Last Updated on 19/02/2022 by Sarvan Kumar
मौर्य या मुराव (Maurya or Murao) भारत में पाया जाने वाला एक जाति समुदाय है. इन्हें कई नामों से जाना जाता है, जैसे-मुराव, मुराऊ, मुराई, मोरी आदि. यह एक क्षत्रिय और कृषक जाति है. के चेट्टी (K. Chetty) के अनुसार ‘मुराव’ पारंपरिक रूप से ज़मींदार थे. वर्तमान में इस समुदाय के ज्यादातर सदस्य जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर हैं. इनमें से कई पशुपालन व्यवसाय से भी जुड़े हुए हैं. इनमें से कई शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाकर विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है, जहां वह समाज और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं.आइए जानते हैं मौर्य समाज का इतिहास, मौर्य की उत्पति कैसे हुई?
मौर्य जाति एक परिचय
भारत सरकार के सकारात्मक भेदभाव की प्रणाली आरक्षण के अंतर्गत इन्हें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.भारत के कई राज्यों में इनकी उपस्थिति है. लेकिन मुख्य रूप से उत्तर भारत में इनकी बहुतायत आबादी है. विलियम पिंच ने अपनी किताब “Peasants and Monks in British India” में इन्हें मध्य उत्तर प्रदेश के एक कृषक जाति के रूप में वर्णित किया है. अधिकांश मौर्य सनातन हिंदू धर्म को मानते हैं. इनमें से कई शैववाद/शैव संप्रदाय में आस्था रखते हैं और भगवान शिव और उनके अवतारों की पूजा करते हैं. इनमें से कुछ बौद्ध और जैन धर्म को भी मानते हैं.
वर्ण स्थिति
“हिंदी विश्वकोश” नामक पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि इस समुदाय के लोग सूर्यवंशी क्षत्रिय होने का दावा करते हैं.
गोत्र
सप्तखंडी जाति निर्णय (भाग-2) नामक पुस्तक के अनुसार; काछी, कुइरी और मुराव; ये जातियां एक ही है. इनमें केवल नाममात्र की ही भिन्नता है, इसीलिए इन्हें एक ही समझा जाना चाहिए.मौर्यों (मुरावों) में 232 गोत्र हैं, जिनमें से प्रमुख हैं-
उत्तराहा, दखिनाहा, पछवाहा, पुर्विया, ढंकुलिया, ठाकुरिया, तनराहा, सक्तिया(सकटा), भक्तिया(भगता), शाक्यसेनी, हल्दिया, प्रयागहा, भदौरिया, इत्यादि.
भाषा
यह हिंदी और अवधी भाषा बोलते हैं.
मौर्य शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के नाम पर इस समुदाय का नाम मौर्य पड़ा. समय के साथ इनके मूल नाम में कई परिवर्तन आया. इतिहासकार पंडित छोटे लाल शर्मा ने अपनी पुस्तक “सप्तखंडी जाति निर्णय – भाग [2] में कहा है कि,
“सबसे पहले ‘मौर्य’ शब्द परिवर्तित होकर ‘मौर्यवा’ हुआ. कालांतर में ‘मौर्यवा’ शब्द भाषा में बदलकर ‘मोरयवा’ और ‘मोरावा’ हो गया. फिर ‘मोरावा’ से बदल कर
‘मुराव’ रह गया, जो आजकल ज्यादा प्रचलन में है.
सरकारी अधिकारियों ने इस जाति की विवेचना करते हुए इन के अलग-अलग नाम लिखे हैं,जैसे -मुराव/ मुराऊ/मुराई/मोरी आदि.”
मौर्य जाति का इतिहास
इनकी उत्पत्ति के बारे में कई मान्यताएं हैं.एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, यह सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के वंशज हैं. इतिहासकार पंडित जे पी चौधरी और गंगाप्रसाद गुप्ता के अनुसार, मौर्य (मुराव/मोरी) एक क्षत्रिय जाति है जो श्री राम के वंशज शाक्यों की उपशाखा हैं. Wesleyan University में इतिहास के प्रोफेसर और दक्षिण एशिया, विशेषकर भारत के इतिहास के विशेषज्ञ, विलियम आर. पिंच (William R. Pinch) भी इसी मत का समर्थन करते हैं. इनका इतिहास अत्यंत ही स्वर्णिम और गौरवशाली रहा है. इस समुदाय का संबंध मौर्य राजवंश से है. मौर्य राजवंश (321 B.C.E – 185 B.C.E) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था जिसने भारतवर्ष पर 137 वर्ष तक राज किया था. मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने किया था. इस राजवंश की स्थापना में चाणक्य (कौटिल्य) की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस राजवंश में सम्राट चंद्रगुप्त, सम्राट बिंदुसार, सम्राट अशोक महान आदि चक्रवर्ती राजा हुए.
मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) थी.
मौर्य जाति के प्रमुख व्यक्ति
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य
सम्राट बिन्दुसार मौर्य
सम्राट अशोक महान
केशव प्रसाद मौर्य
स्वामी प्रसाद मौर्य
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References;
वसु, नागेंद्रनाथ. हिंदी विश्वकोश : भाग — [१११]. पपृ॰ १०९.
सप्तखंडी जाति निर्णय – भाग [2]
Educational and Social Uplift of Backward Classes: At what Cost and …, Part 1
By S. P. Agrawal, Suren Agrawal, J. C. Aggarwal
Caste and Religions of Natal Immigrants
by K. Chetty
Peasants and Monks in British India
By William R. Pinch