पर आक्रमण करो, तुम्हारी जीत निश्चित है. तीसरी, नव विवाहित जोड़ा विवाह के बाद मेरे दरबार में ढोक लगाने जरूर आवे और अपने बच्चो का मुंडन संस्कार हमारे ही प्रांगण में हो. राजा दुल्हे राय ने अपनी कुलदेवी की सभी शर्तो माना. मीणाओं पर आक्रमण कर उस क्षेत्र को जीत लिया. ढूंढाड़ क्षेत्र का नाम जमवा रामगढ कर दिया. जमवाय माता के इस मंदिर का कच्छवाह समाज के लोगों के लिए विशेष महत्व है. माता का यह वही मंदिर है जिसे अपने आराध्य और कुलदेवी मानकर कच्छवाह वंश के शासकों ने सैंकड़ों सालों तक आम्बेर पर शासन किया और विश्व भर में गुलाबी नगरी (Pink City) के नाम से प्रसिद्ध जयपुर नगर को बसाया. इस मंदिर में नारियल का चढ़ावा चढ़ाना शुभ माना जाता है. देश भर के कच्छवाह वंश के लोग आज भी विशेष मौकों जैसे बच्चों का मुण्डन और विवाह के बाद जोड़े की ढोक लगाने यहां आते हैं. अब राजस्थान में जमवाय माता के कई छोटे मंदिर बन गए हैं. लेकिन सबसे प्राचीन और जमवाय माता पहला मंदिर होने के कारण जमवारामगढ़ में स्थित इस मंदिर में लोगों की विशेष आस्था है. इतना ही नहीं, भले ही जमवाय माता कच्छवाह वंश की कुलदेवी हैं लेकिन अन्य जातियों और वंश कि लोग भी आदि भवानी शक्ति की रूप जमवाय माता के दरबार में माथा टेकने आते हैं. नवरात्रि के पावन अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से पैदल यात्रा करके माता के दरबार में हाजिरी लगाते हैं और अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं.

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