Ranjeet Bhartiya 14/12/2021
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Last Updated on 14/12/2021 by Sarvan Kumar

सोर (Sora) भारत में पाई जाने वाली एक जनजाति है. इन्हें सौरा (Saura), सावरा (Savara), सवरा या सबरा (Sabara) भी कहा जाता है. मूल रूप से यह एक मुंडा जातीय समूह है. यह आमतौर पर पहाड़ियों और जंगलों में निवास करते हैं. जीवन यापन के लिए यह मुख्य रूप से स्थानांतरण खेती और शिकार पर निर्भर है. हालांकि, यह अब धीरे-धीरे बसे हुए कृषि को भी अपनाने लगे हैं. श्रीकाकुलम जिले में निवास करने वाले सोरा जनजाति के लोग ऊंची पहाड़ियों पर रहते हैं. जहां बहुत कम जमीन उपलब्ध है और आमतौर पर जमीन को जोता भी नहीं जा सकता. इसीलिए यह पोडु खेती प्रणाली से खेती करते हैं. यह जंगल और झाड़ियों को जला देते हैं और उस पर खेती करते हैं. भारत सरकार के सकारात्मक भेदभाव की व्यवस्था आरक्षण के अंतर्गत इन्हें उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Caste, ST) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. इस समाज की एक प्रमुख महिला हैं पदला भूदेवी जो नारी शक्ति सम्मान से पुरस्कृत महिला उद्यमी और आदिवासी कार्यकर्ता हैं.आइए जानते हैं, सोर समाज का इतिहास, सोर शब्द की उत्पति कैसे हुई?

सोर कहां पाए जाते हैं?

यह मूल रूप से पूर्वी भारत में दक्षिणी उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के उत्तरी तटीय क्षेत्र में निवास करते हैं. यह झारखंड की पहाड़ियों, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में भी पाए जाते हैं. यह उड़ीसा में मुख्य रूप से गजपति, रायगड़ा और बरगड़ जिलों में पाए जाते हैं. आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विजयनगरम और विशाखापत्तनम जिलों में भी इनकी आबादी है.

सोर किस धर्म को मानते हैं?

यह अपने आदिवासी धर्म (जिसे हिंदू धर्म के अंतर्गत हैं वर्गीकृत किया गया है) और ईसाई धर्म को मानते हैं. स्वभाव से यह बहुत ही धार्मिक होते हैं. इनकी धार्मिक आस्था बहुत विस्तृत और गहरी है. यह बड़ी संख्या में देवी-देवताओं और पैतृक आत्माओं में विश्वास करते हैं यह सभी प्राकृतिक घटनाओं को देवी देवताओं और आत्माओं से जोड़ते हैं. यह आत्माओं को अपना मार्गदर्शक मांगते हैं. यह मुख्य रूप से अपने स्थानीय  संधिमुडु और जकारदेवता की पूजा करते हैं. यह भगवान नरसिंह और जगन्नाथ की भी पूजा करते हैं.

सोर समाज संस्कृति और जीवन शैली

आमतौर पर यह छोटे या मध्यम कद के होते हैं. यह गांवों में मिट्टी की दीवारों और घास से बने छतों वाले घरों में रहते हैं, जो आमतौर पर पहाड़ियों की तलहटी में स्थित होते हैं. यह आमतौर पर एकल परिवारों में रहते हैं.अभी भी इनमें संयुक्त या विस्तृत परिवारों का चलन मौजूद है. कबीला संगठन के बजाय इनमें विस्तृत परिवार का चलन है, जिसे बिरिंडा कहा जाता है. एक बिरिंडा में चार से पांच पीढ़ियों के एक समान पूर्वजों के वंशज होते हैं. इनमें बहु विवाह का चलन है. इस जनजाति में शादियां दुल्हन को पकड़ने, भगाने और बातचीत के जरिए की जाती है. इनकी घरेलू अर्थव्यवस्था महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमती हैं. महिलाएं मेहनती होती हैं, जो घर के कामों के साथ-साथ कृषि कार्यों जैसे- फसल की जुताई और कटाई में पुरुषों की मदद करती हैं. यह सोरा भाषा बोलते हैं, जो कि एक मुंडा भाषा है.

 

 

 

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