Ranjeet Bhartiya 01/11/2021
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Last Updated on 15/06/2023 by Sarvan Kumar

हमारे एक पाठक ने हमें पनिका समाज के उत्पति के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी दी है, वे लिखते हैं-

” पनका शब्द उत्पत्ति पन+काया से बना है, “पन” का अर्थ अवस्था से है,और काया का शरीर से है।
मानव का काया शरीर पांच पन से गुजरने वाला होता है। जिसे “पनका” कहा जाता है। शिशु’पन’ बच’पन’ लड़क’पन’ जवानी’पन’ होकर काया शरीर बूढ़ा’पन’ में अंतिम पन काया की अवस्था होती है। “पनका” शब्द मानव शब्द का भावार्थ वाचक शब्द है। पनका समुदाय एक भारतवर्ष की आदि मौलिक कुटुंब जनजाति है। “पनिका” शब्द भाव वाचक जाति समाज समुदाय की उत्पत्ति पनि+काया से बनी हुई है। जिसमें “पनि” शब्द का भावार्थ आत्मा तत्व है। काया शब्द भाव शरीर से है। आत्म तत्व बोधि को पनिका कहा जाता है। पनकाया शब्द उच्चारणगत कालांतर में पनका कहा गया। इसी प्रकार पनिकाया शब्द का उच्चारण गत कालान्तर में पनिका शब्द से बोला गया। अर्थात जो पनका (व्यक्ति) को गुरू मुखी होकर आत्म तत्व ज्ञानी वाला हुआ। उसे गुरूमुखी जन को पनिका शब्द से सम्बोधित करने या कही जाने की परंपरा रही हैं।

पूर्वजों के बताए अनुसार पनका (मानव) द्वारा सामाजिक जीवन दर्शन व लोक व्यवहार के लिए मानवता पूर्ण गुणों का संकलित कर श्रुति और स्मृति के तहत धरोहर (थाथी) के रूप में जिसे किया संग्रहित किया गया, उसे हमारा पनका जाति समुदाय के पूर्वज लोगों ने “पनका थाथी” कहते थे,जिसे कालांतर में “पन्था” कहा जाता रहा,जिसे वर्तमान में “पन्थ” कहा जाता है। पनिका पनका जाति समुदाय की पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवसाय कपड़ा बुनकरी आदिकाल से रहा है। कबीर भी बुनकर थे। जिसे हमारे पूर्वज जन सतकबीर साहेब के नाम से आराध्य इष्ट देव के रूप में मानते हैं। सतकबीर की मानव(पनका) कल्याण -कारी जीवन दर्शन पद्धति को “कबीर”पन्थ” कहते हैं!”

आपका
रेशम दास मानिकपुरी जिला मुख्य संरक्षक
जिला पूज्य पनिका समाज जिला महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

पनिका समाज का इतिहास

पनिका (Panika) भारत में पाई जाने वाली एक हिंदू जाति है. इन्हें पंक और पनिकर के नाम से भी जाना जाता है. यह परंपरागत रूप से बुनकर रहे हैं. वर्तमान में यह समुदाय बड़े और मध्यम आकार के जमीनों के मालिक हैं तथा कृषि का कार्य करते हैं. कुछ पनिका अभी भी बुनाई का कार्य करते हैं. यह समुदाय अपनी ईमानदारी, प्रतिबद्धता और बहादुरी के लिए जाना जाता है.

पनिका जाति कहाँ पाए जाते हैं?

यह मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में पाए जाते हैं. उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से सोनभद्र और मिर्जापुर जिले में पाए जाते हैं. मध्य प्रदेश के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, शहडोल और रीवा जिला में इनकी अच्छी खासी आबादी है. यह हिंदी, छत्तीसगढ़ी और उड़िया भाषा बोलते हैं.

पनिका किस धर्म को मानते हैं?

पनिका जाति दो व्यापक समूहों में विभाजित है: कबीरपंथी बागत (सबसे बड़ा समूह) और साकट (शाक्त). कबीरपंथी संत कबीर दास के उपदेशों का अनुसरण करते हैं तथा शराब मांस और अन्य चीजों से परहेज करते हैं. जबकि शाक्त प्रकृति से अधिक आदिवासी हैं और मांस-मदिरा का सेवन करते हैं. जो पनिका कबीर पंथी है, उनके धर्मगुरु महंत कहलाते हैं जो अक्सर पीढ़ी दर पीढ़ी गद्दी संभालते है. कबीर दास जी के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए माघ, फाल्गुन और कार्तिक की पूर्णिमा को उपवास रखा जाता है. कट्टर कबीर पंथी देवी-देवताओं को नहीं पूजते किंतु “शाक्त पनिका’ अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं.

