Last Updated on 20/10/2022 by Sarvan Kumar
भारत विविधताओं से भरा देश है. 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में अलग-अलग समुदायों के लोग रहते हैं, जो अलग-अलग धर्मों को मानते हैं. इनमें से कुछ समुदाय अधिक प्रभावशाली हैं जबकि कुछ स्वयं को प्रभावशाली बनाने का प्रयास कर रहे हैं. दलित समुदाय भारत में रहने वाला एक महत्वपूर्ण समुदाय है, जिसमें कई जातियां शामिल हैं. ऐसी ही एक जाति है चमार जो दलित समुदाय के अंतर्गत आती है. आर्थिक असमानता भारत में गरीबी का एक महत्वपूर्ण कारण है. गरीबी भारत में दलित समुदायों की सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं में से एक है. एक अध्ययन के मुताबिक, उच्च जाति के हिंदुओं के पास देश की कुल संपत्ति का 41 प्रतिशत है, वहीं ‘हिंदू ओबीसी’ के पास 30 प्रतिशत, मुस्लिमों के पास 8 प्रतिशत, हिंदू एससी के पास 7.6 प्रतिशत और हिंदू एसटी के पास 3.7 प्रतिशत संपत्ति है. भारत में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 17% है. इससे स्पष्ट है कि संपत्ति के स्वामित्व के मामले में चमार समुदाय अन्य समुदायों की तुलना में कम संपत्ति के मालिक हैं. आइए जानते हैं चमारों की स्थिति यानी कि चमारों की औकात के बारे में.
चमारों की औकात क्या है?
भारत में जात और औकात की बात बार-बार की जाती है. जाति के आधार पर किसी व्यक्ति की हैसियत के बारे में अनुमान लगाने की प्रवृत्ति आज भी देखी जाती है. इससे यह पता चलता है कि भारत में भले ही जातिगत भेदभाव की घटनाएं लगातार कम हो रही हैं, लेकिन जातिवाद का कलंक पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है. चमारों की औकात के बारे में जानने से पहले हमें इस समुदाय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना होगा. साथ ही हमें उन बिंदुओं को भी समझना होगा जो किसी जाति की सामाजिक स्थिति या सामाजिक हैसियत को निर्धारित करते हैं. ऐतिहासिक रूप से, चमार भारत में व्यापक रूप से वितरित एक दलित जाति है, जिसका पारंपरिक व्यवसाय मृत जानवरों की खाल निकालना, चर्म शोधन (tannery) करना और उससे विभिन्न प्रकार के वस्तुओं का निर्माण करना रहा है. इस पेशे को अशुद्ध माना जाता था और इसलिए चमारों को पहले “अछूत” कहा जाता था और उन्हें विभिन्न प्रकार के सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता था. ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता के अधीन, वे परंपरागत रूप से वर्ण के रूप में जानी जाने वाली जातियों की हिंदू अनुष्ठान रैंकिंग प्रणाली से बाहर थे. एक दिलचस्प पहलू यह है कि चमड़े से संबंधित व्यवसाय में लगे चमारों का अनुपात दशकों से घट रहा है – 1931 में जो चार प्रतिशत था वह 1961 में घटकर 0.6 प्रतिशत हो गया. फिर भी, चमार के चमड़े का काम करने वाला व्यावसायिक रूढ़िवाद कायम है. भले ही वे अब अपने पारंपरिक व्यवसाय का पालन नहीं करते हैं, चमार हिंदू समाज के सबसे निचले पायदान पर हैं. इससे इनके आत्मसम्मान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इन सब अवधारणाओं के विपरीत, लेखक डॉ विजय सोनकर शास्त्री ने अपनी किताब “हिंदू चर्मकार जाति- एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास” में उल्लेख किया है कि चमार चंवरवंश के वीर क्षत्रिए थे. अब बात करते हैं उन कारकों के बारे में जो किसी जाति की सामाजिक स्थिति को निर्धारित करते हैं. एक जाति की सामाजिक स्थिति मुख्य रूप से धन, संपत्ति, आय, शिक्षा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, प्रतिष्ठा और शक्ति जैसे कारकों पर निर्धारित होती है. ऊपर बताए गए कारकों और बिंदुओं के आलोक में आइए चमार की स्थिति को विस्तार से समझते हैं
चमार अपनी पहचान छुपा लेते हैं.
•चमार समुदाय के लोगों को आज भी जातिवाद का दंश झेलना पड़ता है. इनमें से कई भेदभाव से बचने के लिए अपनी पहचान भी छुपा लेते हैं. यह केवल अस्थायी राहत दे सकता है लेकिन इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं देता है. समाज के लोगों को इस सामाजिक बुराई का एक स्वर में विरोध करना चाहिए, ताकि उनकी आने वाली पीढ़ियों को इस समस्या का सामना न करना पड़े और इससे उनके आत्मसम्मान में भी वृद्धि होगी.
शिक्षा और सरकारी सेवा के क्षेत्र में काफी तरक्की
•बीसवीं सदी की शुरुआत में दलितों की हालत, सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक तौर पर एक जैसी ही थी. आजादी के बाद भारत के संविधान में दलित हितों के संरक्षण के लिए कई प्रकार की व्यवस्थाएं की गईं, जैसे कि शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में दलितों के लिए आरक्षण, आदि. चमार समुदाय के लोगों ने पिछले 7 दशकों में शिक्षा और सरकारी सेवा के क्षेत्र में काफी तरक्की की है. आज अमरीका और दूसरे देशों में दलित अप्रवासियों की अच्छी-ख़ासी आबादी रहती है, जिसमें चमार जाति के लोग भी शामिल हैं.
व्यवसाय और उद्यमिता में तरक्की
•आज कई दलितों ने कारोबार में भी सिक्का जमाया है और यहां तक कि उनके अपने दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री भी है. अब चमार जाति के लोग व्यवसाय और उद्यमिता के क्षेत्र में लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं.
चमारों के पास सत्ता की चाबी
•भारत के कई राज्यों में चमारों की उल्लेखनीय आबादी है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत संख्या ही शक्ति का आधार है. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती भी चमार समुदाय से आती हैं. बहुजन समाज पार्टी में चमार जाति के लोगों का दबदबा है. भारत के कई राज्यों में चमार समुदाय की जनसंख्या 5% से ज्यादा है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में चमार समुदाय राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली हैं. इन राज्यों में चमारों के पास सत्ता की चाबी है, और यहां यह सरकार गिराने और सरकार बनाने की हैसियत रखते हैं.
निष्कर्ष: चमारों की औकात क्या है?
चमार जाति इतिहास, संस्कृति, बुद्धिमता, कर्मठता और प्रतिभा के मामले में अन्य जातियों की तुलना में किसी प्रकार से कम नहीं है. समय की मांग है कि चमार समुदाय के लोग शिक्षा और रोजगार के नए अवसरों और संवैधानिक व्यवस्थाओं का लाभ उठाकर अपने समाज को हर तरह से मजबूत करने का प्रयास करें. अपने हितों और अधिकारों के प्रति जागरूक होकर सामाजिक एकता कायम करें तथा सत्ता तक पहुंचने की कोशिश करें.
References;
•चमार जाति इतिहास और संस्कृति- Chamar Caste History and Culture
AUTHOR: S.S. GAUTAM AND R.M.S VIJAYI
•हिंदू चर्मकार जाति
एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास
By विजय सोनकर शास्त्री · 2014
•http://thewirehindi.com/71901/upper-caste-hindus-holds-41-percent-of-country-s-total-asset-says-study/
•https://www.bbc.com/hindi/india-44227515.amp