Ranjeet Bhartiya 02/01/2023

Last Updated on 02/01/2023 by Sarvan Kumar

भारतीय समाज में विवाह को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. भारत में शादियों को उत्सव के रूप में देखा जाता है. ज्यादातर मामलों में शादियों को दूल्हा और दुल्हन के समुदाय, क्षेत्र और धर्म के साथ-साथ उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर व्यापक सजावट, रंग, पोशाक, संगीत, नृत्य, वेशभूषा और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है. इसी क्रम में आइए जानते हैं सैनी समाज शादी के बारे में.

सैनी समाज शादी

आज भी भारत में ज्यादातर शादियां माता-पिता द्वारा तय की जाती हैं जिसे अरेंज्ड मैरिज कहा जाता है.प्रतिष्ठित समाचार पत्र बीबीसी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में 160,000 से अधिक घरों के सर्वेक्षण में, 93% विवाहित भारतीयों ने कहा कि उनका विवाह अरेंज मैरिज था. सिर्फ 3% ने “लव मैरिज” की थी और अन्य 2% ने अपने विवाह को “लव-कम-अरेंज्ड मैरिज” बताया. सैनी समाज में विवाह को निम्न बिन्दुओं से विस्तार से समझा जा सकता है-

•भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India) के अनुसार, “सैनी अंतर्विवाही समुदाय हैं और गांव और गोत्र स्तर पर बहिर्विवाह का पालन करते हैं.

•कम्युनिटी एंडोगैमी का कड़ाई से पालन किया जाता है. विवाह संबंधों में गोत्र का विशेष ध्यान रखा जाता है. कन्या को वधु के रूप में चुनते समय माता के भाई, पिता के माता के भाई के गोत्र से भी बचा जाता है.पहले मामा के भाई, भाई के गोत्र की लड़कियों को भी नहीं चुना जाता था, लेकिन अब इस समुदाय के लोग इसे लेकर उतने कठोर नहीं हैं.

•शादी के लिए लड़के और लड़की की उम्र का भी ख्याल रखा जाता है. आमतौर पर उस रिश्ते को प्राथमिकता दी जाती है जिसमें लड़का लड़की से बड़ा होता है.

•सैनी समाज में ज्यादातर शादियां अरेंज मैरिज होती हैं. शादियां आम तौर पर लड़की के पक्ष द्वारा एक आम रिश्तेदार या सहयोगी के माध्यम से शुरू की गई बातचीत के द्वारा से तय की जाती हैं.

•लड़की का पक्ष एक बिछोला (मध्यस्थ) के माध्यम से बातचीत शुरू करता है जो आमतौर पर एक रिश्तेदार होता है. रोकना शादी की पहली रस्म है जो दुल्हन के घर पर की जाती है. इसके बाद तिलक किया जाता है. चातुर्मास के दौरान आमतौर पर विवाह नहीं किया जाता है. फेरा सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच होता है.

•सैनी समाज में, अन्य हिंदू जातियों की तरह, लाख की चूड़ियां, बिछुआ, सिंदूर विवाहित महिलाओं के प्रतीक माना जाता है.

•दहेज का भुगतान नकद और घरेलू सामानों के रूप में किया जाता है. विवाह के बाद निवास पितृस्थानीय होता है.

•इस समुदाय में आमतौर पर एक ही बार विवाह करने की प्रथा (Monogamy) है.

•जीवनसाथी की मृत्यु बाद और तलाक के बाद पुनर्विवाह की अनुमति है. अगर पहली पत्नी किसी असाध्य रोग से पीड़ित है या मानसिक रूप से बीमार है तो इस विशेष स्थिति में दूसरा विवाह किया जा सकता है.


References:

•People of India, National Series Volume VI, India’s Communities N-Z, p 3090, KS Singh, Anthropological Survey of India, Oxford University Press, 1998

•Rajasthan Part 2, 1998

•https://www.bbc.com/news/world-asia-india-59530706

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