
Last Updated on 29/08/2020 by Sarvan Kumar
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती हम 25 सितम्बर को बड़े खुशी से मनाते है.ये वही दिन था जब महान चिन्तक और कुशल पंडित दीनदयाल उपाध्याय पैैैदा लिऐ थे. वे भारतीय जनसंघ (आज की बीजेपी) के सह-संस्थापक थे. उनके विचार आज भी प्रासंगिक है और हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती के अवसर पर उनके अनमोल विचार
राष्ट्रीयता (Nationalism) पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार
1. हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता हैं, केवल भारत नहीं. भारत से माता शब्द हटा दीजिये तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जायेगा.
2. एक राष्ट्र लोगों का एक समूह होता है, जो एक लक्ष्य, एक आदर्श और एक मिशन के साथ जीते हैं और उस धरती के विशेष भूभाग को मातृभूमि के रूप में देखते हैं. अगर आदर्श या मातृभूमि – इन दोनों में से एक भी नहीं है तो राष्ट्र का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता.
3. यह आवश्यक है कि हम ‘हमारी राष्ट्रीय पहचान’ के बारे सोचें. राष्ट्रीय पहचान के बिना आजादी’ का कोई मतलब नहीं है. राष्ट्रीय पहचान की उपेक्षा करना भारत के मूलभूत समस्याओं का प्रमुख कारण है.
4. अगर राष्ट्र के आदर्श या मातृभूमि का बोध दोनों में से किसी का भी लोप होता है तो एक राष्ट्र संभव नहीं हो सकता.
राजनीति (Politics) पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार-
1. सिद्धांतहीन अवसरवादी लोगों ने हमारे देश की राजनीति का बागडोर संभाल रखा है.
2. राजनीतिक अवसरवादिता (Political Opportunism) ने राजनीति में लोगों के विश्वास को हिला दिया है.
3. किसी व्यक्ति को वोट दें, बटुए को नहीं,किसी पार्टी को वोट दें, व्यक्ति को नहीं; सिद्धांत को वोट दें, पार्टी को नहीं.
भारतीय संस्कृति (Indian Culture) पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार-
1. जब अंग्रेज भारत पर राज कर रहे थे, तब हमने उनके विरोध में गर्व का अनुभव किया, लेकिन हैरानी की बात है कि अब जबकि अंग्रेज चले गए हैं,आज पश्चिमीकरण प्रगति का पर्याय बन गया है
2. मानव ज्ञान सामूहिक संपत्ति है.
3. मानवीय और राष्ट्रीय दोनों तरह से, यह ज़रूरी है कि हम भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों के बारे में सोचें.
4. भारतीय संस्कृति की मूलभूत विशेषता है कि यह जीवन को एक एकीकृत रूप में देखती है.
5. शक्ति अविचारपूर्ण व्यवहार में खर्च न हो बल्कि अच्छी तरह समन्वित कार्रवाई में निहित होनी चाहिए.
6. मुसलमान हमारे शरीर का शरीर और हमारे खून का खून हैं.
7. संघर्ष सांस्कृतिक स्वभाव का एक संकेत नहीं है बल्कि यह सांस्कृतिक गिरावट का एक लक्षण है.
8. मानव प्रकृति में दोनों प्रवृत्तियां रही हैं – एक ओर क्रोध और लालच तो दूसरी ओर प्रेम और बलिदान.
9. भारत में हमने अपने समक्ष मानव के पूर्ण विकास के लिए शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा की आवश्यकताओं की पूर्ती करने की चार– स्तरीय जिम्मेदारियों का आदर्श रखा है.
धर्म (Religion) पर विचार
1. अंग्रेजी का शब्द रिलिजन (Religion) धर्म के लिए सही शब्द नहीं है.
2. रिलिजन का मतलब एक पंथ या संप्रदाय है और इसका मतलब धर्म तो कतई नहीं.
3. धर्म एक बहुत ही व्यापक अवधारणा है जो समाज को बनाये रखने के जीवन के सभी से सम्बंधित है.
4. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (मानव प्रयास के चार प्रकार) की लालसा व्यक्ति में जन्मजात होता है और इनमें संतुष्टि एकीकृत (integrated) रूप से भारतीय संस्कृति (Indian Culture) का सार है.
5. जब स्वभाव को धर्म के सिद्धांतों (Principles of Religion)के अनुसार बदला जाता है तब हमें संस्कृति और सभ्यता प्राप्त होती है.
6. धर्म के मूल सिद्धांत सत्य है जो सार्वभौमिक (universal) हैं. हालांकि उनका क्रियान्वन समय, स्थान व परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग हो सकता है.
