Ranjeet Bhartiya 30/08/2023
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Last Updated on 30/08/2023 by Sarvan Kumar

हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है। शिव पुराण में ज्योतिर्लिंगों की संख्या 64 बताई गई है। लेकिन इनमें से 12 ज्योतिर्लिंगों का महत्व सबसे अधिक है। ऐसा कहा जाता है कि जब तक महादेव के इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन नहीं किए जाते तब तक किसी का आध्यात्मिक जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं 12 स्थानों पर प्रकट हुए थे, तभी उन स्थानों पर इन ज्योतिर्लिंगों का जन्म हुआ। इन सभी ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति की अपनी-अपनी कहानी है और अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। इसी क्रम में हम यहां जानेंगे कि सबसे बड़ा ज्योतिर्लिंग कौन सा है।

भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग महत्व है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से पहला है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग न केवल भारत के सबसे प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है बल्कि इसे सबसे बड़ा ज्योतिर्लिंग भी माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास पाटन, वेरावल में समुद्र तट पर स्थित है। यह अहमदाबाद से लगभग 400 किमी दक्षिण-पूर्व और जूनागढ़ से लगभग 82 किमी दक्षिण में स्थित है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के उत्पत्ति के संदर्भ में एक रोचक कहानी प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि राजा दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ किया था। लेकिन राजा दक्ष की 27 पुत्री में से केवल रोहिणी को चंद्रमा सबसे ज्यादा प्यार और सम्मान करते थे। इसके कारण राजा दक्ष की अन्य पुत्रियां हमेशा उदास और दुखी रहती थीं।

जब यह बात राजा दक्ष को पता चली तो उन्होंने चंद्रमा को समझाने का प्रयास किया। लेकिन कई बार समझाने के बाद भी चंद्रमा के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। एक दिन राजा दक्ष का धैर्य टूट गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया कि वह अपनी सारी चमक खो देंगे। श्राप के प्रभाव से चंद्रमा की रोशनी चली गई और पूरा संसार अंधकार में डूब गया। ‌ स्थिति बिगड़ती देख देवताओं ने राजा दक्ष से चंद्रमा को क्षमा करने का अनुरोध किया। लेकिन कई प्रयासों के बाद राजा दक्ष ने कहा कि यदि चंद्रमा भगवान शिव की कठोर तपस्या करेंगे, तभी वे इस श्राप से मुक्ति पा सकेंगे और उनकी खोई हुई रोशनी उन्हें वापस मिल जायेगी।

तब चंद्रमा ने देवताओं और ऋषियों के संरक्षण में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी खोई हुई रोशनी लौटा दी। भगवान शिव के श्राप और आशीर्वाद से मुक्ति पाकर चंद्रदेव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने भक्तिपूर्वक शंकर की स्तुति की। उनकी गहरी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव साकार लिंग के रूप में प्रकट हुए। यही शिवलिंग आगे चलकर सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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