
Last Updated on 15/06/2023 by Sarvan Kumar
आदरणीय गुरु जाम्भो जी का जन्म 1451 ईस्वी में (8 वें दिन कृष्ण पक्ष – (विक्रमी संवत 1508 के भादवा मास का कृष्ण पक्ष) नागौर जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर एक छोटे से गाँव पिपासर में हुआ था. वह राजपूतों के पंवार वंश से संबंधित थे उनकी माता का नाम हंसा देवी (जिन्हें केसर के नाम से भी जाना जाता है) और उनके पिता का नाम लोहट जी था. लोहट जी, रोलो जी (रावल जी) पंवार के पुत्र थे. रोलो जी का विवाह मोहिलरानो के परिवार में हुआ था. उनकी पत्नी राजधि देवी ने लोहट जी और पुल्हो जी को जन्म दिया. लोहट जी एक धनी और प्रतिष्ठित परिवार के थे. जाम्भो जी लोहट जी की इकलौती संतान थे.
1451 ईस्वी में जन्मे, गुरुजी ने बचपन में 7 साल, 27 साल गाय पालने और चराने में बिताए और 51 साल तक उन्होंने अपने अनुयायियों को धार्मिक प्रवचन दिए जिन्हें सबद (उपदेश) कहा जाता है. उनका जीवनकाल 85 साल 3 महीने का था। विक्रमी संवत 1593 (1536 AD) में, उन्होंने समरथल को छोड़ दिया और वैकुंठवास (भगवान विष्णु के स्वर्गीय निवास) के लिए रवाना हुए. यानी बचपन 1451 AD-1458AD. गाय चराना 1458 ई.-1485 ई., धार्मिक एवं आध्यात्मिक प्रवचन तथा कल्याण कार्य 1485 ई.-1536 ई. गुरु जाम्भो जी ने इस नश्वर दुनिया को समरथल में छोड़ दिया और 7 नवंबर, 1536 ईस्वी को स्वर्गीय निवास (वैकुंठवास) चले गए. (मार्गशीर्ष का 9वाँ दिन, संवत् 1593).
गुरु जाम्भोजी जन्म से ही एकांत के क्षणों का आनंद लेना पसंद करते थे. वह एक योगी पुरुष (ध्यान करने वाला व्यक्ति) थे जो सहज-समाधि (प्राकृतिक और सहज ध्यान की एक प्रणाली) में तल्लीन रहते थे. जांभो जी ने अपने माता-पिता से कहा था कि वह वैवाहिक जीवन जीने के लिए विवाह नहीं करेंगे. माता-पिता अनिच्छा से उसके संकल्प के लिए सहमत हुए। 1483 ई. में (चैत्र के 9वें दिन, संवत् 1540) उनके पिता लोहत जी का देहांत हो गया.
जंभेश्वर भगवान के दादाजी का क्या नाम था? उपरोक्त जानकारी के आधार पर बताया जा सकता है कि जंभेश्वर भगवान के दादाजी का नाम रोलो जी (रावल जी) पंवार था.

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