Last Updated on 04/03/2023 by Sarvan Kumar
आज एक महान लेखक का जन्मदिन है, जिनका नाम है. फणीश्वर नाथ ‘ रेणु (Phaniswar Nath ‘Renu). बिहार की धरती कलाकारों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, कवियों का रहा है. इसी धरती पर 4 मार्च 1921 को एक महान विभूति ने जन्म लिया. एक अच्छे लेखक के साथ वो समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी भी थे. 11 अप्रैल, 1977 को पटना में अंतिम सांस ली. उनकी जाति क्या है इसके पीछे कई दिलचस्प किस्से हैं, कई किंवदंतियाँ हैं, सच क्या है? आइए जानते हैं, फणीश्वर नाथ रेणु किस विधा के लेखक हैं, उनकी जाति क्या है? और उनकी संक्षिप्त जीवनी.
फणीश्वर नाथ रेणु किस जाति के थे?
‘भारत यायावर’ हिन्दी के जाने माने साहित्यकार थे. उनका जन्म आधुनिक झारखंड के हजारीबाग जिले में हुआ था. वरिष्ठ कवि और आलोचक भारत यायावर का oct. 2021 में निधन हो गया. हिंदी के दिग्गज लेखक ‘फणीश्वर नाथ रेणु’ पर भारत यायावर का शोध चर्चा में रहा है. 4 अगस्त 2020 को उन्होंने एक facebook पोस्ट लिखा. इस पोस्ट में जो उन्होंने लिखा वह चौंकाने वाला है. इस पोस्ट के अनुसार फणीश्वर नाथ को ऊंची जातियों द्वारा एक साजिश के तहत उन्हें ब्राह्मण साबित करने की कोशिश की गई थी. अपने facebook पोस्ट ‘जाति ही पूछो रेणु की’ में लिखा. रेणु जब तक जीवित रहे, किसी ने उनकी जाति नहीं पूछी। मगर उनकी मृत्यु के बाद उन्हें जन्म से ब्राह्मण बनाने की एक मुहिम-सी चली. बिहार में एक सुबल गांगुली थे, उन्होंने आनंदबाजार पत्रिका’ में लेख लिखे कि रेणु बंगाली ब्राह्मण थे. इसमें वह फणीश्वर नाथ के पत्नी लतिका जी को भी शामिल कर लिया था. रेणु के बाएँ हाथ में उनके नाम की गोदाई हुई थी – F. N. M. उस समय उन्हें यह ज्ञान नहीं था कि एफ की जगह पी लिखना चाहिए, इस गुदने को आधार बनाकर सुबल गांगुली ने एम को मुखर्जी बना दिया, मतलब यह कि सुबल गांगुली ने रेणु को बंगाली ब्राह्मण के रूप में अपनाया. लेकिन पूर्णिया जिले के राय रामनारायण नामक विद्वान ने सुबल गांगुली की इस स्थापना को खण्डित कर दिया कि वे मुखर्जी नहीं मंडल थे, तब लतिका जी का झूठ भी पकड़ में आया और उन्होंने कहा कि रेणु ने जाति छुपाकर उनसे शादी की. दूसरी तरफ मैथिल ब्राह्मण समाज के एक बड़ा समूह रेणु को मैथिली ब्राह्मण बनाने की मुहिम में जी –जान से जुटा था. कुछ लोगों ने उन्हें कायस्थ तक बना दिया। ‘आजकल’ के जुलाई, 1977 अंक में नागार्जुन ने उन्हें कूर्मवंशीय क्षत्रिय लिखा. यह भी कहा गया फणीश्वरनाथ रेणु त्रिवेणी संघ से जुड़े थे. त्रिवेणी संघ तीन जातियों का एक संघ है, जिसमें कोयरी, कुर्मी और यादव जाति के लोग हैं.
