Sarvan Kumar 20/11/2023
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Last Updated on 20/11/2023 by Sarvan Kumar

हिन्दू धर्म में ऋषियों का विशेष महत्व है। सनातन धर्म के आध्यात्मिक ज्ञान एवं दर्शन के विकास, उसके प्रचार-प्रसार तथा भारत के प्राचीन आध्यात्मिक एवं दार्शनिक ज्ञान के संरक्षण में ऋषियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।‌ हिंदू धार्मिक ग्रंथों में ऋषियों को सिद्ध और प्रबुद्ध व्यक्तियों के रूप में वर्णित किया गया है। वैदिक ग्रंथों में ऋषियों का उल्लेख मिलता है। इसी क्रम में यहां हम जानेंगे कि शौनक ऋषि कौन थे।

शौनक ऋषि कौन थे?

इससे पहले कि हम यह जाने की शौनक ऋषि कौन थे, यहां ऋषियों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख करना आवश्यक है। मान्यताओं के अनुसार प्राचीन ऋषियों ने वेदों के ऋचाओं की रचना की थी। हिंदू धर्म की उत्तर वैदिक परंपरा ऋषियों को महान योगी या तपस्वी के रूप में वर्णित करती है जिन्होंने गहन अध्ययन या तपस्या के माध्यम से सर्वोच्च सत्य और शाश्वत ज्ञान प्राप्त किया और इसके आधार पर मंत्रों की रचना की। वेदों को सनातन धर्म और और हिंदू संस्कृति का सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। हिंदू सनातन धर्म की सबसे प्राचीन आधारशिला वेदों को ही माना जाता है। कहा जाता है कि हिंदू धर्म के अन्य ग्रंथ वेदों से ही उत्पन्न हुए हैं।

आइये अब इस लेख के मुख्य विषय पर आते हैं और जानते हैं कि शौनक ऋषि कौन थे। विष्णुपुराण के अनुसार शौनक गृतसमद/ शुनक ऋषि के पुत्र थे। ऋषि शौनक को हिंदू धर्म के सबसे प्रतिष्ठित ऋषियों में से एक माना जाता है। उनका पूरा नाम इंद्रोतदैवाय शौनक था। ‘ऋष्यानुक्रमणी’ ग्रंथ के अनुसार ये अंगीरस गोत्र के शनुहोत्र ऋषि के पुत्र थे; किन्तु बाद में भृगु वंश के शनुक ने इन्हें अपना पुत्र मान लिया तब से ये शौनक कहलाने लगे। वह न केवल एक सम्मानित ऋषि थे बल्कि वह एक वैदिक आचार्य, संस्कृत भाषा के एक प्रसिद्ध व्याकरणविद् और विद्वान के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। शौनक ऋषि को वैदिक साहित्य और हिंदू धर्म के दर्शन के विकास में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है।

उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें ऋग्वेद छंदानुक्रमणी, ऋग्वेद ऋष्यानुक्रमणी, ऋग्वेद अनुवादानुक्रमणी, ऋग्वेद सुक्तानुक्रमणी, ऋग्वेद कथानुक्रमणी, ऋग्वेद पादविधान, शौनक स्मृति, चरणव्यूह, ऋग्विधान आदि शामिल है। ऋषि शौनक ने राजा जन्मेजय को ब्रह्म हत्या से बचाने के लिए उनका अश्वमेध यज्ञ करवाया था। उन्होंने नैमिषारण्य में एक विशाल यज्ञ किया, जो बारह वर्षों तक चलता रहा। ऋषि शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों का गुरुकुल चलाया और कुलपति होने का असाधारण सम्मान प्राप्त किया। दरअसल शौनक ऋषि ने ही सनातन संस्कृति की मजबूत नींव रखी थी।

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