Ranjeet Bhartiya 03/11/2021
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Last Updated on 10/06/2023 by Sarvan Kumar

18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश जारी किया. सितंबर 1669 में मंदिर तोड़ दिया गया और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई गई. इसके करीब 111 साल बाद इंदौर की मराठा शासक अहिल्या बाई होलकर ने 1780 में मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया. भारत में काशी विश्वनाथ मंदिर सबसे महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों में से एक है. यह भगवान शिव को समर्पित है, जिनकी यहां सैकड़ों वर्षों से विश्वनाथ या विश्वेश्वर, “विश्व के शासक” के रूप में पूजा की जाती रही है. 2022 में 7 करोड़ से ज्यादा शिव भक्त ने भोलेनाथ का दर्शन किया. हिन्दू समाज महारानी अहिल्या बाई होल्कर का सदा ऋणी रहेगा जिन्होंने मुस्लिम शासकों के मंदिर तोड़ो अभियान को कामयाब नहीं होने दिया. महारानी अहिल्याबाई यहीं नहीं रुकी उन्होंने औरंगजेब द्वारा तोड़े हुए मंदिरों का दोबारा निर्माण करवाया. उन्होंने पूरे भारत में श्रीनगर, हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ, प्रयाग, वाराणसी, नैमिषारण्य, पुरी, रामेश्वरम, सोमनाथ, महाबलेश्वर, पुणे, इंदौर, उडुपी, गोकर्ण, काठमांडू आदि में बहुत से मंदिर बनवाए हैं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मशहूर सोमनाथ मंदिर को भव्य बनाने के लिए कई सौगातें दी हैं. इस दौरान पीएम ने मंदिर पर आक्रमण का जिक्र करते हुए कहा कि “आज मैं लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को भी प्रणाम करता हूं, जिन्होंने विश्वनाथ से लेकर सोमनाथ तक, कितने ही मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया. प्राचीनता और आधुनिकता का जो संगम उनके जीवन में था, आज देश उसे अपना आदर्श मानकर आगे बढ़ रहा है.” भले ही अहिल्याबाई एक संत की तरह पूजी जाती है पर आप उन्हें सिर्फ संत समझने की भूल ना करें वह एक बहादुर योद्धा और अचूक तीरंदाज थीं. उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का कुशलता के साथ नेतृत्व किया. आज बाबर अक़बर को तो सभी जानते हैं पर एक महान शिव भक्त, वीरांगना, समाजसेवी अहिल्या बाई होल्कर का इतिहास कई लोगों को पता नहीं होगा. साथ में उस समाज के बारे में भी लोग अंजान है जिस समाज से वो आती हैं. वो समाज जो कई शूरवीरों को जन्म दिया आज कई जगह अपनी पहचान के लिये लड़ रही है.आज हम जानेंगे महान धनगर समाज का इतिहास, धनगर शब्द की उत्पति कैसे हुई?

मल्हार राव होलकर एक धनगर!

साल 1700 के आस पास, एक बार एक बालक अपने साथियों के साथ वन में भेड़ बकरियों को चरा रहा था. पशु घास चर रहे थे, बालक खेल, खेल रहे थे। उसी समय सुदूर घोड़ों की टापों से खुदी हुई धूल मार्ग पर उड़ते हुये सब बच्चों ने देखी. देखते ही देखते घुड़सवार सैनिक बालकों के समीप आ गये. एक सरदार अपने अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित सबसे आगे था. बालक के साथी डर गये और भाग गये. निर्भीक बालक डट कर एवं अकड़ कर अपने स्थान पर ही खड़ा रहा. कुछ विचार किया और बिना विलम्ब किये एक मजबूत मिट्टी का ढेला निशाना बनाकर सेनापति के मुँह पर दे मारा. ढेले के आघात से सेनापति घोड़े की पीठ से भूमि पर चारो खाने चित्त हो गया. उसी समय शेष सैनिक भी पास आ गये और बालक को पकड़कर मारने का प्रयास करने लगे. तभी चोटिल सरदार ने उन्हें रोका और उठकर उनके समीप आकर बोला- ‘ठहरो! मैं भी यह देख लूँ कि इन गड़रियों के बालकों में ऐसा सहसी और वीर बालक कौन है ? जिसने मेरे सेनापतित्व का तिरस्कार करके मुझे ढेले से घायल करने का साहस किया. घायल सेनापति ने वीर साहसी बालक के ओजस्वी चेहरे को निहारते हुये कहा “अरे निडर आलक कौन है तू ? तूने मेरे चेहरे पर – ढेला क्यों मारा ? क्या तू मुझे पहचानता नहीं है ?

