Ranjeet Bhartiya 27/10/2021

Last Updated on 24/06/2022 by Sarvan Kumar

पारंपरिक रूप से किसान रहे इस जाति के लोग वर्तमान में राजकीय सेवाओं, व्यापार, उद्योग और आधुनिक रोजगार नौकरी में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. साथ ही इस जाति के लोग राजनीति के क्षेत्र में भी अपना झंडा बुलंद कर रहे हैं. कल्याण सिंह, उमा भारती और साक्षी महाराज लोधी समाज से हीं आते हैं. आजादी की लड़ाई में इस समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 1857 की क्रांति तो देश के इतिहास और गजेटियर में दर्ज है, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति 1842 में दमोह में बुंदेला विद्रोह के रूप में हुई थी. इसमें लोधी समाज के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसमें लोधी सरदारों पर काबू पाने में अंग्रेजों के पसीने छूट गए थे और उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 1857 की क्रांति में लोधी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अंग्रेजो के खिलाफ लड़े थे. आइए  जानते हैैं  लोधी समाज का इतिहास,  लोधी शब्द की उत्पत्ति कैैैैसे हुई?

लोधी एक महान जाति

लोधी भारत में पाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण कृषक जाति है. परंपरागत रूप से यह जमीनों के मालिक रहे हैं और खेती इनका मुख्य पेशा रहा है. यह लोधा के नाम से भी जाने जाते हैं. यह राजपूतों से संबंधित होने का दावा करते हैं तथा लोधी राजपूत कहलाना पसंद करते हैं. लेकिन इनके राजपूत मूल से उत्पन्न होने के प्रमाण नहीं मिलते, ना हीं इस जाति में राजपूत परंपराएं प्रचलित हैं. लोधी जाति का इतिहास स्वर्णिम और गौरवशाली है. इसे एक उत्कृष्ट योद्धा जाति के रूप में जाना जाता है. इस जाति ने देश और समाज को अनेक शूरवीर योद्धा दिया है. आजादी की लड़ाई में इस समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

लोधी किस कैटेगरी में आते हैं?

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली आदि राज्यों में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

लोधी जाति की जनसंख्या,  कहां पाए जाते हैं?

यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, राजस्थान, दिल्ली आदि राज्यों में पाए जाते हैं. मध्यप्रदेश में इनकी बहुतायत आबादी है, यहां यह उत्तर प्रदेश से विस्थापित होकर बस गए हैं. यह हिंदू धर्म में आस्था रखते हैं.

लोधी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

ब्रिटिश प्रशासक रॉबर्ट वेन रसेल (Robert Vane Russell) ने लोधी शब्द की उत्पत्ति के बारे में निम्नलिखित संभावित बातों का उल्लेख किया है.

रसेल के अनुसार, उत्तर भारत में यह लोग लोध या लोध्र के पत्तों और छालों से रंगों (dye) का निर्माण करने का कार्य करते थे, जिसके कारण यह लोधी कहलाए. रसेल ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि यह मूल रूप से पंजाब के लुधियाना के रहने वाले थे और वहां लोधा के नाम से जाने जाते थे. लुधियाना से मध्य प्रांतों में विस्थापित होने के बाद अपभ्रंश होकर यह लोधी कहलाने लगे.

लोधी समाज का इतिहास 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस क्षत्रिय जाति का जन्म वर्तमान के कजाकिस्तान में हुआ था. भगवान परशुराम जब पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर रहे थे, तब इन्होंने देवताओं की मदद से शिव मंदिर में छुप कर अपनी जान बचाई. क्योंकि यह एकमात्र जीवित क्षत्रिय थे, इसीलिए यह राजा बन गए. यही कारण है कि इस जाति के लोग खुद को लोधी राजपूत कहलाने पर जोर देते हैं.

