Last Updated on 02/03/2023 by Sarvan Kumar
सामाजिक व्यवस्थाएँ समाज को स्थिरता प्रदान करती हैं. वर्ण व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था का एक रूप है जिसके तहत समाज को गुणों और कर्मों के आधार पर 4 समूहों में विभाजित किया गया है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. समय के साथ चार वर्णों में विभाजित हिन्दू समाज विभिन्न कारकों के कारण 6000 से अधिक जातियों और हजारों उप-जातियों में विभाजित हो गया. जातियों के इस प्रादुर्भाव के क्रम में आइए जानते हैं कि कायस्थ जाति कहाँ से आई?
कायस्थ जाति कहाँ से आई?
• हिंदू धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की उत्पत्ति सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा के मुंह, भुजाओं, उदर और पैरों से हुई है. इन सबसे अलग कायस्थ की उत्पत्ति ब्रह्मा के शरीर के किसी विशेष अंग से नहीं, बल्कि पूरे शरीर से मानी जाती है. मान्यता है कि धर्मराज यमराज को पाप-पुण्य का हिसाब-किताब रखने के लिए एक सहायक की आवश्यकता हुई, जो धार्मिक और ज्ञानी होने के साथ-साथ लेखन कला में भी निपुण हो. इसके लिए उन्होंने ब्रह्मा जी से एक योग्य सहायक देने का अनुरोध किया. इसके बाद ध्यानमग्न ब्रह्मा के शरीर से चित्रगुप्त महाराज उत्पन्न हुए. ब्रह्मा की काया में स्थित होने के कारण वह कायस्थ कहलाए. इस तरह लेखन कला में विशेषज्ञता रखने वाला यह समुदाय अस्तित्व में आया.
• वर्ण व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण की एक पद्धति है जिसके द्वारा व्यक्तियों के समूहों को उनकी क्षमताओं और प्रवृत्ति के अनुसार विभिन्न श्रेणियों में उच्च से निम्न तक स्तरीकृत किया जाता है. उत्तर वैदिक काल के आते-आते वर्ण व्यवस्था जाति आधारित हो गई और उसमें अनेक बुराइयाँ आ गईं. गौतम बुद्ध, भगवान महावीर जैसे विचारकों ने वैदिक वर्ण व्यवस्था को चुनौती दी और नई सामाजिक व्यवस्था की बात करने लगे. इसके फलस्वरूप वर्ण व्यवस्था से हटकर मात्र कार्य, कौशल, भाषा, सहनशीलता और प्रगतिशीलता के आधार पर लेखकीय कार्य के लिए एक नई जाति ‘कायस्थ’ अस्तित्व में आई.
•मनुस्मृति जैसे ग्रन्थों में ‘कायस्थ’ नामक जाति का उल्लेख नहीं है. परन्तु ‘करण’ नाम की एक जाति का उल्लेख मिलता है जो लेखन कार्य करती थी. अनेक विद्वानों का मत है कि कायस्थ जाति की उत्पत्ति इसी करण जाति से हुई है.
• एक अन्य मत के अनुसार, माना जाता है कि पूर्वी भारत में, बंगाली कायस्थ अधिकारियों के एक वर्ग से 5वीं-6वीं शताब्दी और 11वीं-12वीं शताब्दी के बीच एक जाति में विकसित हुए हैं, इसके घटक तत्व कथित क्षत्रिय और ज्यादातर ब्राह्मण हैं. सबसे अधिक संभावना है कि उन्होंने सेन वंश के तहत एक जाति की विशेषताओं को प्राप्त किया.
Refrennces:
•Hindi Ke Janjatimoolak Upanyaso Kee Samajshastriya Chetana Aur Uska Opanayasik Partiphalan
By Aśoka Kumāra Varmā, Saroja Agravāla · 2004
•Survey of the panji of the Karan Kayasthas of Mithila
By Vinoda Bihārī Varmā · 1973
• कायस्थ वंशप्रकाश
By स्वर्गीय श्री बाबूलालजी कुलश्रेष्ठ (सेवानिवृत्त अमीन), श्रीमती सरोज कुलश्रेष्ठ · 2021
• उपेक्षित समुदायों का आत्म इतिहास 2006
•https://www.jagran.com/lite/jharkhand/ranchi-kayastha-a-by-product-of-social-economic-struggle-in-sanatan-society-18618072.html