साहसी निडर बालक ने उत्तर दिया- “जी ! मैं आपको पहचान गया हूँ और तभी आगे बढ़ने से रोका है. आप एक मुगल सेना टुकड़ी के सेनापति हैं. आपकी सैनिक टुकड़ी हमारे गाँवों के खेत-खलिहान, घर-द्वार, मन्दिर और अन्य देवालयों को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिये आयी है. आप लोग अत्याचारी हो इसलिये तुम्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिये ढेला मारा है. आप रुक जाइये, पहले मुझसे संघर्ष करें, विजय पा जाओ तो आगे बढ़ना. अन्यथा वापस लौट जाओ. उस वीर बालक की स्पष्टवादिता, निडरता, चतुरता और बहादुरी को देखकर सेनापति अत्यन्त ही प्रभावित हुआ. मुगलों के प्रति बालक का आक्रोश, घृणा और द्रोह की भावना को परख कर निर्भीक साहसी बालक को अपने गले लगा लिया. सिर और पीठ पर हाथ फेरते हुये उसकी देश भक्ति की प्रशंसा की और कहा- “बेटा! मैं मुगल सैनिक नहीं हूँ. मैं मराठा साम्राज्य का पेशवा ( प्रधानमन्त्री ) बाला जी विश्वनाथ हूँ।” परिचय पाकर बालक ने उसी क्षण पेशवा को हाथ जोड़कर प्रणाम किया. उस बालक की देशभक्ति शौर्य एवं पराक्रम की पहचान करके उसी क्षण पेशवा ने आज्ञा दी कि इस बालक को तत्काल प्रभाव से मराठा सेना में एक सैनिक के रूप में शामिल किया जाए. यह वीर बालक और कोई नहीं ‘मल्हार राव होलकर’ था जिसने अपने बहादुरी से मराठा साम्राज्य को बुलन्दियों तक पहुंचाया और आगे चलकर इन्दौर का स्वतन्त्र शासक बना. अहिल्याबाई होलकर इसी वीर मल्हार राव होलकर की पुत्रवधू थी. इस. [यह जानकारी सुदामा लाल पाल द्वारा लिखी किताब लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर से ली गयी है हम उनके आभारी हैं.] मल्हार राव होलकर धनगर समाज से आते हैं. आप इस प्रसंग से धनगरों की बुद्धि, साहस और वीरता का अंदाजा लगा सकते हैं.

कौन हैं धनगर?

धनगर (Dhangar) भारत में निवास करने वाली एक प्राचीन जाति है. मूल रूप से यह चरवाहों और कंबल बुनकरों की जाति है. इनका पारंपरिक व्यवसाय गाय, भैंस, भेड़, बकरियों को पालना तथा भेड़ के ऊन से कंबल बनाकर बेचना रहा है. यह बकरियों के दूध भी बेचते हैं. साथ ही यह अपने भेड़-बकरियों को मांस के लिए भी बेचते हैं. वर्तमान में यह बुनकर और खेती का काम करते हैं. यह शिक्षा और रोजगार के अवसरों का लाभ उठाकर आधुनिक नौकरी-पेशा और रोजगार में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. सामाजिक और राजनीतिक रूप से यह समुदाय अव्यवस्थित रहा है. इसका मुख्य कारण यह है कि अपने व्यवसाय के कारण यह समुदाय समाज से अलग जंगलों और पहाड़ियों आदि में भटकते रहे हैं.

धनगर समाज की उप-जातियां

इन्हें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है.
उत्तर प्रदेश: गड़रिया, पाल, बघेल
बिहार – झारखंड: गड़रिया, पाल, भेड़िहार, गड़ेरी
हरयाणा – गड़रिया, पाल, बघेल
महाराष्ट्र – धनगर, हटकर, खुटेकर

धनगर कैटेगरी में आते हैं?

भारत सरकार की सकारात्मक भेदभाव की प्रणाली (आरक्षण) के तहत इन्हें गोवा, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. महाराष्ट्र में इन्हें घुमंतू जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जो अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में आता है.

धनगर कहां पाए जाते हैं?

यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, दक्षिणी राजस्थान में निवास करते हैं.महाराष्ट्र में इनकी आबादी लगभग 9% है.

धनगर किस धर्म को मानते हैंं?

यह हिंदू धर्म को मानते हैं. महादेव में इनकी विशेष आस्था है. यह अन्य हिंदू देवी देवताओं जैसे-भगवान विष्णु, माता पार्वती, महालक्ष्मी आदि की पूजा करते हैं. यह दिवाली के अवसर पर चींटी-पहाड़ी की पूजा भी करते हैं. दिवाली के अवसर पर यह अपने बकरियों के सिंगो को रंग कर, पैर छूकर पूजा करते हैं.

धनगर शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

“धनगर” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “धनु” से हुई है, जिसका अर्थ है- “गाय”. एक अन्य मान्यता के अनुसार धनगर शब्द “धन” से से लिया गया है. गाय, भैंस, भेड़, बकरियों के झुंड को “पशुधन” कहा जाता है. धनगर शब्द “पशुधन” से संबंधित भी हो सकता है. गड़रिया शब्द एक पुराने हिंदी शब्द  “गाडर” लिया गया है, जिसका अर्थ होता है-“भेड़”.

धनगर समाज का इतिहास

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इनके पूर्वजों का निर्माण भगवान शिव ने किया था. कहा जाता है कि पहले भेड़-बकरियां एक चींटी-पहाड़ी से निकली. यह खेतों में फैल गए और फसल का नुकसान करने लगे. असहाय होकर किसानों ने भगवान शिव से उन्हें इनसे बचाने की प्रार्थना की. इसके बाद भगवान शिव ने भेड़-बकरियों को पालने के लिए धनगर को उत्पन्न किया. यही कारण है कि धनगर आज भी चींटी पहाड़ी का सम्मान करते हैं तथा उन्हें अपने खेतों से नहीं हटाते हैं. भेड़ बकरियों को हांकने के लिए यह हर-हर शब्द का प्रयोग करते हैं. हर-हर महादेव का एक नाम है, जिसे भक्त पूजा करने के समय उपयोग करते हैं.

Refrences: 


(i)”Tribes and Castes of Bengal” by Sir Herbert Risley.

(ii)”Castes and Tribes of North Western Provinces and Oudh” by Mr. W. Crooke.

(iii)”Castes and Tribes of Southern India” by Mr. Edgar Thurston.

(iv)Tribes and Castes of Central Provinces of India by Mr. R.V. Russell

(iv) लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर – सुदामा लाल पाल

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