पनिका समाज पेशा

अन्य आदिवासियों की तुलना में छत्तीसगढ़ के पनिका अधिक प्रगतिशील है. उनमें से कई बड़े भूमिपति भी हैं, किंतु सामान्यतः ये कपड़े बुनने का कार्य करते हैं. गरीब पनके हरवाहों क काम करते हैं.अब वे बुनकरी के साथ -साथ, खेती पशुपालन, और बिजनेस भी  करते हैं. पढ़ें लिखे पनिका लोग सरकारी या निजी नौकरी भी करते है. उनकी प्रमुख फ़सलों में चावल, गेहूँ, चना-मटर, ज्वार, मक्का, तिल और सरसों शामिल हैं. उनके क्षेत्र में मिल-निर्मित कपड़े के तेजी से उत्पादन के कारण कपड़ा बुनाई का उनका पारंपरिक व्यापार धीरे-धीरे पुराना होता जा रहा है.

पनिका शब्द की उत्पत्ति का एक और मत

परंपराओं के अनुसार, इस जाति का नाम हिंदी के शब्द पंखा पर पड़ा है. ऐतिहासिक रूप से यह समुदाय पंखा बनाने का काम करता था, इसीलिए इसका नाम कालांतर में पंखा से अपभ्रंश होकर पनिका पड़ा.

पनिका किस कैटेगरी में आते हैं?

भारत सरकार के आरक्षण प्रणाली के तहत इन्हें विभिन्न राज्य में अलग-अलग ढंग से वर्गीकृत किया गया है. साल 1949 में भारत सरकार ने इस पूरे समुदाय को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के रूप में सूचीबद्ध किया था. लेकिन 1971 में मध्य प्रदेश सरकार ने उस समय राज्य के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में निवास करने वाले पनिका समुदाय को अन्य पिछड़ा (OBC) में शामिल कर दिया. 2001 में स्वतंत्र छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद इन्हें ओबीसी में ही रखा गया. इस समुदाय के लोग फिर से खुद को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. मध्यप्रदेश में इन्हें कुछ जिलों में अनुसूचित जनजाति तो अन्य में ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है. पेचीदा आरक्षण व्यवस्था का असर शादी-विवाह पर भी पड़ा है. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बसे परिवारों के बीच 1971 से निरंतर शादी होती आ रही है. अगर कोई लड़की शादी के बाद छत्तीसगढ़ आती है, तो उसे अपनी आदिवासी साख खोनी पड़ेगी. यदि मध्य प्रदेश का कोई लड़का छत्तीसगढ़ की लड़की से शादी करता है, तो उसे एक आदिवासी की मान्यता मिलेगी.

पनिका समाज जनसंख्या

1911 के जनगणना के अनुसार पनिका समाज की जनसंख्या 2,15000 थी. Bhaskr.com में प्रकाशित एक खबर अनुसार छत्तीसगढ़ में 12 लाख तथा देश भर में 30 लाख की आबादी है.

पनिका समाज से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी

The Tribes And Castes Of The North Western India Vol. 4 किताब जो 1896 में लिखी गई थी जिसके लेखक William Crookes थे, के अनुसार-

• वे अपने किसी भी धार्मिक समारोह में ब्राह्मणों को नियुक्त नहीं करते हैं. उनके दो महान त्योहार होली और दशमी (दशहरा) हैं; लेकिन वे किसी भी तरह से इन त्योहारों पर हिंदू प्रथा का पालन नहीं करते हैं. वे नागपंचमी का त्योहार मनाते हैं, लेकिन सांप की कोई विशेष पूजा नहीं करते हैं.

• वे गाय को धन की देवी लक्ष्मी के रूप में मानते हैं,और गौमांस नहीं खाते और खाने वाले को जाति से बाहर कर दिया जाता है.

• कुछ पुरुष कंठी पहनते हैं

• जब वे खाते हैं.तो धरती माता को भेंट के रूप में थोड़ी रोटी और पानी जमीन पर रख देते हैं.

• वे अपनी महिलाओं का सम्मान करते हैं, जो सूत कातने का काम करती हैं जिसे पुरुष बुनते हैं.

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