
Last Updated on 13/12/2021 by Sarvan Kumar
थोरी (Thori or Thory) भारत में पाई जाने वाली एक जाति है. इन्हें चौधरी के नाम से भी जाना जाता है. जीवन यापन के लिए यह मुख्य रूप से कृषि और टोकरीयो के निर्माण कार्य पर निर्भर हैं. खेती-बाड़ी के अलावा यह औद्योगिक क्षेत्रों में भी काम करते हैं. शिक्षा और रोजगार के अवसरों का लाभ उठाकर अब यह विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा रहे हैं. आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें राजस्थान और गुजरात में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) कैटेगरी में रखा गया है. यह मुख्य रूप से भारत के गुजरात, राजस्थान और हरियाणा राज्यों में निवास करते हैं. राजस्थान में यह मुख्य रूप से गंगानगर और चूरु जिले में पाए जाते हैं. गुजरात में उत्तरी गुजरात से मध्य गुजरात तक इनकी उपस्थिति है. यहां यह मुख्य रूप से अहमदाबाद, सुरेंद्रनगर, साबरकांठा, पंचमहल और बड़ौदा जिलों में निवास करते हैं. यह हिंदू धर्म का पालन करते हैं. हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और हिंदू त्योहारों को बड़े धूमधाम से मनाते हैं. पाबूजी इनके मुख्य देवता हैं. यह हिंदी और मारवाड़ी भाषा बोलते हैं.आइये जानते हैैं थोरी समाज का इतिहास, थोरी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई।
थोरी समाज का उप-विभाजन
राजस्थान में थोरी समाज 16 कुलों में विभाजित है, जिनमें प्रमुख हैं-पंवार, सोलंकी, चौहान, तोमर, रंगघर, दगला, चंदेला, ढोल, सोडाथ, खिंची, रण, गोर और गहलोत. गुजरात में इन्हें उत्लोईवाला, बटवाला और झोरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां यह दो अंतर्विवाही उप समूहों में विभाजित हैं-मकवाना और बरसिया. अन्य समुदायों के तरह, गुजरात में निवास करने वाले थोरी समाज में भी कई कुल हैं, जिसे अटक कहा जाता है. इनके प्रमुख अटक हैं-परमार, मकोवारा, गटार, खरकरिया, भोपिंग, नरोदिया और मंगरची.
थोरी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई?
थोरी सूर्यवंशी राजपूतों के वंशज होने का दावा करते हैं. इस जाति के लोगों का दावा है कि इनके पूर्वज काफी प्रभावशाली थे और उन्होंने राजपूताना के विभिन्न राजपूत राजाओं की सेना में सेना नायकों (कमांडोरो) की भूमिका निभाई थी. जैसे-जैसे इनकी शक्ति बढ़ती गई और यह मजबूत होते गए, राजाओं के द्वारा उन्हें बदनाम करने की साजिश की गई. इसके कारण, कालांतर में यह समुदाय व्यापक राजपूत समुदाय से अलग हो गया.

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