धानुक जाति से थे फणीश्वर नाथ रेणु
कुर्मी जाति के समानांतर सूर्यवंशी क्षत्रिय में धानुक जाति का विकास हुआ. सूर्यवंशियों में धानुक लोग राम को अपना आदर्श मानकर तीर-धनुष से सज्जित होकर रहते थे.धानुक एक जाति नहीं, जाति-समूह है जो भारत के लगभग सभी हिस्सों में पाई जाती है, रेणु जी के पूर्वज मंडल उपनाम लिखते थे. फणीश्वर नाथ रेणु इसी धानुक जाति के थे.फणीश्वर नाथ रेणु के परिवार में मंडल की उपाधि का इस्तेमाल होता था जैसे पिता का नाम शीला नाथ मंडल था.
फणीश्वर नाथ रेणु किस विधा के लेखक हैं?
राजकमल पेपरबैक्स से प्रकाशित ‘फणीश्वरनाथ रेणु प्रतिनिधि कहानियाँ’ के अनुसार रेणु को अंचल का कथाकार कहा गया है. अंचल यानी सीमित परिवेश वह रचनाकार को बाँध सकता था. उनकी लेखन-शैली वर्णणात्मक थी. पात्रों का चरित्र-निर्माण काफी तेजी से होता था. उनका लेखन प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परंपरा को आगे बढाता है. लेकिन रेणु की गहन संवेदना तथा विराट दृष्टि ने उस अंचल को समूचे देश की सीमाओं तक विस्तृत कर दिया है.कथा-साहित्य के अलावा रेणु ने संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज आदि विधाओं में भी लिखा. उनकी चर्चित रचनाओं में – ‘मैला आंचल’, ‘परती परिकथा’, ‘जूलूस’, ‘दीर्घतपा’, ‘कितने चौराहे’, ‘पलटू बाबू रोड’; कथा-संग्रह- ‘एक आदिम रात्रि की महक’, ‘ठुमरी’, ‘अग्निखोर’, ‘अच्छे आदमी’, रिपोर्ताज- ‘ऋणजल-धनजल’, ‘नेपाली क्रांतिकथा’, ‘वनतुलसी की गंध’, ‘श्रुत अश्रुत पूर्व’ आदि शामिल हैं. ‘समय की शिला पर’, ‘आत्म परिचय’ उनके संस्मरण हैं.
फणीश्वर नाथ रेणु की संक्षिप्त जीवनी
उन्होंने तीन बार शादी की, पहली पत्नी रेखा, दूसरी पद्मा और तीसरी लतिका थी, वह अपनी तीसरी पत्नी लतिका से मिले, जबकि वह पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती थे, उन्होंने 1951 में शादी की, वह मैला आंचल, परती परीकथा और मारे गए गुलफाम के पीछे प्रेरणा रही हैं. लतिका के अनुसार फणीश्वरनाथ रेणु ने उन्हें को नहीं बताया था कि गांव में उनकी एक और पत्नी भी है. शादी के काफी समय बाद उन्हे रेणु की पहली शादी का पता चला और उनकी रेणु से इस मुद्दे पर खासी तकरार भी हुई।
● इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी , जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
● फणीश्वर नाथ ‘ रेणु ‘ का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था. उस समय यह पूर्णिया जिले में था.
● वह धानुक जाति और मंडल उपजाति से थे पर सरनेम का प्रयोग नहीं करते थे. हालांकि वे अपने बाएं बाजू पर ‘मंडल’ टैटू गुदा रखा था.
● 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई.
● इनका लेखन प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परंपरा को आगे बढाता है और इन्हें आजादी के बाद का प्रेमचंद की संज्ञा भी दी जाती है.
● फणीश्वर नाथ के द्वारा “मारे गए गुलाम” नाम की एक कहानी लिखी गई थी. तीसरी कसम नाम से राजकपूर और वहीदा रहमान की मुख्य भूमिका में प्रसिद्ध फिल्म बनी जिसे बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित किया और सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र इसके निर्माता थे. यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है
● इन्होने जमीदारी प्रथा, साहूकारों का शोषण, अंग्रेजों के जुल्म व अत्याचारों को देखा ही नहीं, सहा भी था.
● 1942 में आंदोलन के दरमियान इन्हें अंग्रेजी सेना के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था और इन्हें तकरीबन 2 सालों के लिए जेल में रखा गया.