
Last Updated on 16/06/2023 by Sarvan Kumar
कुलदेवी की पूजा अपने धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण भारतीय समाज में व्यापक रूप से प्रचलित है. कुलदेवी का अर्थ है “कुल की देवी” या “परिवार की देवी”. ऐसी मान्यता है कि कुलदेवी परिवार के लिए एक माँ की तरह है जो परिवार की सुरक्षा, संरक्षण और तरक्की में मदद करती है. भारतीय हिंदू समाज में अलग-अलग समुदायों की अलग-अलग कुलदेवियां होती हैं, जो उस समुदाय के इतिहास, परंपरा और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी होती हैं. आइए इसी क्रम में जानते हैं कि ब्राह्मणों की कुलदेवी कौन-सी है.
ब्राह्मणों की कुलदेवी कौन-सी है?
कुलदेवी की अवधारणा भारत के विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों में अलग-अलग है. ब्राह्मणों को परंपरागत रूप से पुरोहित वर्ग माना जाता है और माना जाता है कि वे हिंदू समाज की सामाजिक व्यवस्था में सर्वोच्च वर्ण से संबंध रखते हैं. भारत में ब्राह्मण समुदाय विभिन्न पहलुओं जैसे क्षेत्रीय विविधताओं, उपजातियों, मान्यताओं और धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं में विविधता के लिए जाना जाता है. चूंकि ब्राह्मण एक विविध समुदाय है, इसलिए हमें ब्राह्मण समुदाय में कुलदेवी के मामले में भी काफी विविधता देखने को मिलती है.
ब्राह्मणों द्वारा पूजा की जाने वाली कुलदेवी उनके वंश, पारिवारिक परंपरा और क्षेत्रीय रीति-रिवाजों के आधार पर भिन्न हो सकती हैं. कुछ ब्राह्मण समुदाय विशिष्ट हिंदू देवियों जैसे दुर्गा, काली, सरस्वती, या शक्ति के अन्य रूपों को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. जबकि अन्य कुलदेवी के रूप में अपनी पैतृक विरासत से जुड़े क्षेत्रीय देवियों की पूजा करते हैं. उदाहरण के लिए जाखण माता को गौड़ ब्राह्मणों की कुलदेवी के रूप में माना जाता है. लटियाल माता को राजस्थान जोधपुर क्षेत्र में कल्ला ब्राह्मणों ब्राह्मणों की कुलदेवी माना जाता है. श्रीमाली ब्राह्मणों के घर में कुलदेवी के रूप में भगवती महालक्ष्मी की पूजा की जाती है. राजस्थान के पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी उष्ट्रवाहिनी माता हैं. दधिमति माता दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी मानी जाती हैं.
यहां यह उल्लेखनीय है कि सभी ब्राह्मणों के लिए कोई निश्चित कुलदेवी नहीं हैं. कुलदेवी का चयन व्यक्ति की पारिवारिक परंपरा और मान्यताओं, वंश और क्षेत्रीय रीति-रिवाजों पर आधारित होता है.
References:
•कुलदेवी कुलदेवता वर्णन
By Jagdish Yayawar · 2021
Publisher:Kalam Kala Prakashan
•Yantra Shakti Aur Sadhana
By Dr. Bhojraj Dwivedi

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