
Last Updated on 22/04/2020 by Sarvan Kumar
कैराना लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार हुयी है. 2014 लोकसभा चुनाव में पांच लाख से भी अधिक वोटों से चुनाव जीतने वाली बीजेपी को रालोद(RLD) ने सपा, बसपा, कांग्रेस के समर्थन से हरा दिया है.रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने सीधे मुकाबले में बीजेपी प्रत्याशी मृगांका सिंह को शिकस्त दी है.
बीजेपी की हार के मुख्य कारण
1. जातिगत समीकरण
जातिगत समीकरण को देखें तो कैराना में 16 लाख वोटरों में सर्वाधिक 5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. दलित मतदाताओं की संख्या दो लाख से उपर है. जाट के मतदाताओं की संख्या सवा लाख है . गुर्जर मतदाताओं की संख्या भी सवा लाख है. अन्य पिछड़ी जातियों के करीब तीन लाख वोटर हैं. सबसे अधिक मतदाता मुस्लिम और उसके बाद दलित वोटरों को देखते हुए, आस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे विपक्ष ने तबस्सुम हसन को ही अपना समर्थन दिया. अजित सिंह खुद भी जाट समुदाय से आते हैं जिसके कारण उनकी पार्टी रालोद (RLD) को सवा लाख जाट वोटरों का भी उनको समर्थन मिला.
2. अजित सिंह की भावुक अपील
जाट समुदाय में चौधरी चरण सिंह का बड़ा नाम है. अजित सिंह कैराना चुनाव को जाट स्वाभिमान से जोड़ने में कामयाब रहे. अजित सिंह की भावुक अपील के कारण जाट समुदाय ने बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडा छोड़ चौधरी परिवार में जाट स्वाभिमान देखा और रालोद को वोट किया.
3.सपा लाई मुस्लिम वोट
ये बात छिपी नहीं है कि मुस्लिम सपा के वोट बैंक हैं. सपा ने आरएलडी को मुस्लिमों का वोट दिलाने में अहम् भूमिका निभाया. सपा ने न सिर्फ आरएलडी को समर्थन दिया, बल्कि कैराना के अपने विधायक नाहिद हसन की मां तबस्सुम हसन को प्रत्याशी के तौर पर RLD को दिया.
4. मायावती लाईं दलित वोटर
मायावती ने दो लाख से अधिक दलित वोटों को प्रभावित किया, जिसका RLD को सीधा फायदा हुआ.
5. तबस्सुम हसन को मिला देवर कंवर हसन का साथ
पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले तबस्सुम हसन के देवर कंवर हसन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए थे. पिछले चुनाव में कंवर हसन को 1.66 लाख वोट मिले थे. ऐसे में मुस्लिम वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा था, लेकिन चुनाव से ऐन पहले बीजेपी को झटका देते हुए वह अपनी भाभी के पक्ष में चुनाव मैदान से हट गए जिसके कारण गठबंधन की राह की आखिरी बाधा भी दूर हो गई. मुकाबला सीधा बीजेपी बनाम विपक्ष हो गया, जिसका फायदा गठबंधन को हुआ.

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