लुधियाना से लोधी

ब्रिटिश स्रोतों और लोधिओं की वंशावली के अनुसार, यह मूल रूप से उत्तर भारत लुधियाना के रहने वाले थे, जो वहां से विस्थापित होकर मध्य भारत में आकर बस गए. ऐसा करने से उनके सामाजिक स्तर में उत्थान हुआ. नए जगहों पर उन्हें उच्चतम कृषि जाति के रूप में स्थान दिया गया. यहां यह जमींदार और स्थानीय शासक बन गए. पश्चिम मध्य भारत के कुछ जिलों में यह बड़े जमींदार बन गए. कुछ बड़े जमींदारों को ठाकुर जैसे सम्मानित उपाधि से संबोधित किया जाने लगा. कई जगहों पर लोधी जमींदारों को मुसलमान शासकों ने अर्ध स्वतंत्र पद प्रदान किया. बाद में इन्होंने पन्ना के राजा को अपना अधिपति स्वीकार किया. मुस्लिम शासकों और पन्ना के राजा ने दमोह और सागर के कुछ लोधी परिवारों को दीवान, राजा और लंबरदार की उपाधियां प्रदान की.

लोधी  एक राजपूत जाति

राजपूत लोधी

1911 की जनगणना के बाद इन्होंने राजनीतिक रूप से एकजुट होने का प्रयास शुरू किया. 1921 की जनगणना से पहले फतेहगढ़ में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें इन्होंने लोधी राजपूत नाम का दावा किया. 1929 में “अखिल भारतीय लोधी क्षत्रिय (राजपूत)” महासभा की स्थापना की गई. महासभा द्वारा इस जाति के क्षत्रिय राजपूत होने के दावे के समर्थन में कई पुस्तकें प्रकाशित की गई, जिसमें 1912 में प्रकाशित “महलोधी विवेचना” और 1936 मैं प्रकाशित “लोधी राजपूत इतिहास” प्रमुख है.

लोधी समाज के प्रमुख व्यक्ति

इस समाज में अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों ने जन्म लिया है. उनमें से कुछ के बारे में नीचे उल्लेख किया जा रहा है-

रानी अवंतीबाई लोधी

Avantibai on a 2001 stamp of India
Image: Wikimedia Commons

रानी अवंती बाई लोधी (16 अगस्त 1831-20 मार्च 1858) 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शहीद वीरांगना हैं. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इनका योगदान रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं है. इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की और उनके छक्के छुड़ा दिए. देश और स्वाभिमान के लिए अपने प्राणों की आहुति देखकर रानी अवंती बाई आज भी हमें और आने वाली पीढ़ियों को अनंत काल तक  राष्ट्र निर्माण के लिए त्याग और बलिदान तथा देशभक्ति की प्रेरणा देती रहेंगी.

कल्याण सिंह

कल्याण सिंह (5 जनवरी 1937-21 अगस्त 2021) का जन्म अलीगढ़ के अतरौली तहसील के मढौली गांव में एक साधारण लोधी किसान परिवार में हुआ था. प्रखर हिंदूवादी नेता के रूप में मशहूर कल्याण सिंह उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं, जब प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था. वह एक सख्त, इमानदार और कुशल प्रशासक जाने जाते थे.उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता दिलाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर उन्होंने बीजेपी नहीं छोड़ी होती तो अटल-आडवाणी के बाद पार्टी के सबसे बड़े नेता होते.

उमा भारती

उमा भारती एक जुझारू राजनेता, हिंदू धर्म प्रचारक और समाज सेवी हैं. इनका जन्म 3 मई, 1959 को टीकमगढ़, मध्य प्रदेश के एक लोधी राजपूत परिवार में हुआ था. उमा भारती ने साध्वी से मुख्यमंत्री तक का एक लंबा राजनीतिक सफर तय किया है. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में मानव संसाधन, खेल, पर्यटन, युवा मामलों, कोयला और खाद्यान्न मंत्री का पदभार संभाला. 2003 में वह मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं.

साक्षी महाराज

साक्षी महाराज का जन्म 12 जनवरी, 1956 को कासगंज जिले में एक लोधी परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1990 में भारतीय जनता पार्टी के साथ की थी. 1996, 1998 2014 में वह लोकसभा के लिए चुने गए. साल 2000 में उन्हें राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया गया था.

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